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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 जो उंगली नहीं थी, वह भी उठाने की सामर्थ्य आ गयी। अब उंगली के होने में, न होने में कोई फर्क न रहा। जो उंगली कट गयी थी, हाथ से खून बह रहा था, लेकिन बच्चा मुस्कुराने लगा। क्योंकि जब गुरु ने उंगली कटने पर फिर दुबारा पूछा कि ईश्वर के संबंध में? तो जैसे शरीर की बात भूल ही गया वह । एक क्षण में गुरु की आंखों में झांका, और उसके मुंह पर हंसी फैल गयी । वह बच्चा, जिसको झेन में सतोरी कहते हैं, समाधि, उसको उपलब्ध हो गया। उस बच्चे ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि चमत्कार था उस गुरु का कि उंगली ही उसने नहीं काटी, भीतर मुझे भी काट डाला। लेकिन बाहर जो बैठे थे, बाहर से जो देख रहे होंगे, उनको तो लगा होगा कि यह तो पक्का कसाई मालूम होता है। ___ तो झेन गुरु की जो हिंसा दिखायी पड़ती है, वह दिखायी ही पड़ती है, उसकी अनुकंपा अपार है । और जिस साधना पद्धति में गुरु की इतनी अनुकंपा न हो, वह साधना पद्धति मर जाती है। हमारे पास भी बहुत साधना पद्धतियां हैं, लेकिन करीब-करीब मर गयी हैं। क्योंकि न गुरु में साहस है, न इतनी करुणा है कि वह रास्ते के बाहर जाकर भी सहायता पहुंचाये । नियम ही रह गये हैं। नियम धीरे-धीरे मुर्दा हो जाते हैं। उनका पालन चलता रहता है, मरी हुई व्यवस्था की तरह । हम उन्हें ढोते रहते हैं। लेकिन उनमें जीवन नहीं है। _दूसरे को बदलने की चेष्टा नहीं है झेन गुरु की, लेकिन जिसने अपने को समर्पित किया है बदलने के लिए, वह दूसरा नहीं है, एक। दूसरे को बदलने में कोई अपने अहंकार की तृप्ति नहीं है । जिसने समर्पित कर दिया है—यह बहुत मजे की बात है, जब कोई व्यक्ति किसी के प्रति पूरा समर्पित हो जाता है तो उन दोनों के बीच जो सीमाएं तोड़ती थीं, अलग करती थीं अहंकार की, वे विलीन हो जाती हैं। यह मिलन इतना गहरा है जितना पति-पत्नी का भी कभी नहीं होता । प्रेमी और प्रेयसी का भी कभी नहीं होता, जितना गुरु और शिष्य का हो सकता है। लेकिन अति कठिन है, क्योंकि पति और पत्नी का मामला तो बायोलाजिकल है, शरीर भी साथ देते हैं। गुरु और शिष्य का संबंध स्प्रिचुअल है, बायोलाजिकल नहीं है । जैविक कोई उपाय नहीं है । तो पति और पत्नी तो पशुओं में भी होते हैं, प्रेमी और प्रेयसी तो पक्षियों में भी होते हैं, कीड़े-मकोड़ों में भी होते हैं। सिर्फ गुरु और शिष्य का एकमात्र संबंध है जो मनुष्यों में होता है। बाकी सब संबंध सब में होते हैं। ___ इसलिए जो व्यक्ति गुरु-शिष्य के गहन संबंध को उपलब्ध न हुआ हो, एक अर्थ में ठीक से अभी मनुष्य नहीं हो पाया है। उसके सारे संबंध पाशविक हैं। क्योंकि वे सब संबंध तो पशु होने में भी हो जाते हैं। कोई अड़चन नहीं है। कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन पशुओं में गुरु और शिष्य का कोई संबंध नहीं होता, हो नहीं सकता। यह जो संबंध है, इस संबंध के हो जाने के बाद फासला नहीं है कि हम दूसरे को बदल रहे हैं, हम अपने को ही बदल रहे हैं । इसलिए बुद्ध का जब कोई शिष्य मुक्त होता है, तो बुद्ध कहते हुए सुने गये कि आज मैं फिर तेरे द्वारा पुनः मुक्त हुआ। ___महायान बौद्ध धर्म एक बड़ी मीठी कथा कहता है । वह कथा यह है कि बुद्ध का निर्वाण हुआ, शरीर छूटा, वे मोक्ष के द्वार पर जाकर खड़े हो गये, लेकिन उन्होंने पीठ कर ली। द्वारपाल ने कहा, आप भीतर आयें, युगों-युगों से हम प्रतीक्षा कर रहे हैं आपके आगमन की, और आप पीठ फेरकर क्यों खड़े हो गये हैं! तो बुद्ध ने कहा, 'जिन-जिन ने मेरे प्रति समर्पण किया, जिन-जिन ने मेरा सहारा मांगा, जब तक वे सभी मुक्त नहीं हो जाते, तब तक मेरा मोक्ष में प्रवेश कैसे हो सकता है? तब तक मैं कहीं न कहीं बंधा ही हुआ रहूंगा। इसलिए मैं अकेला नहीं जा सकता हूं।' ___ इसलिए महायान बौद्ध धर्म कहता है कि जब तक पूरी मनुष्यता मुक्त न हो जाये, तब तक बुद्ध द्वार पर ही खड़े रहेंगे। यह कहानी मीठी है, कहानी सूचक है । यह कहानी बहुत गहरे अर्थ लिए हुए है। कहीं कोई बुद्ध खड़े हुए नहीं हैं। हो भी नहीं सकते । खड़े होने का कोई उपाय भी नहीं है। मुक्त होते ही तिरोहित हो जाना पड़ता है। कहीं कोई द्वार नहीं है। लेकिन यह एक मीठे सूत्र की खबर देती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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