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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 'और किसी का भी विश्वास नहीं करना चाहिए।' इसका यह मतलब नहीं है कि महावीर अविश्वास सिखा रहे हैं। महावीर कहते हैं, तुमने किसी का विश्वास किया, सोये हुए आदमी का, तो तुम खुद सो जाओगे। तुमने अगर सोये हुए आदमी का विश्वास किया तो तुम सो जाओगे, क्योंकि विश्वास का मतलब यह है कि अब सचेतन रहने की कोई भी जरूरत नहीं है। इसे थोड़ा समझ लें। जिसका हम विश्वास करते हैं, उससे हमें सचेतन नहीं रहना पड़ता। एक अजनबी आदमी आपके कमरे में ठहर जाये तो आप रात ठीक से सो न पायेंगे। क्यों? __अजनबी आदमी कमरे में है, पता नहीं क्या करे! नींद उखड़ी-उखड़ी रहेगी, रात में दो-चार दफा आप आंख खोलकर देख लेंगे कि कुछ कर तो नहीं रहा । आपकी पत्नी आपके कमरे में सो रही है, आप मजे से घोड़े बेचकर सो जाते हैं, क्योंकि अब अजनबी नहीं, और जो भी कर सकती थी, कर चुकी । अब सब परिचित है। अब जो कुछ भी होगा, होगा। अब इसमें कुछ ऐसा नया कुछ होने वाला नहीं है। कोई भय नहीं है। आप चेतना खो सकते हैं। आपको चेतन रहने की कोई जरूरत नहीं है। इसीलिए तो नये मकान में, नये कमरे में नींद नहीं आती। स्थिति नयी है, आदतन नहीं है। नये बिस्तर पर नींद नहीं आती, नये लोगों के बीच नींद नहीं आती, क्योंकि स्थिति नयी है और थोड़ा-सा होश रखना पड़ता है। पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता। __ महावीर कहते हैं, जीना जगत में जैसे अजनबियों के बीच ही हो सदा-स्टेंजर्स...! है ही सच्चाई यह । पति और पत्नी चाहे बीस साल चाहे चालीस साल साथ रहे हों, अजनबी हैं। कभी भी कोई पहचान हो नहीं पाती; स्ट्रेंजर्स हैं। मान लेते हैं बीस साल साथ रहने के कारण कि अब हम परिचित हो गये हैं। क्या खाक परिचित हो गये! कोई परिचित नहीं होते, कोई परिचित नहीं होता, सब आइलैंड बने रहते हैं, अपने-अपने में द्वीप बने रहते हैं। परिचय हो जाता है ऊपरी, नाम-धाम, ठिकाना, यह सब पता हो जाता है, शकल-सूरत, लेकिन भीतर क्या संभावनाएं छिपी हैं, उसका कुछ परिचय नहीं होता, कोई पहचान नहीं होती। __महावीर कहते हैं, किसी का विश्वास मत करना। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह नहीं है कि अविश्वासी हो जाना, अन्ट्रस्टिंग हो जाना । इसका यह मतलब नहीं कि हर आदमी को समझना कि बेईमान है, हर आदमी को समझना कि चोर है। इससे कई लोगों को बड़ी प्रसन्नता होगी कि किसी का विश्वास मत करना । वे कहेंगे, यह तो हम कर ही रहे हैं, यह तो हमारी साधना ही है। किसी का विश्वास हम करते कहां हैं? अपना नहीं करते, दूसरे की तो बात ही दूसरी है। . कोई किसी का विश्वास नहीं कर रहा है, मगर वह अर्थ नहीं है महावीर का, इसे ठीक से समझ लें हम अविश्वास करते हैं, लेकिन वह अविश्वास महावीर का प्रयोजन नहीं है। महावीर कहते हैं, किसी का विश्वास न करना इस कारण, ताकि तुम सो न जाओ। निकटतम भी तुम्हारे कोई हो तो भी इतना विश्वास मत करना कि अब होश रखने की कोई जरूरत नहीं है। होश तो तुम रखना ही, जागे तो तुम रहना ही। क्योंकि जो निकटतम हैं उन्हीं से बीमारियां आसानी से आती हैं। वे करीब हैं उनका रोग जल्दी लगता है। होश तो रखना ही। अगर तुम होश खोकर अपनी पत्नी या अपने पति, या अपने बेटे, या अपनी मां के पास भी बैठे हो, तो उसकी बीमारियां तुम्हारे भीतर प्रवेश कर रही हैं । तुम्हारा चित्त पहरेदार बना ही रहे और मन की कोई बीमारी तुममें प्रवेश न कर पाये। बुद्ध कहते थे, कि जिस मकान के बाहर पहरे पर कोई बैठा हो, चोर उसमें प्रवेश नहीं करते । जिस मकान का दीया जला हो और घर के बाहर रोशनी आ रही हो, चोर उस मकान से जरा दूर ही रहते हैं । ठीक ऐसे ही जिसके भीतर होश का दीया जला हो, ठीक ऐसे ही जिसने सावधानी को पहरे पर रखा हो, उसके भीतर मन की बीमारियां प्रवेश नहीं करतीं। जरा दूर ही रहती हैं। 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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