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महावीर-वाणी भाग : 2
अगर सच में ही इस बात का भरोसा है कि उसकी मर्जी, तो फिर ठीक है। फिर आपके लिए कुछ भी अपनी तरफ से जोड़ने का कोई सवाल नहीं है। फिर आप बहते हैं, फिर आप पूरे ही बहें और जो भी हो, ठीक है। अगर इसमें आपको अड़चन मालूम पड़ती हो कि ऐसे हम अपने को कैसे छोड़ सकते हैं, नदी कहीं भी बहा ले जाये, पता नहीं कहां; तो फिर नदी के बाहर निकलकर खड़े हो जायें। फिर यह बात ही छोड़ दें कि उसकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता। फिर तो एक ही बात स्मरण रखें कि पत्ता हिलेगा तो मेरी मर्जी से, नहीं हिलेगा तो मेरी मर्जी से। हिलता है तो मैंने चाहा होगा, इसलिए हिलता है, चाहे मुझे पता न हो; और नहीं हिलता है तो मैंने चाहा होगा कि न हिले, चाहे मुझे पता न हो। मैंने जो किया है, उसके कारण हिलता है और मैं जो किया है, उसके कारण रुकता है। फिर सारी जिम्मेवारी अपने पर ले लेना।। ___ दोनों तरह से लोग पहुंच गये हैं, लेकिन दोनों को मिलाकर अब तक सुना नहीं कि कोई पहुंचा हो । दोनों को मिलानेवाला वही आदमी है, जो चलना ही नहीं चाहता। असल में दोनों को मिलाना एक तरकीब है, एक डिसेप्शन, एक वंचना है, खुद को धोखा है। उसका मतलब यह कि जब जैसा मतलब होगा, जब जैसा अपने अनुकूल होगा, उसको कह लेंगे । जब कोई बुरी बात घटेगी तो कहेंगे, उसकी मर्जी और जब कुछ ठीक हो जायेगा तो कहेंगे, अपना संकल्प। __ मिलाने का मतलब यह होता है कि हम दोनों नावों पर पैर रखेंगे। इसमें होशियारी तो है, चालाकी तो है, लेकिन बहुत बुद्धिमानी नहीं
___ चालाक आदमी दोनों नाव पर पैर रखता है, पता नहीं किसकी कब जरूरत पड़ जाये । चालाकी उनकी ठीक है, लेकिन मूढ़तापूर्ण है, क्योंकि दो नाव पर कोई भी सवार होकर चल नहीं सकता । दो नावों पर जो सवार होता है, वह डूबेगा। और अगर नहीं डूबना है तो नावों को खड़ा रखना पड़ेगा, चलाना नहीं पड़ेगा। फिर वहीं खड़ा रहेगा। वह भी डूबना ही है। ___ महावीर को समझते वक्त मीरा को बीच में मत लायें । महावीर के रास्ते पर मीरा से कहीं भी मिलन नहीं होगा। और मीरा के रास्ते पर महावीर से कोई मुलाकात नहीं होगी। आखिर में जहां महावीर भी खो जाते हैं और मीरा भी खो जाती है, वहां मिलन है।
जब तक महावीर हैं, तब तक संकल्प रहेगा। जब तक मीरा है, तब तक समर्पण रहेगा। और जहां समर्पण भी समाप्त हो जाता है, संकल्प भी समाप्त हो जाता है। मंजिल जब आती है तो रास्ते समाप्त हो जाते हैं।
मंजिल का मतलब क्या है? मंजिल का मतलब है, रास्ते का समाप्त हो जाना, रास्ते से मुक्त हो जाना । मंजिल का मतलब है, रास्ता खत्म हआ। मंजिल रास्ते की पूर्णता है। और जो भी चीज पूर्ण हो जाती है वह मर जाती है, मृत्यु हो जाती है। फल पक जाता है, गिर जाता है। रास्ता पक जाता है, खो जाता है। फिर मंजिल रह जाती है। ___ मंजिल पर मिलन है। सागर में नदियां मिल जाती हैं । जो नदी पूरब की तरफ बही, वह भी जाकर गिर जाती है हिंद महासागर में । जो पश्चिम की तरफ बही है, वह भी जाकर गिर जाती है हिंद महासागर में। अगर रास्ते में उन दोनों का कहीं मिलना हो तो वे नहीं मान सकतीं कि हम दोनों सागर में जा रहे हैं। पूरब चलनेवाली नदी कहेगी पागल हो गयी हो, पश्चिम जा रही हो, सागर पूरब है। पश्चिम जाने वाली नदी कहेगी, पागल तू है, सागर पश्चिम है। सदा से हम गिरते रहे हैं और जानते रहे हैं कि सागर पश्चिम है।
सागर सब ओर है । सागर का मतलब ही है जो सब ओर है । कहीं से भी जाओ, पहुंचना हो सकता है। एक ही बात ध्यान रखना, जाना, रुक मत जाना । तालाब भर नहीं पहुंचते, नदियां तो सब पहुंच जाती हैं। और समझौतावादी तालाब की तरह हो जाते हैं । ठहर जाते हैं, थोड़ा पूरब भी चलते हैं, थोड़ा पश्चिम भी चलते हैं। फिर चारों दिशाओं में चलने की वजह से चक्कर लगाने लगते हैं, फिर अपनी जगह पर ही घूमते रहते हैं। वहीं सूखते हैं, सड़ते हैं।
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