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महावीर-वाणी भाग : 2
आज जीओ। लेकिन हम आज तो जी ही नहीं सकते। हम तो सदा कल में ही जीते हैं। कल! और वह कल हमारे पूरे जीवन को चूस लेता है; कभी आता नहीं।
अनासक्त-जीवी का अर्थ है : वर्तमान में जीनेवाला।
ध्यान रहे, वासनाओं के लिए भविष्य चाहिए, जीवन के लिए भविष्य की कोई भी जरूरत नहीं । जीवन के लिए यही क्षण काफी है। अभी मैं जीवित हूं पूरा । आप पूरे जीवित हैं। जीने के लिए कल की क्या जरूरत है? लेकिन वासना के लिए कल की जरूरत है, क्योंकि वासनाएं बड़ी हैं; आज कैसे पूरी होंगी? कल चाहिए। वासनाएं भविष्य निर्मित करती हैं।
वासनाएं ही समय का निर्माण हैं। ‘जो अनासक्त-जीवी है, जो अनगार है, बिना घर-बार का है।'
अब यह भी बड़ा मुश्किल हो गया। 'अनगार' का सीधा अर्थ ले लिया गया कि जो घर-बार छोड़ दे। जो घर-बार में न रहे, वह अनगार है।
लेकिन बड़े मजे की बात है कि जैन साधु को भी रहना पड़े तो किसी के घर में ही रहना पड़ता है! कितना ही इंतजाम करो, घर तो बनाना ही पड़ता है; कोई छाया, छप्पर डालना पड़ता है। धर्मशाला में ठहरो कि स्थानक में ठहरो, ठहरना कहीं होगा, घर तो होगा ही।
घर-बार न हो जिसका, अनगार है जो, तो जरूर महावीर कुछ चेतना की स्थिति की बात कर रहे हैं । महावीर यह कह रहे हैं कि जिसकी चेतना के आस-पास किसी तरह की दीवाल नहीं, किसी तरह का घर, किसी तरह का कारागृह, कुछ भी नहीं है। जिसकी चेतना खुले आकाश की तरह है, जो अनगार है। फिर ऐसा अनगार व्यक्ति छप्पर के नीचे भी सोये तो वह छप्पर उसके भीतर के आकाश को छोटा नहीं कर पाता । और आप-जिसकी आत्मा घर-घूलों में बंधी है, दीवालों से घिरी है--आप खुले आकाश के भी नीचे सोयें तो कोई फर्क नहीं पड़ता। आप अपने घर में ही सो रहे हैं। .
खुला आकाश क्या करेगा, जिसके भीतर का आकाश बंद है? खुला आकाश भीतर होना चाहिए। तब बाहर भी सब खुला हुआ है। लेकिन शब्द दिक्कत में डाल देते हैं। क्योंकि हमारे पास शब्द आते हैं, शब्द की आत्मा तो नहीं आती।
मार्क ट्वेन अमरीका का एक बहत विचारशील लेखक हुआ, एक हंसोड़ व्यक्तित्व । और कभी-कभी हंसोड़ व्यक्तित्व बड़े गहरे, बड़ी गहरी चोटें कर जाते हैं; बड़े गहरे सत्य कह जाते हैं। असल में सत्य कहना हो तो हंसी के बिना कहा ही नहीं जा सकता। जिंदगी वैसे ही काफी उदास है। और उदास सत्य डाल-डालकर आदमी को मारने का कोई अर्थ भी नहीं है।
मार्क ट्वेन को आदत थी भयंकर रूप से गालियां देने की । जरा-सी बात हो जाये, तो वह गालियां देना शुरू कर दे, और ऐसा नहीं कि आदमियों को ही दे, चीजों को भी दे । दरवाजा न खुल रहा हो, तो वह गाली देने लगे। उसकी पत्नी इस बात से बड़ी परेशान थी।
और वह इतना नामी, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का आदमी था कि उसकी पत्नी कहती थी कि कोई सुन ले कि तुम इस तरह की गालियां बकते हो, तो क्या लोग कहेंगे! लेकिन कोई उपाय नहीं था । गालियां उसके लिए अनिवार्य थीं। एक दिन सुबह-ही-सुबह, ब्रह्ममुहूर्त में, कहीं जाने को वह निकला; कमीज पहनी, बटन टूटा है-बस, उसने गाली देना शुरू की, पत्नी भी परेशान हो गयी। वह दरवाजे पर खड़ी सुनती रही एक-एक गाली उसकी । वह इतने रस से दे रहा था, जैसे संगीत का मजा ले रहा हो! बड़ी भद्दी गालियां दे रहा था, जिनको स्त्रियां उपयोग भी नहीं कर सकतीं। पर उसकी पत्नी ने कहा यह भी करके देख लेना चाहिए। तो जैसे ही उसने देना बन्द किया, उसकी पत्नी ने, जो-जो गालियां उसने दी थीं, उतनी ही जोर से उनको दोहराया । उसने सोचा, शायद इससे घबड़ा जायेगा, सोचेगा कि पड़ोसी क्या कहेंगे? कि मार्क ट्वेन की पत्नी ऐसी भद्दी गालियां बकती है! मार्क ट्वेन गौर से सुनता रहा, और उसने कहा कि, 'राइट, यू हैव कॉट
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