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________________ महावीर वाणी भाग 2 सोफिस्टिकेटेड, ज्यादा ढंग से करते हैं। बच्चे उतने ढंग से नहीं करते। अब बच्चे हैं छोटे, गुड्डा-गुड्डी का विवाह कर रहे हैं। बूढ़े हैं, राम सीता का जुलूस निकाल रहे हैं। बच्चे गुड्डा-गुड्डी के श्रृंगार में लगे हैं, बूढ़े महावीर स्वामी का श्रृंगार कर रहे हैं। लेकिन गुड्डियां बड़ी हो गयी हैं, बदलीं नहीं। विवाह है, बच्चे भी मजा ले रहे थे, गुड्डों का कर रहे थे, अब ये राम-सीता की बारात निकाल रहे हैं। यह बूढ़ों का बचपना है। बच्चे इतने गम्भीर भी नहीं थे, ये भारी गम्भीर हैं । बस इतना ही फर्क पड़ा है। और बच्चे के गुड्डा-गुड्डी के मामले में कभी कोई हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं होता, इनमें हो जायेगा । बूढ़े ज्यादा उपद्रवी हैं। क्योंकि वे जो भी करते हैं, उसको खेल नहीं मान सकते, क्योंकि उनको उम्र का अनुभव है। लेकिन सीखा उन्होंने कुछ भी नहीं। वहीं के वहीं खड़े हैं। कहीं कोई अंतर न पड़ा। वे वहीं खड़े हैं, उनकी चेतना वहीं खड़ी है, शरीर सिर्फ बूढ़ा हो गया । इसलिए महावीर ने कहा, अनुभवी वृद्ध, सदगुरु । सिर्फ गुरु नहीं कहा, साथ में जोड़ा सदगुरु । क्या फर्क है गुरु और सदगुरु में? गुरु से मतलब तो सिर्फ इतना ही है कि जो आपको खबर दे दे, सूचना दे दे, शास्त्र समझा दे । उसके स्वयं के अस्तित्व से इसका कोई जरूरी संबंध नहीं है - शिक्षक । सदगुरु से मतलब है, जो स्वयं शास्त्र है। जो-जो कह रहा है, वह किसी से सुनकर नहीं कह रहा है, यह उसका अपना अनुभव, अपनी प्रतीति है। वेद में ऐसा कहा है, ऐसा नहीं। गीता में ऐसा कहा है इसलिए ठीक होना चाहिए, ऐसा नहीं। महावीर ने ऐसा कहा है, इसलिए ठीक होगा; क्योंकि महावीर ने कहा है, ऐसा नहीं। ऐसा जो कहता है, वह शिक्षक है साधारण । लेकिन जो अपने अनुभव में परखता है और जो अपने अनुभव में देखता है और अगर कभी कहता भी है कि वेद में ठीक कहा है, तो इसलिए कहता है, कि मेरा अनुभव भी कहता है। वेद कहता है, इसलिए ठीक नहीं, मेरा अनुभव कहता है, इसलिए वेद ठीक । इस फर्क को आप समझ लें । वेद ठीक कहता है, इसलिए मेरा अनुभव ठीक, यह उधार है आदमी। मेरा अनुभव कहता है इसलिए वेद ठीक या वेद गलत । वह आदमी वहीं खड़ा है ज्ञान के स्त्रोत पर, जहां खुद अपनी आंख से देखता है। किताब नम्बर दो हो जाती है, शास्त्र नम्बर दो हो जाते हैं । गुरु के लिए शास्त्र होता है नम्बर एक, सदगुरु के लिए शास्त्र होता है नम्बर दो । शास्त्र भी प्रामाणिक होता है इसलिए कि मेरा अनुभ शास्त्र की गवाही देता है। मैं हूं गवाह । जीसस से कोई पूछता है कि पुराने शास्त्रों के संबंध में तुम्हारा क्या कहना है? जीसस कहते हैं, 'आई एम द विटनेस ।' बड़ी मजे की बात कहते हैं। मैं हूं गवाह । जो मैं कहता हूं, उससे मिलान कर लेना। मेरे अनुभव से जो बात मेल खा जाये, समझना कि ठीक है। नहीं तो गलत है। सदगुरु का मतलब है - जो सत् हो गया। जो अब शिक्षाएं नहीं दे रहा है, स्वयं शिक्षा है। गुरु एक श्रृंखला है, एक परम्परा है। गुरु एक काम कर रहा है। सदगुरु एक जीवन है। इसलिये महावीर ने कहा है, 'सदगुरु अनुभवी वृद्धों की सेवा।' बड़े मजे की बात है कि महावीर कहते हैं, सेवा के अतिरिक्त सत्संग नहीं है। क्योंकि सेवा से ही निकट आना होगा। सेवा से ही विनम्रता होगी । सेवा से ही चरणों में झुकना होगा। सेवा से आंतरिकता होगी। सेवा से धीरे-धीरे अहंकार गलेगा । और सदगुरु की उपस्थिति और शिष्य में अगर सेवा की वृत्ति हो, तो वह घटना घट जायेगी, जिसको हम आंतरिक जोड़ कहते हैं। सिर्फ बैठकर Jain Education International 132 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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