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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 के साथ अपनी पीठ मिलाकर, आंख बंद करके खड़े हो जायें। तो आपको पहली दफा एक नये व्यक्ति का अनुभव होगा, क्योंकि पीठ की तरफ से प्रेयसी बिलकुल भिन्न है। लेकिन सब चीजें बंधी, रुटीन हो गई हैं। कभी आप अपने बच्चे को पास लेकर, उसके गाल को अपने गाल से लगाकर थोड़ी देर शांत बैठे हैं? क्योंकि बच्चा अभी शुद्ध है, अभी उसकी जीवन-ऊर्जा प्रवाहित हो रही है। अगर आप बैठ जाएं अपने बच्चे के पास उसके गाल को गाल से लगाकर, और अनुभव कर सकें, तो आपका बच्चा आपको भी जीवनदायी सिद्ध होगा, आपकी उम्र थोड़ी ज्यादा हो जायेगी। ___ यह अनुभव हुआ है कि कभी-कभी वृद्ध उम्र के लोग जब नयी उम्र की लड़कियों से विवाह कर लेते हैं तो उनकी उम्र बढ़ जाती है। क्योंकि नयी उम्र की लड़की के साथ उनको भी अपनी उम्र नीचे लानी पड़ती है। उससे मिलने को, उससे संबंध बनाने को उन्हें नीचे उतरना पड़ता है; उनके शरीर की जो जड़ता है, उसको उन्हें नीचे लाना पड़ता है। __यह कुछ आश्चर्य न होगा कि बर्टेड रसल जैसा व्यक्ति अपने मरते हए, आखिरी नब्बे वर्ष की उम्र तक भी यवा रहा । क्योंकि अस्सी वर्ष की उम्र तक वह नए विवाह करता चला गया। अस्सी वर्ष की उम्र में बर्टेड रसल ने शादी की एक बीस वर्ष की लडकी से। वह जो युवापन है, वह जो ताजगी है इंद्रियों की, वह बनी रही होगी। रसल इंद्रियवादी था । वह मानता था कि इंद्रिय की जितनी शुद्धता हो जीवन में और इंद्रियों का जितना प्रगाढ़ अनुभव हो, उतना ही जीवन चरम पर पहुंचता है। महावीर ऐसा नहीं मानते। वे मानते हैं, और जीवन के आयाम हैं आगे। लेकिन, हम तो 'श्रुत' पर अटक जाते हैं। हम 'मति' तक भी नहीं पहंच पाते । पशओं जैसी शद्ध इंद्रियां चाहिए साधक के पास, तभी वह सिद्ध हो पायेगा। नहीं तो नहीं हो पायेगा। मगर हमारा तो उल्टा चल रहा है सारा हिसाब । हम साधक उसको कहते हैं, जो इंद्रियों को मार रहा है, जो इंद्रियों को दबा रहा है। अगर आपका साधु संगीत सुन रहा हो, तो आपको शक हो जाये कि बात क्या है? अगर आपका साधु बहुत रस से भोजन कर रहा हो, तो आपको शक हो जाये कि मामला गड़बड़ है! लेकिन साधु की कोशिश यह है हमारी कि वह स्वाद दे नहीं इंद्रिय को, जिव्हा को बिलकुल मार दे कि उसमें कुछ पता ही न चले।। लेकिन, ध्यान रहे उसका मति-ज्ञान कंद हो जायेगा; उसके जानने की इंद्रिय-क्षमता कम हो जायेगी। और जितनी ही यह क्षमता कम होगी, उतना ही उसके जीवन का विस्तार सिकुड़ जायेगा, संकुचित हो जायेगा। ___ इसलिए साधु संकुचित हो जाता है, सिकुड़ जाता है। इसलिए साधु का जीवन आमतौर से आत्मघाती मालूम पड़ता है । वह सब तरफ से अपने को सिकोड़ता जाता है, सिकोड़ता जाता है—कुन्द होता जाता है; खुलता नहीं, मुक्त आकाश नहीं बनता। ___ महावीर की बात समझने जैसी है। महावीर कहते हैं, पहला ज्ञान 'श्रुत', दूसरा ज्ञान 'मति', तीसरा ज्ञान अवधि', लेकिन तीसरा ज्ञान उसी में होगा, जिसका मति-ज्ञान काफी प्रगाढ़ हो । क्योंकि मनुष्य की प्रत्येक इंद्रिय के पीछे छिपी एक सक्ष्म इंद्रिय भी है। अवधि-ज्ञान उस सूक्ष्म इंद्रिय का ज्ञान है-जैसे आप घटनाएं सनते हैं...! ___ हरकोस पश्चिम में बहुत प्रसिद्ध है-पीटर हरकोस । वह दूसरे महायुद्ध में गिर पड़ा । साधारण आदमी था; गिरने से बेहोश हो गया। सिर में चोट लगी, अस्पताल में भरती किया गया। जब अडतालीस घंटे बाद होश में आया तो वह बड़ा चकित हआ। उसे खद भी भरोसा न आया कि उसकी कोई अन्तर-इंद्रिय खुल गई है इस चोट में आकस्मिक, एक्सीडेन्टल! वह जो नर्स पास खडी थी. उसे उस नर्स के भीतर क्या हो रहा है, वह समझ में आने लगा। वह थोड़ा बेचैन भी हुआ। उसने नर्स से पूछा कि 'क्या तुम अपने किसी प्रेमी से मिलने का विचार कर रही हो?' उस नर्स ने कहा कि 'क्या मतलब?' वह भी चौंक गई, क्योंकि भीतर जल्दी इस मरीज को निबटाकर... उसका 252 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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