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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 कौन-सी चीजें आपके अज्ञान को परिपुष्ट करती हैं? पहली तो बात यही कि आप अपने को अज्ञानी मानने को राजी नहीं होते। आप ज्ञानी हैं, यह आवरण हो गया-खोज बंद हो गई। यह बीमारी हो गई। यह ऐसा ही है, जैसे कि कोई बीमार आदमी कहे कि 'मैं स्वस्थ हं, कौन कहता है कि मैं बीमार हं?' अगर बीमार आदमी भी इसको एक तरह का आक्रमण समझ ले कि उसको कोई बीमार कहे, तो वह लड़ने लगे कि 'कौन कहता है कि मैं बीमार हूं? मैं बिलकुल स्वस्थ हूं ; शर्म नहीं आती मुझे बीमार कहते हुए!' तो फिर उसके इलाज का कोई उपाय न रहा। ___ अज्ञानी यही कर रहा है । वह कहता है, 'कौन कहता है, मैं अज्ञानी हूं?' अगर कोई आपकी बात को गलत सिद्ध करे, तो आप लड़ने को तैयार हो जायेंगे। गलत सिद्ध करने में क्या खतरा है? वह आपको सिद्ध कर रहा है कि आप अज्ञानी हैं, यही खतरा है।। दुनिया में लोग सत्य के लिए नहीं लड़ते-मेरी बात सच है, इसलिये लड़ते हैं। ये इतने जो संप्रदाय दिखाई पड़ते हैं, इतने अड्डे दिखाई पड़ते हैं; इनका झगड़ा कोई सत्य का झगड़ा नहीं है। सत्य के लिये क्या झगड़ा हो सकता है? झगड़ा इस बात का है कि जो मैं कहता हूं, वही सत्य है, और कोई सत्य नहीं हो सकता। है कि एक फकीर मरा-एक सफी फकीर मरा । स्वर्ग पहंचा. तो उसने परमात्मा से पहली प्रार्थना की. कि सबसे पहले तो मैं यह जानना चाहता हूं कि स्वर्ग का पूरा विस्तार कितना है? और मैं पूरे स्वर्ग में एक भ्रमण करना चाहता हूं, इसके पहले कि कहीं निवास बनाऊं। परमात्मा ने कहा कि यह उचित नहीं है, नियम विपरीत है। तुम सूफी हो, तुम्हारी जगह तय है । स्वर्ग का वह हिस्सा, जहां सूफी बसते हैं, तुम वहां चले आओ। पर उस सूफी ने जिद बांध ली। उसने कहा कि चाहे मुझे नर्क भेज दें, लेकिन इसके पहले कि मैं अपनी जगह चुनूं, मैं पूरे स्वर्ग को जितना है, देख लेना चाहता हूं। __ पर परमात्मा ने कहा, 'जिद्द क्या यह? कोई ऐसी जिद्द नहीं करता; क्योंकि सभी मानते हैं कि उनका स्वर्ग ही बस स्वर्ग है । जैनी आते हैं, वे अपने स्वर्ग में चले जाते हैं, हिंदू आते हैं, वे अपने स्वर्ग में चले जाते हैं; मुसलमान... । और सभी यही मानते हैं कि उनका स्वर्ग ही मात्र स्वर्ग है, बाकी कोई स्वर्ग है नहीं । तू कैसा आदमी है? यह बात ही ठीक नहीं, नियम विपरीत है! लेकिन तू नहीं मानता और मुझे प्यारा है, इसलिये तुझे मौका देता हूं। लेकिन किसी को बताना मत ।' __तो एक देवदूत साथ कर दिया गया फकीर के । और वह देवदूत उसे ले गया, उसने दिखाया मुसलमानों का स्वर्ग-करोड़ों करोड़ों मुसलमान! यहूदी, ईसाइयों के स्वर्ग-सब दिखाता चला गया। लेकिन सब जगह वह बिलकुल फुस-फुसा फुस-फुसाकर बात करता था। आखिर में उस आदमी से--सूफी से न रहा गया, उसने कहा, 'यह तो ठीक है, लेकिन इतना फुस-फुसाकर क्यों बात करते हो?' उसने कहा कि इन लोगों को पता नहीं चलना चाहिए । यही केवल स्वर्ग में हैं। ये सब... हर एक की यही मान्यता है कि मैं ही स्वर्ग में हूं। अगर मुसलमान को पता चल जाए कि ईसाई भी स्वर्ग में है, तो वह उदास हो जायेगा। सब मजा ही चला गया। ईसाई सब नरक में पड़े हैं। जैन को पता चल जाए कि हिंदू भी चले आ रहे हैं स्वर्ग में तो उसकी सारी भूमि खिसक जायेगी। इनका मजा ही यही है। ये जो इतने आनंदित दिखाई पड़ रहे हैं, इनका मजा ही यह है कि ये समझते हैं कि ये ही केवल स्वर्ग में हैं, बाकी सब नरक में हैं। हर आदमी अपने सत्य को सत्य की सीमा समझता है। सोचता है, जो वह मानता है वही ठीक है। और सारी दुनिया उसको मान लेगी, उसकी चेष्टा होती है। ऐसा व्यक्ति मतवादी होता है, और ऐसा व्यक्ति सदा अज्ञान में घिरा रह जाता है। ज्ञान की तरफ जानेवाले व्यक्ति को इस तरह के कर्म-मल को अपने आसपास इकट्ठा नहीं करना चाहिए। उसे सदा विनम्र, मुक्त, राजी 260 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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