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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 कहते हैं। 'जो तपस्वी है...।' जो भीतर जीवन की वासना की जो अग्नि है, उसको यज्ञ बना रहा है। जो भीतर अपने को निखार रहा है। अपने जीवन की पूरी ऊर्जा का उपयोग जोव्यर्थ बाहर नहीं खो रहा है। बल्कि सारा ईंधन एकही काम में ला रहा है कि मेरे भीतर का सोना निखर जाये, वह तपस्वी है। '...जो दुबला-पतला है।' __ यह जरा सोचने-जैसा है, क्योंकि महावीर की प्रतिमा दुबली-पतली नहीं है। इससे बड़ी भ्रांति पैदा हुई है। महावीर की प्रतिमा बड़ी बलिष्ठ और स्वस्थ है, दुबली-पतली जरा भी नहीं है । और महावीर की एक भी प्रतिमा उपलब्ध नहीं है, जिसमें वे दुबले-पतले हों । हां, बुद्ध की एक प्रतिमा उपलब्ध है, जिसमें वे हड्डी-हड्डी रह गये हैं, महातप उन्होंने किया जिसमें वे बिलकुल सूख गये हैं, और उनकी पीठ और पेट एक हो गये । वे इतने कमजोर हो गये हैं कि उठ भी नहीं सकते। नदी में स्नान करने गये हैं निरंजना में, इतने कमजोर हो गये हैं कि नदी से बाहर निकलने की ताकत नहीं तो एक वृक्ष की जड़ को पकड़कर लटके हुए हैं। ___ जरूर महावीर और बुद्ध की तपश्चर्या में कुछ बुनियादी फर्क है । बुद्ध जरूर कुछ गलत तपश्चर्या कर रहे हैं। और इसीलिए बुद्ध को छह साल के बाद तपश्चर्या छोड़ देनी पड़ी। और बुद्ध ने कहा कि तप से कोई मुक्त नहीं हो सकता। उनका अनुभव ठीक था। उन्होंने जो तप किया था, उससे कभी कोई मुक्त नहीं हो सकता। वह उस तप को छोड़कर मुक्त हुए। लेकिन इस पर बहुत गंभीर विचारणा नहीं हुई, क्योंकि महावीर तप से ही मुक्त हुए। लेकिन महावीर ने वैसा तप कभी नहीं किया, जैसा बद्ध ने किया । बद्ध के तप में कोई भ्रांति थी। बद्ध एक तरफ भोगी थे: फिर एकदम विपरीत तपस्वी हो गये। उन्होंने शरीर को सखा डाला; खून, मांस सब सूख डी हो गये; इतने कमजोर हो गये कि ऊर्जा ही न बची जो कि भीतर के सोने को निखार सके। तो उन्हें उस तप को छोड़ देना पड़ा। लेकिन महावीर कभी हड्डी-हड्डी नहीं हुए। __तो महावीर का यह वचन समझने-जैसा है। महावीर कहते हैं, 'जो दुबला-पतला है, जो इंद्रिय-निग्रही है, उग्र तपसाधना के कारण जिसका रक्त और मांस सूख गया है, जो शुद्धव्रती है, जिसने निर्वाण पा लिया है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' महावीर की प्रतिमा को खयाल में रखकर इस वचन को समझना जरूरी है, नहीं तो भ्रांति महावीर के अनुयायी भी करते रहे हैं। महावीर कहते हैं कि मनष्य के शरीर में रक्त और मांस अकारण नहीं होता। रक्त और मांस के होने के दो कारण हैं। एक तो शरीर की जरूरत है कि शरीर बिना रक्त और मांस के जी नहीं सकता । वह शरीर का भोजन है, शरीर का ईंधन है । लेकिन जितना शरीर को चाहिए, उतने से ज्यादा आदमी इकट्ठा कर लेता है और वह जो ज्यादा इकट्ठा किया हुआ है, वह मनुष्य को वासनाओं में ले जाता है । ध्यान रहे, अगर आपको अचानक लाख रुपये मिल जायें, तो आप क्या करेंगे? आप एकदम, आपकी जो-जो बझी पड़ी वासनाएं हैं, उनको सजग कर लेंगे। एक लाख का खयाल आते ही से आपकी वासनाएं भागने लगेंगी। क्या कर लूं? कहां भोग लूं? __नया-नया धनी हुआ आदमी बड़ा पागल हो जाता है। नया धनी अपनी सारी वासनाओं को जगा हुआ पाता है। इसलिए नए धनी को पहचानने में कठिनाई नहीं है । उसका धन उछलता हुआ दिखायी पड़ता है । उसका धन वासना की दौड़ बन जाता है। जैसे ही आपके शरीर में जरूरत से ज्यादा खून, मांस मज्जा इकट्ठी हो जाती है, आप इसका क्या करेंगे? और मनुष्य के पास संग्रह करने का उपाय है। मनुष्य के शरीर में उपाय है। तीन महीने के लायक तो भोजन हम अपने शरीर में इकट्ठा रखते ही हैं। इसलिए कोई भी आदमी तीन महीने तक उपवास कर सकता है, मरेगा नहीं। स्वस्थ, सामान्य स्वस्थ आदमी अगर नब्बे दिन भूखा तक रहे तो मरेगा नहीं, क्योंकि नब्बे दिन के लिए भोजन शरीर में रिज़र्व, सुरक्षित रहता है। हम अपना मांस पचाते जायेंगे नब्बे दिन तक। इसलिए जब आप उपवास करते 354 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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