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महावीर-वाणी भाग : 2
सभी व्यक्तियों को तीन ज्ञान संभव हैं आसानी से : श्रुत, मति, अवधि । इन तीन में कोई विशेषता नहीं है । इसलिए तीसरा ज्ञान देखकर जब आप चमत्कृत होते हैं, तो आप नासमझ हैं। तीसरे ज्ञान के कारण लोग महात्मा हो जाते हैं। लेकिन तीसरे ज्ञान से कोई जीवन की स्थिति ऊपर नहीं उठती। ___ आप गये किसी महात्मा के पास, और उसने जाने से ही बता दिया आपका नाम क्या है, आप कहां से आते हैं, आपका घर कैसा है, घर के सामने एक वृक्ष है-बस, आप गये! अब आपने कहा कि मिल गये गुरु, सदगुरु से मिलना हो गया!
इस आदमी ने थोड़ा-सा सूक्ष्म इंद्रियों का प्रयोग किया है, जो कि सभी के पास है। आप प्रयोग न करें. यह बात और है। आपके पास भी रेडियो है, आप न ट्यून करें और न स्टेशन लगायें, तो लटकाये घूमते रहें! इस आदमी ने ट्यून कर लिया, इसमें कोई बड़ी कला नहीं है। मगर इसके रेडियो से आवाज आनी शुरू हो गई, और आप रेडियो लटकाये घम रहे हैं। ___ अवधि ज्ञान तक तीनों बातें बिलकुल सामान्य हैं, उसमें कुछ भी असाधारण नहीं है। लेकिन तीसरा ज्ञान हमें बहुत प्रभावित करता है। कभी आपने खयाल किया कि तीसरा ज्ञान अकसर अशिक्षित लोगों में ज्यादा होता है-ग्रामीण, गंवार, गांव के, उनमें ज्यादा होगा। आदिवासी, उनमें ज्यादा होगा। क्योंकि आप भूल ही गये हैं कि सूक्ष्म इंद्रियां होती हैं। आप तो सिर्फ बुद्धि से जी रहे हैं— श्रुत...आपकी सारी युनिवर्सिटीज श्रुत-ज्ञान पर आधारित हैं। अभी कोई विश्वविद्यालय नहीं जो आपको मति ज्ञान दे। जंगल में जो आदमी है, उसको कोई बुद्धि की ट्रेनिंग तो होती नहीं; और जंगल में कोई सुविधा भी नहीं है उसके पास कि बुद्धि से ज्यादा जी सके । उसको जीना पडता
। शेर हमला करे तो हमला कर दे, तब बुद्धि काम कर सकती है कि अब क्या करना है, लेकिन हमला कर देने के बाद करने को कुछ बचता नहीं। वह जो जंगल में आदमी रह रहा है उसको इंद्रियों से ही सजग नहीं रहना पड़ता, उसको सूक्ष्म इंद्रियों से भी सजग रहना पड़ता है कि कोई शेर की आहट भी न मिल जाये । शेर हमला करे इसके पहले उसे पता होना चाहिये, तो ही बचाव हो सकता है, नहीं तो बचाव नहीं हो सकता है। __ आस्ट्रेलिया में छोटा-सा एक कबीला है, जिसका वैज्ञानिक अध्ययन हो रहा है। वह सबसे चमत्कारी कबीला है । उस कबीले का हर आदमी आपको महात्मा मालूम पड़ेगा, मगर वह कबीला बिलकुल साधारण है। सिर्फ बहुत पुराना है; और सभ्यता से उसका संबंध नहीं है। बड़ी अजीब घटना उस कबीले में घटती है। एक वैज्ञानिक वहां ठहरा हुआ था अध्ययन करने के लिए कि क्या मामला है?
ज्यादा वैज्ञानिक अध्ययन करने जायेंगे तो ये अध्ययन कर पायेंगे कि नहीं, यह तो शक है, लेकिन उनको जरूर बिगाड़ आयेंगे। क्योंकि उनमें भी शक पैदा कर आते हैं। और शक जहां आ गया, वहां अवधि से आदमी नीचे उतर जाता है। अवधि आस्था का तत्व हैं, भरोसे का।
... उस कबीले में कोई आदमी चिट्ठी नहीं लिखता । चिट्ठी लिखना वे जानते नहीं। भाषा, लिपि उनके पास नहीं। पोस्टमैन भी नहीं है, पोस्ट-आफिस भी नहीं है। लेकिन कभी-कभी मित्रों को, प्रियजनों को खबर भेजने की जरूरत पड़ती है। तो हर उस गांव के कबीले में एक छोटा-सा पौधा होता है-गांव के बीच । उस पौधे का उपयोग करते हैं वे। अगर मां का बेटा दस मील दूर है और वह चाहती है कि जल्दी वापिस आ जाये, तो वह पौधे के पास जायेगी। और वहां जाकर अपने बेटे से बात करेगी, जैसा आप फोन के पास करते हैं । वह अपने बेटे से कहेगी कि सुन, मेरी तबियत खराब है, तू जल्दी वापस आ जा, सांझ होते-होते तू वापस आ जाना। और बेटा सांझ होते-होते वापस आ जायेगा। और बेटे से अगर आप पूछे तो वह कहेगा कि दोपहर में मुझे मेरी मां की आवाज सुनाई पड़ी कि मां कह रही है कि जल्दी घर आ जा, मेरी तबियत खराब है।'
इसका वैज्ञानिक अध्ययन हो रहा है, और वैज्ञानिक चकित हए कि यह क्या मामला है?
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