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________________ मुमुक्षा के चार बीज दो बातें : तो एक 'मुमुक्षु-आत्मा' को समझ लेना जरूरी है। दो तरह के लोग हैं : एक जो कोरी जिज्ञासा करते रहते हैं। उस जिज्ञासा के पीछे कोई प्राण नहीं होता। वे कुछ करना नहीं चाहते, वे सिर्फ पूछते रहते हैं। पूछकर जान भी लें तो उनके जीवन में कोई अंतर नहीं आता, सिर्फ जानकारी बढ़ जाती है। वे जो भी इकट्ठा करते हैं, स्मृति में इकट्ठा करते हैं। उनका जीवन उससे रूपांतरित नहीं होता। ऐसी आत्माओं को महावीर ने जिज्ञासु आत्माएं कहा है। ___ जिज्ञासा शुभ है, बुरी नहीं है। लेकिन सिर्फ जिज्ञासा आत्मघातक है। एक आदमी पूछता ही रहे, पूछता ही रहे और इकट्ठा करता रहे जन्मों-जन्मों तक, तो भी कोई रूपांतरण नहीं होगा। और आनंद का कोई अनुभव जानकारी इकठ्ठी करने से नहीं होता । हां जानकारी से सिर्फ इतना ही हो सकता है कि वह आदमी जानकारी के अहंकार से और भी मूर्छित हो जाये । इसलिए पंडित अज्ञानियों से भी ज्यादा गहन अंधकार में भटक जाते हैं। ज्ञान का अहंकार, इस जगत में बड़े-से-बड़ा अहंकार है; धन का अहंकार भी उतना बड़ा नहीं है। इसलिए ज्ञान का अहंकार बचाने के लिए आदमी धन भी छोड़ सकता है, यश भी छोड़ सकता है, पद भी छोड़ सकता है। सब छोड़ सकता है, लेकिन ज्ञान का अहंकार अगर बच जाये तो सब छोड़ने को राजी है। __इस मुल्क में ब्राह्मणों के साथ ऐसा हुआ है। ब्राह्मण के पास न तो धन था और न पद था, लेकिन सम्राट भी उसके पैर छूते थे। ज्ञान का अहंकार मजबूत था। धनी भी उसके पैर छूते थे। धनी भी अनुभव करते थे कि हम ब्राह्मण के सामने निर्धन हैं, और सम्राट भी अनुभव करते थे कि हम ब्राह्मण के सामने शक्तिहीन हैं । तो ब्राह्मण गरीब रहकर भी प्रसन्न था; दीन रहकर भी प्रसन्न था; झोपड़े में रहकर भी एगन था। दसलिए भारत में कोई क्रांति नहीं हो सकी। क्योंकि क्रांति हमेशा ब्राह्मणों के द्वारा होती है। भारत के ब्राह्मण बडे संतष्ट थे। कोई क्रांति का उपाय नहीं था । शूद्र क्रांति नहीं करते, क्योंकि क्रांति का खयाल ही उनको आता है, जिनके पास बड़ी बौद्धिक बेचैनी होती है। ___ मार्क्स ब्राह्मण है, लेनिन ब्राह्मण है, ट्राटस्की ब्राह्मण है, माओ ब्राह्मण है। ये सब इंटेलेक्चुअल्स हैं। ये सब बुद्धिवादी लोग हैं। भारत में माओ और मार्क्स और लेनिन और ट्राटस्की पैदा नहीं हो सके, क्योंकि भारत का सम्राट और धनी भी ब्राह्मण के चरण छू रहा था। व्यवस्था इतनी प्रीतिकर थी, ब्राह्मण के अहंकार को इतनी पोषक थी कि क्रांति का कोई सवाल ही नहीं था। रूस में भी क्रांति होनी बहुत मुश्किल है, क्योंकि जो भारत ने किया था वही रूस कर रहा है। रूस में बुद्धिजीवी का बहुत आदर है। यूनीवर्सिटी का प्रोफेसर, लेखक, कवि, संगीतज्ञ परम आदत हैं। उनके आदर की कोई कमी नहीं है। और जब तक वह आदत हैं, तब तक कोई उपद्रव नहीं हो सकता। ___ ज्ञान का अहंकार सूक्ष्मतम है । और महावीर के हिसाब से जिज्ञासा, मात्र कोरी जिज्ञासा, सिर्फ आपको अहंकार से भर देगी, इसलिए मुमुक्षा चाहिए। जिज्ञासा काफी नहीं है । मुमुक्षा का अर्थ है कि मैं जानने में उत्सुक नहीं हैं। और अगर मैं जानना भी चाहता हूं, तो अपने को रूपांतरित करने के लिए जानना चाहता है। जानना मेरे लिए उपाय है, लक्ष्य नहीं। जानकर ही मैं राजी नहीं हो जाऊंगा, जानकर मैं अपने को बदलना चाहूंगा । जीवन में मुझे रूपांतरण करना है, वह मेरा लक्ष्य है। जीवन की शुद्धि लानी है, मुक्ति लानी है, वह मेरा लक्ष्य है। जीवन में कहीं कोई कलुष न रह जाये, कोई कषाय न रह जाये, जीवन में कोई बंधन न रह जाये, जीवन में कुछ दुख का कांटा न रह जाये, वह मेरा लक्ष्य है। और जानना चाहता हूं तो सिर्फ इसलिए जानना चाहता हूं कि कैसे यह हो सके। ज्ञान साधना है। जिज्ञासु के लिए ज्ञान साध्य है; मुमुक्षु के लिए ज्ञान साधन है, मुक्ति लक्ष्य है। बुद्ध का उल्लेख कीमती है । बुद्ध निरंतर कहते थे, एक आदमी को तीर लगा और वह गिर पड़ा। और वह बेहोश होने के करीब है। और गांव के लोग इकट्ठे हो गये । वे उसका तीर खींचना चाहते हैं। बुद्ध भी उस गांव से गुजरते हैं। वे भी वहां पहुंच गये। लेकिन वह आदमी कहता है, 'पहले तीर निकालने के पहले मुझे यह तो पता हो जाये कि तीर किसने मारा? तीर निकालने के पहले मुझे यह तो 229 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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