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________________ पांच ज्ञान और आठ कर्म मैंने सुना है, एक पुलिस स्टेशन पर एक आदमी को पकड़कर लाया गया, जो बुर्का ओढ़कर रास्ते पर चल रहा था। वह किसी दूसरे राष्ट्र का जासूस था। लेकिन उसने बुर्का ऐसा बनाया था और कपड़े उसने पूरे स्त्रियों के पहन रखे थे कि पुलिस आफिसर ने जो आदमी उसे पकड़कर लाया था, उससे कहा कि तुम पहचाने कैसे कि यह आदमी स्त्री नहीं है ? उसने कहा कि यह रास्ते से चला जा रहा था, हीरे-जवाहरात की दुकानें थी, उन पर इसने नजर भी नहीं डाली! शक हो गया कि यह स्त्री नहीं हो सकती, यह बुर्का ही है, अन्दर कोई और है। नसरुद्दीन घर में सफाई कर रहा था। मक्खियां घर में काफी थीं। पत्नी और वह दोनों मक्खियां मार रहे थे। उसने चार मक्खियां मारीं और आकर कहा कि 'दो स्त्रियां हैं और दो पुरुष ।' उसकी स्त्री ने कहा कि तुम भी गजब के खोजी हो गये। तुम मक्खियों को पहचाने कैसे कि कौन कौन मादा? उसने कहा कि 'दो आइने पर बैठी थीं, वे स्त्रियां होनी चाहिए ।' आप क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, क्या छूते हैं - वह भी चुनाव है। गहरे में आप व्याख्या कर रहे हैं। इसलिए आप एक ही किताब अगर हर वर्ष बार-बार पढ़ें तो आप अलग-अलग अर्थ निकालेंगे, क्योंकि अर्थ निकालनेवाला बदल जायेगा। किताब वही है। इसलिए हमने इस देश में यह तय किया था कि गीता या उपनिषद जैसी किताबें सिर्फ पढ़कर रख न दी जायें, जैसा कोई उपन्यास पढ़कर रख देता है, उनका पाठ किया जाए – बार-बार पाठ किया जाये। क्योंकि जो अर्थ आपको दिखाई पड़ेगा, वह गीता का नहीं है। वह आपकी समझ उस समय जैसी होगी...! इसलिए एक व्यक्ति अगर गीता को दस वर्ष बार-बार पढ़े और विकासमान व्यक्ति हो, तो हर बार नये अर्थ खोज लेगा, अर्थ की गहराई बढ़ती चली जायेगी । अनंत जन्मों में पढ़ने के बाद ही कृष्ण का अर्थ पकड़ में आ सकता है, जब अपनी खुद की गहराई उतनी हो जाये । उसके पहले पकड़ में नहीं आ सकता । लेकिन महावीर इंद्रिय, शुद्ध इंद्रिय ज्ञान को ऊंचाई पर रखते हैं। पंडित से ऊंचाई पर रखते हैं बच्चे को, क्योंकि बच्चे का इंद्रिय ज्ञान ज्यादा शुद्ध है। वह चीजों को सफाई से देखता है। अभी उसके पास कोई बुद्धि नहीं है कि जल्दी से व्याख्या करे कि क्या गलत, क्या ठीक ? देखता है। एक छोटे बच्चे की आंख चाहिए, तो आपके ज्ञान में एक वास्तविकता आ जायेगी । ध्यान रहे, सब धर्म आमतौर से 'श्रुत' से उलझे हुए हैं, विज्ञान 'मति' पर चला गया है। विज्ञान इंद्रिय पर भरोसा करता है, शब्दों पर नहीं। इसलिए वैज्ञानिक कहता है : जो दिखाई पड़ता है, वह भरोसे योग्य है; जो अनुभव में आता है, वह भरोसे योग्य है । चार्वाक की पूरी परम्परा का जोर यही था कि जो प्रत्यक्ष है, वह भरोसे योग्य है । इस सुने हुए से क्या अर्थ कि वेद में लिखा है कि परमात्मा है ! परमात्मा को प्रत्यक्ष करके बताओ; अगर वह सामने है, तो ही माना जा सकता है... छुआ जा सके, देखा जा सके ! चार्वाक के कहने में भी अर्थ है। उनका जोर दूसरे ज्ञान पर है। और पहले ज्ञान से दूसरा ज्ञान जरूर कीमती है। इसलिए पश्चिम में विज्ञान का जन्म हुआ, क्योंकि वे इंद्रियवादी हैं। पूरब में विज्ञान का जन्म नहीं हो सका, क्योंकि हम श्रुत से अटके रह गये । हमने इंद्रिय के ज्ञान की कोई फिकर नहीं की कि इंद्रिय के ज्ञान को प्रगाढ़ किया जाये, शुद्ध किया जाये; और इंद्रिय से जो जाना जाता है, उसको सत्य करीब लाया जाये | विज्ञान की सारी कोशिश यही है कि चीजें ठीक से देखी जा सकें। सारे प्रयोग - सारी प्रयोगशालाएं एक ही काम कर रही हैं कि जो इंद्रियां जानती हैं, उसको और शुद्धता से कैसे जाना जा सके । महावीर 'मति' को दूसरे नम्बर पर रखते हैं। अभी पश्चिम में एक नया आन्दोलन चलता है, एनकाउन्टर ग्रुप्स, सेन्सिटिविटी ट्रेनिंग – संवेदनशीलता का प्रशिक्षण कि लोग संवेदनशीलता को बढ़ाएं। अगर महावीर को पता चले तो वे कहेंगे कि अच्छा है; 'श्रुत' से' मति' बेहतर है। पश्चिम में सैकड़ों प्रयोगशालाएं काम कर रही हैं, जहां लोग जाते हैं, और अपनी इंद्रियों की संवेदना को बढ़ाते हैं । Jain Education International 249 For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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