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________________ छह लेश्याएं : चेतना में उठी लहरें सोओ। मैं तैयार बैठी हूं, तुम कहां हो? मैंने फूल बिछा दिये हैं, सेज तैयार है; दिया जला लिया है, मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूं। और जब तक तुम आकर मेरी सेज पर मेरे साथ न सो जाओ, तब तक मुझे चैन नहीं आयेगा। __यह भाषा प्रेमियों की है । इसलिए अगर फ्रायड को माननेवाले लोग मीरा का अध्ययन करें तो उन्हें लगेगा कि जरूर कोई कामवासना भीतर दबी रह गई है। गीत में अगर प्रगट करना हो उस परम सत्य को तो भाषा प्रेम की ही चुननी पड़ेगी, और कोई उपाय नहीं। क्योंकि इस पृथ्वी पर निकटतम-उस परम तत्व के करीब, प्रेम ही आता है। लेकिन तब खतरा है। और डर यह है कि पढ़नेवाले लोग समाधि की तरफ तो न झकें, संभोग की तरफ झक जायें। और डर यह है कि उनके मन में इससे उस परम का विचार तो पैदा न हो, लेकिन क्षुद्र वासना का जन्म हो जाए। __महावीर तर्क की चिंता नहीं करते। महावीर गीत की भी चिंता नहीं करते। महावीर आत्मिक जीवन का शुद्ध विज्ञान उपस्थित करना चाहते हैं । वह दिशा बिलकुल अलग है। क्या अनुभव हुआ है, उसे प्रगट करना व्यर्थ है, उन लोगों के सामने जिन्हें कोई अनुभव नहीं हुआ। कैसे अनुभव हो सकता है, उसकी प्रक्रिया ही प्रगट करनी आवश्यक है। और अनुभव के मार्ग पर क्या-क्या घटित होगा, उसका नक्शा देना जरूरी है। क्योंकि अनंत है यात्रा और कहीं से भी भटकाव हो सकता है। अनंत हैं पहेलियां, अनंत हैं मोड़, अनंत पगडंडियों का जाल है, उसमें अगर नक्शा साफ न हो तो आप एक भूल-भुलैयां में भटक जायेंगे। इसलिए महावीर की पूरी चेष्टा है, एक स्पिरिच्युअल मैप, एक आध्यात्मिक नक्शा निर्मित करने की : कि आपके हाथ में एक ठीक गाइड हो और आप एक-एक कदम जांच कर सकें; और एक-एक पड़ाव को पहचान सकें कि यात्रा ठीक चल रही है, दिशा ठीक है। और जिस तरफ मैं जा रहा हूं वहां अंततः मुक्ति उपलब्ध हो पायेगी। यह दृष्टि खयाल में रहे तो महावीर को समझना बहुत आसान हो जायेगा। अब उनका हम सूत्र लें। 'कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पदम और शुक्ल-ये लेश्याओं के क्रमशः छह नाम हैं।' यह किताब ऐसी मालूम पड़ती है, महावीर के वचनों की—जैसे फिजिक्स की हो, केमिस्ट्री की हो, गणित की हो। इसलिए बहुत कम लोग इसमें रस ले पायेंगे। गीता का पाठ किया जा सकता है, एक महाकाव्य छिपा है। महावीर की बातें सीधी गणित की हैं, जैसे कि यूक्लिड थ्योरम लिख रहा हो, ज्यामिती की। __ 'कष्ण, नील, कापोत, तेज, पदम और शक्ल-ये लेश्याओं के क्रमशः छह नाम हैं।' तो पहले तो समझ लें कि 'लेश्या' क्या है? महावीर के कुछ खास परिभाषिक शब्दों में लेश्या भी एक है। __ऐसा समझें कि सागर शांत है, कोई लहर नहीं है। फिर हवा का एक झोंका आता है, लहरें उठनी शुरू हो जाती हैं, तरंगें उठती हैं, सागर डावांडोल हो जाता है, छाती अस्त-व्यस्त हो जाती है, सब अराजक हो जाता है। महावीर कहते हैं, शुद्ध आत्मा तो शांत सागर की तरह है, अशुद्ध आत्मा अशांत सागर की तरह है, जिस पर लहरें ही लहरें भर गई हैं। उन लहरों का नाम लेश्या' है। मनुष्य की चेतना में जो लहरें हैं, उनका नाम लेश्या है। और जब सब लेश्याएं शांत हो जाती हैं, तब शुद्ध आत्मा की प्रतीति होती है। इन लेश्याओं में भी छह तरह की लेश्याओं का महावीर ने विभाजन किया है। तो लेश्या का अर्थ हुआ चित्त की वृत्तियां । ___ जिसको पतंजलि ने 'चित्त-वृत्ति' कहा है, उसको महावीर लेश्या' कहते हैं । चित्त की वृत्तियां, चित्त के विचार, वासनायें, कामनायें, लोभ, अपेक्षायें, ये सब लेश्यायें हैं। अनंत लेश्याओं से आदमी घिरा है। प्रतिपल कोई न कोई तरंग पकड़े हुए है। __और ध्यान रहे, जब सागर में तरंगें होती हैं तो आपको तरंगें ही दिखाई पड़ती हैं, सागर तो बिलकुल छिप जाता है। जब तरंगें नहीं होती, तभी सागर होता है, तभी सागर दिखाई पड़ता है। तो जितनी ज्यादा तरंगें होंगी चित्त की, उतना ही ज्यादा भीतर का जो गहन सागर 275 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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