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________________ महावीर वाणी भाग : 2 महावीर का जोर है, सत् शास्त्रों का अभ्यास करना एकाग्र चित्त से, क्यों? क्योंकि अगर कोई आदमी एक सत् शास्त्र को पढ़ते वक्त पच्चीस सत् शास्त्रों को सोचता रहे, तो चित्त एकाग्र नहीं होगा। जब पतंजलि को पढ़ना तो सारे जगत को भूल जाना। पतंजलि को ही पढ़ना। और जब महावीर को पढ़ना तो महावीर को ही पढ़ना फिर सारे जगत को, पतंजलि को बिलकुल भूल जाना। लेकिन हमारी तकलीफ यही है कि जो हमने और जान लिया है, वह हमेशा बीच में खड़ा हो जाता है । चित्त कभी एकाग्र नहीं हो पाता, और शास्त्र से कोई संबंध न जुड़ेगा, अगर चित्त पूरी तरह एकाग्र न हो । सारे जगत को भूल जाना। फिर यही समझना कि पतंजलि तो पतंजलि, बुद्ध तो बुद्ध और महावीर तो महावीर । फिर सब कुछ भी नहीं है और। फिर इसमें ही पूरे डूब जाना। इस डुबकी से ही सम्भव होगा कि जीवन बदले । 'गंभीर अर्थ का चिंतन करना ।' हम अर्थों का चिंतन नहीं करते। हम केवल अर्थों के साथ विवाद करते हैं। आपने अगर मुझे सुना तो आप इसकी फिक्र नहीं करते कि जो मैंने कहा है, उसके क्या गम्भीर से गम्भीर अर्थ हो सकते हैं। आप इसकी फिक्र नहीं करते। आप तो अर्थ अभी समझ गये । गम्भीर का और कोई सवाल नहीं है। अब यह अर्थ ठीक है या गलत, इसका आप विचार करते हैं। सत्य के संबंध में ठीक और गलत का विचार करने से कोई हल होनेवाला नहीं है। क्या कहा है, उसमें कितने और गम्भीर उतरा जा सकता है, कितने गहरे जाया जा सकता है। महावीर जैसे व्यक्तियों की वाणी एक पर्त नहीं होती, उसमें हजार पर्तें होती हैं। इसलिए हमने पाठ पर बहुत जोर दिया है। हम नहीं कहते कि पढ़ लेना और किताब रख देना । हम कहते हैं, फिर-फिर पढ़ना । फिर-फिर पढ़ने का क्या मतलब है? फिर-फिर पढ़ने का मतलब है कि कल मैंने एक अर्थ देखा था, आज फिर से पढूंगा। फिर खोजूंगा कि क्या और भी कोई अर्थ हो सकता है, और भी कोई गहरा अर्थ हो सकता है? और महावीर जैसे लोगों की वाणी में जीवनभर अर्थ निकलते आयेंगे। आप जितने गहरे होते जायेंगे, उतने गहरे अर्थ आपको मिलते जायेंगे। जिस दिन आपको अपने भीतर आखिरी गहराई मिलेगी, उस दिन महावीर का आखिरी अर्थ आपको पता चलेगा। इसलिए भाषा कोश में अर्थ मत खोजना, अपने भीतर की गहराई में, एकाग्र ध्यान की गहराई में अर्थ को खोजना । 'चित्त में धृतिरूप अटल शांति और धैर्य रखना।' जल्दी मत करना, क्योंकि यात्रा है लम्बी । इसमें ऐसा मत करना कि आज पढ़ लिया और बात खत्म हो गयी, आज सुन लिया और सब हो गया। यह यात्रा लम्बी, अनंत है यात्रा। तो बहुत धैर्यपूर्वक गति करना । प्रतीक्षा करना, शांति रखना । 'यही निःश्रेयस का मार्ग है।' मोक्ष का मार्ग यही है । छोड़ना, जो गलत है। खोजना, जो सही है और धैर्य रखना अनंत । श्रम, साधना, पर अत्यंत धैर्य से, अत्यंत शांति से । यह मत सोचना कि अभी मिल जायेगा सत्य । अभी भी मिल सकता है। लेकिन अभी उन्हें मिल सकता है जो अनंत तक प्रतीक्षा करने को तैयार हैं। उन्हें अभी इसी क्षण भी मिल सकता है, क्योंकि उतने धैर्य की क्षमता अगर हो, कि अनंत काल तक रुका रहूंगा, तो अभी भी मिल सकता है। वही धैर्य मिलने का कारण बन जाता है। लेकिन हम जल्दी में होते हैं । मेरे पास लोग आते हैं और कहते हैं, दो दिन हो गये, ध्यान करते। अभी तक कुछ दर्शन हुआ नहीं। इनक्योरेबल । इनका कोई इलाज भी करना मुश्किल है । दो दिन ! काफी समय हो गया! अगर बहुत उन्हें समझा ओ बुझाओ तो वे चार दिन कर लेंगे! कितने जन्मों की बीमारी है? कितना कचरा है इकट्ठा ? अभी म्युनिसिपल के कर्मचारी हड़ताल पर चले गये थे, तो दो-चार दिन में कितना कचरा इकट्ठा हो गया था? और आप कितने दिन Jain Education International 136 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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