________________
राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण
श्रम है, एक तपश्चर्या है। ब्राह्मण तभी कोई हो सकता है, जब ब्रह्म से उसका सम्पर्क सध जाए।
उद्दालक ने अपने बेटे श्वेतकेतु को कहा है उपनिषदों में कि श्वेतकेतु, ध्यान रखना एक बात, हमारे परिवार में कोई जन्म से ब्राह्मण नहीं हुआ । वह बड़ी बदनामी की बात है। हमारे परिवार में हम चेष्टा से ब्राह्मण होते रहे हैं। तू भी यह मत सोच लेना कि तू मेरे घर पैदा हुआ तो ब्राह्मण हो गया । तुझे ब्राह्मण होने के लिए अथक श्रम करना होगा, तुझे ब्राह्मण होने के लिये खुद ही साधना करनी होगी । ब्राह्मण होने के लिए तुझे स्वयं को ही जन्म देना होगा; मां-बाप तुझे जन्म नहीं दे सकते हैं। क्योंकि जब तक तेरा अनुभव ब्रह्म के निकट न आने लगे, तब तक तू ब्राह्मण नहीं है ।
महावीर की बात निश्चित ही जातिगत ब्राह्मणों को बहुत कठिन मालूम पड़ी होगी। सत्य हमेशा ही स्वार्थ को कठिन मालूम पड़ता है। क्योंकि कितनी सुगम बात है जन्म से ब्राह्मण हो जाना और श्रम से ब्राह्मण होना तो बहुत दुर्गम है। जन्म से तो हजारों ब्राह्मण हो जाते हैं; श्रम से तो कभी कोई एकाध ब्राह्मण होता है।
तो जो ब्राह्मण थे जन्म से, उनको बहुत कष्टपूर्ण मालूम पड़ा होगा। महावीर उनकी पूरी बपौती छीन ले रहे हैं; उनकी शक्ति छीन ले रहे हैं। इससे भी खतरनाक मालूम पड़ी होगी बात, और भी दूसरा खतरा था और वह यह कि ब्राह्मण से उसका ब्राह्मणत्व ही नहीं छीन ले रहे हैं — जातिगत, जन्मगत; बल्कि महावीर कह रहे हैं कि कोई भी ब्राह्मण हो सकता है, तो शूद्र भी ब्राह्मण हो सकता है, श्रम से । तो ब्राह्मण की सत्ता छीन रहे हैं और जिनके पास सत्ता कभी नहीं थी, उनको सत्ता का, उस परम सत्ता के अनुभव का अवसर खोल रहे हैं।
महावीर की क्रांति गहरी है। महावीर कहते हैं, सभी लोग जन्म से शूद्र पैदा होते हैं। क्योंकि शरीर से पैदा होने में कोई कैसे ब्राह्मण हो सकता है ? शरीर शूद्र है शरीर से; आदमी पैदा होता है, तो सभी जन्म से शूद्र पैदा होते हैं। फिर इस शूद्रता के बीच अगर कोई श्रम करे, निखारे अपने को, तपाए, तो सोने की तरह निखर आता है। पर अग्नि से गुजरना पड़ता है, तब कोई ब्राह्मण होता है ।
शूद्र पैदा हो जाने से ब्राह्मण होने में बाधा नहीं है। शूद्रता ब्राह्मणत्व का आधार है। जैसे देह आत्मा का आधार है, ऐसे शूद्रता ब्राह्मणत्व का आधार है। इसलिए कोई भी शूद्र होने से वंचित नहीं है। सभी शूद्र हैं। लेकिन कुछ शूद्रों ने जन्म से अपने को ब्राह्मण समझ रखा
कुछ शूद्रों ने जन्म से अपने को वैश्य समझ रखा है। कुछ शूद्रों ने जन्म से अपने को क्षत्रिय समझ रखा है। और कुछ शूद्रों को समझा दिया गया है कि तुम जन्म से ही शूद्र नहीं हो, तुम्हें सदा ही शूद्र रहना है; तुम जन्म से लेकर मृत्यु तक शूद्र रहोगे ।
यह बड़ी खतरनाक बात है। इससे न मालूम कितनी संभावनायें ब्राह्मण होने की खो गयीं। जो ब्राह्मण हो सकता था वह रोक दिया गया। जो ब्राह्मण नहीं था, वह ब्राह्मण मान लिया गया। उसकी भी संभावना को नुकसान हुआ, क्योंकि वह भी हो सकता, उसकी फिक्र छूट गयी। उसने मान लिया कि मैं शूद्र हूं ।
महावीर कहते हैं, ब्राह्मण होना जीवन का अंतिम फूल है, इसलिए जन्म पर कोई ठहर न जाए। कीचड़ से कमल पैदा होता है; शूद्रता से ब्राह्मणत्व पैदा होता है। कीचड़ पीछे छूट जाती है; कमल ऊपर उठने लगता है। एक घड़ी आती है, कीचड़ बहुत पीछे छूट जाती है; कमल जल के ऊपर उठ आता है। और कमल को देखकर आपको खयाल भी पैदा नहीं हो सकता कि वह कीचड़ से पैदा हुआ है।
शूद्रता कीचड़ है । उसी में पड़े रहने की कोई भी जरूरत नहीं है। उससे ऊपर उठने का विज्ञान है। अध्यात्म, धर्म, योग कीचड़ को कमल में बदलने की कीमिया है । और एक बार कीचड़ कमल बन जाए, तो नीचे भूमि में जो कीचड़ पड़ी है, वह भी फिर उसे कीचड़ नहीं बना सकती । बल्कि उस कीचड़ से भी कमल रस लेता है; उस कीचड़ को निरंतर बदलता रहता है सुगंध में। उस कीचड़ की दुर्गंध बनती रहती है सुगंध, कमल के माध्यम से। उस कीचड़ का जो-जो कुरूप है उस कीचड़ में, वह सब कमल में आकर सुंदर होता रहता है । आदमी कीचड़ की तरह पैदा होता है, लेकिन कीचड़ की तरह मरने की कोई भी जरूरत नहीं है। कमल होकर मरा जा सकता है।
Jain Education International
341
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org