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अलिप्तता है ब्राह्मणत्व
लडना पागलपन है, क्योंकि जिससे आप पैदा हए हैं, उससे लड नहीं सकते। उससे लडकर क्या हाथ लगेगा? और अतीत से लडने की जरूरत क्या है? भविष्य की चिंता करनी चाहिए। जो पीछे छट' है, उससे लड़ने की जरूरत क्या है? जो आगे हो सकता है, उसके होने का उपाय जुटाना चाहिए। महावीर कहते हैं, जैसे कमल जल में ही पैदा होता है, फिर भी जल उसे छूता नहीं। ऐसे ही चेतना शरीर में है, शरीर में ही रहती है, लेकिन शरीर उसे छूता नहीं।
चेतना का जन्म वासना में हुआ है। उसके चारों तरफ वासना का जल है । लेकिन कमल की तरह चेतना अलग हो जाती है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। यह जो कमल की तरह अलग हो जाना है, यह कई तरह से सोचने-जैसा है, क्योंकि महावीर कहते हैं, उसी प्रकार जो संसार में रहकर भी काम-भोगों से सर्वथा अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। संसार से भागने की सलाह नहीं है, संसार में रहकर भी, क्योंकि संसार से भागने का तो मतलब हुआ कि कमल पानी से डरकर दूर हट जाये । डर ही बताता है कि कमल को भय था कि पानी छू सकता था। भय खबर देता है। लेकिन कमल निर्भय है। वह जानता है कि पानी छू नहीं सकता, तो पानी में रहे कि पानी के बाहर रहे, कोई भेद नहीं है।
संसार को छोड़कर भागने का मतलब एक ही हो सकता है सौ में निन्यानबे मौके पर । एक मौके को मैं छोड़ देता हूं। उसकी मैं पीछे बात करूंगा। उस एक मौके पर महावीर, बुद्ध और शंकर आते हैं। सौ में निन्यानबे मौके पर संसार से भागने का एक ही अर्थ है कि हम इतने डरे हुए हैं कि संसार में रहकर तो हमारा कमल पानी को छयेगा ही। कोई उपाय हमें दिखायी नहीं पड़ता। वहां तो हम उलझ ही जायेंगे। तो अवसर ही न रहने दें, बाहर की परिस्थिति ही बदल दें; ऐसी जगह चले जायें, जहां कोई मौका ही न हो।
लेकिन ध्यान रहे, मौका बाहर से नहीं पैदा होता । बाहर तो खूटियां हैं। वासना भीतर है। आप जंगल में चले जायेंगे, दो पक्षियों को संभोग करते देखेंगे; कठिनाई शुरू हो जायेगी। आप कहां भागेंगे, ऐसी जगह चले जायेंगे, जहां पक्षी नहीं, वृक्ष नहीं, पौधे नहीं; क्योंकि सब में वासना है। फूल खिल रहा है कामवासना से; तितलियां उड़ रही हैं कामवासना से; हवाओं में सुगंध चल रही है फूलों की कामवासना से; क्योंकि उस सुगंध के साथ बीजकण जा रहे हैं। सारा जगत कामवासना है। भाग कर जायेंगे कहां? फिर भी, समझ लें
ये; एक गहा में छिप गये, पर अपने से भागकर कहां जायेंगे? वह जो भीतर कामवासना है, वह तो साथ है; तो आटोइरोटिक हो जायेंगे, खुद के ही साथ वासना जगने लगेगी।
मनोवैज्ञानिकों को शक है इस बात का कि जहां-जहां हम पुरुषों को स्त्रियों से दूर करते हैं, वहां-वहां मस्टरबेशन शुरू हो जाता हस्तमैथुन शुरू हो जाता है। ऐसी घटना बहुत जगह घटी है। पहली दफा जब अफ्रीका के एक कबीले में ईसाई मिशनरी पहुंचे, और ईसाई मिनशरी जहां पहुंचे हैं, वहां उपद्रव पहुंचा है; क्योंकि उनकी धारणाएं अत्यंत कुंद हैं, और अत्यंत उथली हैं। जब उस कबीले में ईसाई मिशनरी पहुंचे, तो उन्होंने तत्काल... । कुछ लोग हैं जो दूसरों को सुधारने में ही लगे रहते हैं बिना इसकी फिक्र किये कि वे दूसरे सुधारने की अवस्था में हैं या हम सुधरने की अवस्था में हैं।
उस गांव में लड़के-लड़कियां सब साथ खेलते थे, कूदते थे। ग्रामीण आदिवासी कबीला था, और बहुत से आदिवासी कबीलों में, गांव के बीच में, एक भवन होता है जो युवकों का भवन होता है, 'यूथ हाल' । वहां लड़के और लड़कियां जब जवान हो जाते हैं, तब वे सब वहीं सोते हैं, सब साथ । उस कबीले को मस्टरबेशन का, हस्तमैथुन का पता ही नहीं था कि कोई आदमी हस्तमैथुन भी कहीं करता है, या स्त्रियां करती हैं। लेकिन जाकर ईसाई पादरियों ने कहा कि यह तो अनाचार हो रहा है, लड़के और लड़कियां साथ! यह अनाचार बंद करना पड़ेगा! उन्होंने हास्टल अलग-अलग बना दिये; लड़के और लड़कियों को अलग-अलग छांटकर रख दिया; बीच में दीवाल खड़ी कर दी। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, जिस दिन दीवाल खड़ी की गयी, उसी दिन हस्तमैथुन उस कबीले में प्रविष्ट हुआ।
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