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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 सकते! और पत्नी खड़ी है। सब गड़बड़ हो गया। अभी कामवासना में ही पड़े हो! लेकिन, राम के माननेवाले को महावीर को देखकर भी कोई भाव नहीं उठता, क्योंकि महावीर उसे पलायनवादी मालूम होते हैं कि जहां जीवन संघर्ष है, वहां तुम भगोड़े हो! जहां जरूरत थी कि लड़ते और दुनिया को बदलते, वहां तुम जंगल में जाकर आंख बंद किये बैठे हो । राम को देखो! धनुष-बाण लिये युद्ध में, संघर्ष में खड़े हैं। और जब परमात्मा ने ही स्त्री-पुरुष को बनाया, तो तुम छोड़ने वाले कौन हो! और जब परमात्मा ने ही चाहा कि वे दोनों साथ हों, तो परमात्मा की मर्जी के खिलाफ जो जा रहा है वह नास्तिक है। ___ हम अपनी धारणाओं के घर बनाये हैं। उनको हम मंदिर कहते हैं। हमने अपनी धारणाओं के भगवान बनाये हैं। वे हमारी धारणाओं के प्रोजेक्शन हैं, प्रक्षेप हैं। महावीर कहते हैं, अनगार चेतना चाहिए-जिसका कोई घर नहीं, जिसका कोई मंदिर नहीं, जिसका कोई संप्रदाय नहीं, जिसका कोई धर्म नहीं, जिसकी कोई सीमा नहीं; जो शुद्ध होने' में ही जीता है। न जो ईसाई है, न जैन है, न बौद्ध है, न हिंदू है, न मुसलमान है। न जो कहता है मैं भारतीय हूं, न जो कहता है कि मैं चीनी हूं, जो किसी तरह के घेरे नहीं बनाता । जो न कहता है कि मैं धनी हूं, न कहता है निर्धन हूं । न जो कहता है मैं शूद्र हूं, न जो कहता है कि मैं ब्राह्मण हूं । जो न कहता है मैं ऊंचा हूं, न नीचा हूं। जो न कहता है मैं पुरुष हूं, स्त्री हूं। जो कुछ भी नहीं कहता । जो अपनी तरफ कोई भी विशेषण नहीं लगाता।। _ विशेषण-शून्य व्यक्ति अनगार है। उसने सब घर गिरा दिये । वह खुले आकाश के नीचे आ गया। आकाश ही अब उसका घर है। यह इतना विस्तार, यह विराट ही उसका अब घर है। ऐसे व्यक्ति को महावीर कहते हैं, मैं ब्राह्मण कहता हूं, जो अनगार है। 'जो अकिंचन है...।' __ 'अकिंचन' शब्द भी बड़ा मूल्यवान है। अकिंचन का अर्थ नहीं होता कि निर्धन है, दीन है। नहीं, अकिंचन का अर्थ होता है : जो अपने को कुछ भी हूं,' ऐसा नहीं मानता। सम-बॉडी, कुछ होने का खयाल जिसे नहीं है । एक नो-बॉडीनेस, एक न-कुछ होने का भाव कि मैं कुछ भी नहीं हूं। यह 'कुछ भी नहीं हूं'-यह भी विधायक रूप से न पकड़ ले कि 'मैं कुछ भी नहीं हूं,' नहीं तो यह भी अकड़ बन जाये। बस, होने का भाव न हो। ___ बोकोजू अपने गुरु के पास गया—एक झेन फकीर । और उसने अपने गुरु से जाकर कहा कि तुमने कहा था : ना-कुछ हो जाओ बिकम ए नो-बॉडी। नाऊ आई हैव बिकम ए नो-बॉडी–अब मैं ना-कुछ हो गया। उसके गुरु ने डंडा उठाया और कहा : 'दरवाजे के बाहर हो जा, इस नो-बॉडी को बाहर छोड़कर आ। यह जो 'ना-कुछ' को तू भीतर ला रहा है, नालायक! यह वही है, 'कुछ' हूं। इसमें कोई फर्क नहीं हुआ। अब दोबारा यहां मत आना, जब तक तू कुछ है।' - फिर बोकोजू की हिम्मत नहीं पड़ी आने की। क्योंकि, असल में दावा करना ही जब हो, तो कुछ का ही दावा हो सकता है। 'ना-कुछ' का कहीं कोई दावा होता है? 'ना-कुछ' के दावे का मतलब ही खो गया, बात ही उलटी हो गयी। ___तो फिर बोकोजू नहीं आया। वर्ष बीतते चले गये। तीन साल बाद गुरु गया खोजने कि बोकोजू कहां है । शिष्यों ने कहा कि वह उस झाड़ के नीचे बैठा रहता है। गुरु उसके पास गया । बोकोजू उठकर खड़ा भी नहीं हुआ! क्योंकि उठना था, वह औपचारिक था। गुरु आये तो शिष्य को उठना था; लेकिन जब कुछ भी न रहा, तो शिष्य कौन, गुरु कौन? कहते हैं, गुरु ने उसके चरणों में सिर झुकाया और कहा कि तू अकिंचन हो गया। अब कोई भाव नहीं रहा कि तू कौन है। अब ना-कुछ का भी भाव नहीं है। अकिंचन का अर्थ है : जब मुझे भाव ही न रह जाये कि मैं क्या हुँ; सिर्फ होना रह जाये अपनी परिशुद्धता में। महावीर कहते हैं : अकिंचन होना, ब्राह्मण होना है। ब्राह्मण की ऐसी महिमापूर्ण व्याख्या महावीर के अतिरिक्त और किसी ने भी नहीं की है। 378 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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