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महावीर-वाणी भाग : 2
इसलिए पुराने की धारा में आप बहे चले जाते हैं, नये से अड़चन होती है। ___ इसलिए मन नये को पसंद नहीं करता। जब आप कोई नई बात सुनते हैं, आप फौरन पायेंगे कि भीतर रेजिस्टेन्स है, भीतर विरोध है। जब आप कोई पुरानी बात सुनते हैं, जो आप पहले से ही जानते हैं, और मानते हैं, आप बिलकुल स्वीकार कर लेते हैं, कि बिलकुल ठीक है, इसलिए नहीं कि बिलकुल ठीक है बल्कि इसलिए कि आप आदी हैं, आपको पता है कि ऐसा है। मन को कुछ सीखना नहीं पड़ता । मन सीखने का दुश्मन है। सीखने में प्रवाह है। मन चाहता है, सीखो मत; जो है, वहीं ठहरे रहो।
पशुओं को देखें, पशु कुछ भी नहीं सीखते । सीखने की कोई संभावना ही नहीं पशु में । बामुश्किल, थोड़ा बहुत सर्कस के लिए उनको राजी किया जा सकता है। बाकी, वह भी बामुश्किल! बिलकुल स्थित हैं। ___ अगर अधर्म का आप अर्थ समझते हों, तो पक्के अधार्मिक हैं; क्योंकि जहां उनके बाप-दादे थे, वहीं वे हैं, बाप-दादों के बाप-दादे थे, वहीं वे हैं। कहीं कोई फर्क नहीं हुआ है। बंदर दस लाख साल पहले का था, तो बंदर अभी भी ठीक वैसे ही है। बंदर बड़ा पक्का अनुयायी है अपने बाप-दादों का । प्राचीन का अनुयायी है। सनातन, वही उसकी धारणा है । वह कभी नहीं बदलता । कोई उपद्रव नहीं, कोई क्रांति नहीं, किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं। __आपके हिसाब से तो बंदर ही धार्मिक होना चाहिए। महावीर के हिसाब से वह अधर्म में जी रहा है। आदमी बदलता है। बदलता है, इसलिए आदमी गति करता है, सीखता है, नया अनुसंधान करता है, आविष्कार करता है, खोजता है । नये क्षितिज खोलता चला जाता है और आदमी हमेशा तैयार है, अपने पुराने को छोड़ने, काटने, बदलने को।
इसलिए मैं कहता हूं. महावीर की दष्टि वैज्ञानिक है। विज्ञान कभी भी दावा नहीं करता कि जो हम जानते हैं, वह ठीक है। वह कहता है, अभी तक जो जानते हैं, उस हिसाब से ठीक है। कल जो हम जानेंगे, उस हिसाब से गलत भी हो सकता है। इसलिए महावीर कभी भी नहीं कहते कि यही ठीक है। वे कहते हैं कि इसके विपरीत भी ठीक हो सकता है, इससे भिन्न भी ठीक हो सकता है। यह एक दृष्टि है, और दृष्टियां भी हैं, उनसे ये चीज गलत भी हो सकती है।
एक प्रवाह है जीवन सीखने का, जानने का । हम ज्ञान को पकड़ते हैं, जानने से बचना चाहते हैं । ज्ञान मुर्दा चीज है । मैंने आपसे कुछ कहा, आपने पकड़ लिया, कहा कि बिलकुल ठीक है। लेकिन जानने की प्रक्रिया से आप नहीं गुजरे । ज्ञान को हम पकड़ लेते हैं, जानने से हम बचते हैं। क्योंकि जानना बड़ा कष्टपूर्ण है, जैसे कोई खाल उतारता हो । पुराना सब उतरता है, नए में प्रवेश करना पड़ता है। ___ इसलिए आप देखेंगे कि हमारे तथाकथित धर्मों में युवक उत्सुक नहीं होते, बूढ़े उत्सुक होते हैं । होना उलटा चाहिए । महावीर ने जब अपने जीवन का रूपांतरण किया, तब वे जवान थे। लेकिन मेरे पास जैन भी आते हैं, वे कहते हैं कि अभी तो काफी समय बाकी है, और ये बातें तो अंतिम समय की हैं। अभी कुछ संसार को देख लें, फिर आखिर में...!
असल में मरता हआ आदमी सीखने में बिलकुल असमर्थ हो जाता है। तब सब जड़ हो जाता है, सब ठहर गया होता है। उस ठहराव में आदमी धार्मिक हो जाते हैं, क्योंकि जिसको हम धर्म कहते हैं, वह खुद एक ठहराव हो गया है।
अगर धर्म जीवित हो तो जवान उत्सुक होंगे, अगर धर्म मुर्दा हो तो बूढ़े उत्सुक होंगे। मंदिर में कौन इकट्ठे हैं, इससे पता चल जायेगा कि मंदिर जिंदा है या मर गया है। अगर मंदिर में बूढ़े इकट्ठे हैं तो मंदिर मर चुका है, बहुत पहले मर चुका है। बूढ़ों से मेल खाता है । अगर जवान इकट्ठे हैं तो मंदिर अभी जिंदा है । यह मतलब नहीं है कि बूढ़े मंदिर न जाएं । लेकिन अगर मंदिर जवान हो तो बूढ़ों को जवान होना पड़ेगा, और अगर मंदिर बूढ़ा हो, और जवान उसमें जायें तो उनको बूढ़ा होना पड़ेगा। तभी तालमेल बैठ सकता है।
महावीर का धर्म, युवा का धर्म है। एक बड़ी क्रांति महावीर ने की। हिंदू विचार था कि धर्म अंतिम बात है। चौथे चरण में जीवन
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