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मैं यहां एक अनूठा प्रयोग कर रहा हूं, जैसा कभी नहीं किया गया है। यह मनुष्य जाति के इतिहास में पहली घटना है, जहां सारे धर्म एक साथ डूब रहे हैं, लीन हो रहे हैं। और बिना किसी प्रयास के! यहां बैठ कर हम दोहराते नहीं कि अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान! यह हम दोहराते नहीं, मगर यह घटना घट रही है। यहां अल्लाह और ईश्वर एक के ही नाम हैं, इसे कहने की जरूरत नहीं है— हुए ही जा रहे हैं एक । यहां किसी को पता नहीं चलता कौन हिंदू है, कौन मुसलमान है, कौन ईसाई है, कौन यहूदी है, कौन सिक्ख है। यहां सब इकट्ठे हैं।
और सारे जगत की संपदा मेरी है। मैं आध्यात्मिक संपदा का अपने को हकदार घोषित करता हूं। उसमें जरा भी कुछ छोड़ने को राजी नहीं हूं। क्यों उसे छोटा करूं? पूरा मनुष्य जाति का अतीत इतिहास मेरा है। और यही मैं चाहता हूं कि तुम्हारा भी हो जाए। इसलिए तुम ये बातें ही छोड़ दो - भारतीय, गैर- भारतीय । तुम्हें यह फिकिर ही मिट जानी चाहिए। ये चमड़ी के रंग और ढंग, इन पर तुम ध्यान न दो। ये आदतें गलत हैं। ये संस्कार ओछे हैं। इनको विदा करो।
मनुष्यता एक है और यह पृथ्वी एक हो जाए, तो शांति हो, तो सौमनस्य हो, तो एक भाईचारा हो, एक प्रेम जगे और जगत के न मालूम कितने कष्ट अपने आप समाप्त हो जाएं।
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ओशो
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