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लोकतत्व-सूत्र : 6
अट्ठ पवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य। पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीओ आहिया ।। इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय। मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अट्ठमा।। एयाओ पंच समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे बुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो।। एसा पवयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए।।
पांच समिति और तीन गुप्ति-इस प्रकार आठ प्रवचन-माताएं कहलाती हैं। ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप और उच्चार या उत्सर्ग—ये पांच समितियां हैं। तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति-ये तीन गुप्तियां हैं। इस प्रकार दोनों मिलकर आठ प्रवचन-माताएं हैं। पांच समितियां चारित्र्य की दया आदि प्रवृत्तियों में काम आती हैं, और तीन गुप्तियां सब प्रकार के अशुभ व्यापारों से निवृत्त होने में सहायक होती हैं। जो विद्वान मुनि उक्त आठ प्रवचन-माताओं का अच्छी तरह आचरण करता है, वह शीघ्र ही अखिल संसार से सदा के लिए मुक्त हो जाता है।
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