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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 जहर हो जाती है, अगर आपको ठीक-ठीक सत्य का पता न हो । दनिया में अधर्म कम हो सकता है. यदि वे लोग जिन्हें धर्म का स्वयं अनुभव नहीं है, बोलना बंद कर दें, लेकिन वे बोले चले जाते हैं। ___ बोलना बहुत कारणों से पैदा हो सकता है। अकसर तो अहंकार को रस मिलता है। जब कोई बोलता है और कोई सुनता है, तो बड़ी अनूठी घटना घट रही है। बोलनेवाला बिना जाने भी बोल सकता है, क्योंकि और भी रस हैं । जब कोई बोलता है और कोई सुनता है, तो जो बोलता है वह मालिक हो गया और सुननेवाला गुलाम हो गया; जो बोलता है वह ऊपर हो गया, जो सुननेवाला है वह नीचे हो गया; जो बोलता है वह हिंसक हो गया और सुननेवाला हिंसा का शिकार हो गया। ___ जब कोई बोल रहा है तो आप पर हमला कर रहा है, आप पर हावी हो रहा है, आपके मस्तिष्क पर सवार हो रहा है। इसमें रस है। गुरु होने में बड़ा मजा है। उस मजे के कारण बिना इसकी चिंता किये कि मैं जानता हूं या नहीं जानता-लोग बोले चले जाते हैं, लिखे चले जाते हैं, समझाये चले जाते हैं। सलाह की कोई कमी नहीं, मार्ग-निर्देशक सब जगह खड़े हैं। जिनका खुद का भी कोई मार्ग नहीं है, वे भी मार्ग-निर्देश कर सकते हैं; क्योंकि निर्देश करने में अहंकार को बड़ी तृप्ति है । खुद अपनी तरफ सोचें तो आपको खयाल आएगा। कोई आपसे पूछे-सलाह बिना पूछे आप देते हैं-कोई पूछे तब तो रुकना बहुत मुश्किल है ! तब तो टेम्पटेशन, तब तो उत्तेजना बहुत हो जाती है, फिर आप सलाह देते ही हैं ! कभी आपने सोचा है कि जो सलाह आप दे रहे हैं, वह आपका निश्चित अपना अनुभव है, या सिर्फ एक आदमी की मजबूरी का लाभ उठा रहे हैं ! क्योंकि वह परेशानी में है, आप सलाहकार बन सकते हैं ! इसलिए दुनिया में सलाह मुफ्त मिलती है, जरूरत से ज्यादा मिलती है, हालांकि कोई उसे मानता नहीं। दुनिया में शिष्यों की बजाय गुरु सदा ज्यादा हैं। और वह जो शिष्य है, वह भी शायद इसीलिये शिष्य है कि गुरु होने की तैयारी कर रहा है। और गुरु को भी सलाह दिये बिना आप बचते नहीं ! उसको भी आप सलाह देंगे ही ! ___ आदमी का अहंकार तृप्त होता है इस प्रतीति से कि मैं जानता हूं, दूसरा नहीं जानता है। दूसरे को अज्ञानी सिद्ध करने में बड़ा मजा है। यह बड़ा सूक्ष्म संघर्ष है । एक सूक्ष्म पहलवानी है, जिसमें दूसरे को गलत सिद्ध करके अपने को सही सिद्ध करने का अहंकार पुष्ट होता है। महावीर ने कहा है : जो इन आठ सूत्रों की साधना से न गुजर जाए उसे बोलने का हक भी नहीं है । महावीर खुद बारह वर्ष तक मौन रह गये। बहुत मौके आए जब सलाह देने की तीव्र वासना उठी होगी, लेकिन उसे उन्होंने रोक लिया। एक ही बात सदा ध्यान रखी कि जब तक मैं पूरा मौन नहीं हो जाता, तब तक शब्द पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। ___ यह बड़ा उल्टा दिखाई पड़ेगा। जो मौन हो जाता है, वही शब्द का अधिकारी है; जो शून्य हो जाता है, वही प्रवचन का हकदार है। जो भीतर शब्दों से भरा है, वह जो भी बोल रहा है, वह बोलना वमन है, उल्टी है। वह इतना भरा है कि उसे निकालने की उसे जरूरत है। आप सिर्फ एक पात्र हैं, जिसमें वह वमन कर देता है। लेकिन आपकी जरूरत का सवाल नहीं है कि आपको क्या चाहिए, असली जरूरत बोलनेवाले की है कि उसे क्या अपने से निकालना आप खुद भी जानते हैं कि अगर कुछ आप पढ़ लें सुबह अखबार में, तो बेचैनी शुरू हो जाती है कि जल्दी किसी को जाकर कहें। कोई कुछ खबर दे दे, किसी की अफवाह सुना दे, किसी की बदनामी कर दे, किसी की निंदा कर दे-तो फिर आपसे रुका नहीं जाता, जल्दी ही इस संवाद को, इस सुखद समाचार को आप दूसरे को देना चाहते हैं। और निश्चित ही देते वक्त आप थोड़ी कल्पना का भी 294 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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