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________________ इसप की एक कथा है । एक दिन एक सिंह, एक गधा और एक लोमड़ी शिकार को निकले साथ-साथ । उन्होंने काफी शिकार किया। फिर जब सूर्य ढलने लगा और सांझ हो गई, तो सिंह ने लोमड़ी को कहा कि तू समझदार भी है, चालाक भी, गणितज्ञ भी, तार्किक भी; उचित होगा कि तू ही इस शिकार के तीन विभाजन कर दे, बराबर-बराबर, ताकि तीनों शिकार में भाग लेनेवाले साथियों को बराबर भोजन उपलब्ध हो सके। बड़े चमत्कारिक ढंग से लोमड़ी ने विभाजन किये जो बिलकुल बराबर थे, तीन हिस्से किए। लेकिन सिंह बहुत नाराज हो गया। उसने कुछ कहा भी नहीं; लोमड़ी की गर्दन दबायी और उसको भी शिकार के ढेर में फेंक दिया और गधे से कहा कि तू अब दो हिस्से कर दे, एक मेरे लिए और एक तेरे लिए, बिलकुल बराबर-बराबर । गधे ने सारे शिकार का एक ढेर लगा दिया और एक मरे हुए कौए की लाश को एक तरफ कर दिया और कहा कि महानुभाव ! यह मेरा आधा भाग कौआ और वह आपका आधा भाग। सिंह ने कहा, 'गधे, मित्र गधे ! तूने इतना समान विभाजन करने की कला कहां से सीखी? किसने तुझे सिखाया ऐसा शुद्ध गणित ? तूने बिलकुल बराबर विभाजन कर दिये !' और विभाजन क्या है, एक तरफ कौआ मरा हुआ और एक तरफ सारे शिकार का ढेर। गधे ने कहा, 'दिस डेड फाक्स-इस मरी हुई लोमड़ी ने मुझे यह कला सिखायी बराबर विभाजन करने की !' ईसप ने कहा है कि गधे भी अनुभव से सीख लेते हैं, लेकिन आदमी नहीं सीखता । आदमी अनुभव से सीखता हुआ मालूम ही नहीं पड़ता। हजारों-हजार साल वही अनुभव, वही अनुभव बार-बार दोहरता है, फिर भी आदमी वैसा ही बना रहता है। उसमें कोई फर्क पड़ता हुआ मालूम नहीं पड़ता। जैसे अनुभव बह जाता है उसके ऊपर से; कहीं भी दे नहीं पाता उसके रोओं में, उसकी चमड़ी में, उसकी हड्डियों में, उसके हृदय तक तो पहुंचने की बात ही दूर । ऊपर-ऊपर वर्षा के जल की तरह गिरता है और बह जाता है और आदमी वैसे का वैसा बना रहता है। ___ मनुष्य को हजारों साल के अनुभव में यह बात साफ हो जानी चाहिए थी, इसमें कोई भी अड़चन नहीं है कि जन्म से धर्म का कोई भी संबंध नहीं है । एक आदमी मुसलमान के घर में पैदा हो सकता है, लेकिन इससे मुसलमान नहीं हो सकता । एक आदमी हिंदू के घर में पैदा हो सकता है, लेकिन पैदा होने से धर्म का क्या लेना-देना है? एक आदमी जैन कुल में पैदा होता है, लेकिन वह कुल का धर्म होगा, व्यक्ति का निजी चुनाव नहीं। 339 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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