SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म : स्वभाव में होना कोई नशा नहीं किये हूं। थोड़ी बुरी हालत में ठीक वैसा ही आदमी। फिर से टटोल रहा है तो जाकर पूछा कि भाई तुम भी ज्यादा पी गये हो? उस आदमी ने कहा- हां। 'इसी मकान में रहते हो?' उसने कहा- हां। 'किस मंजिल पर रहते हो?' उसने कहा- दूसरी मंजिल पर। (हैरानी!) पूछा-जाना चाहते हो? बामुश्किल, इस बार और कठिनाई हुई क्योंकि वह आदमी और भी लस्त-पस्त था। उसे ऊपर जाकर, पहुंचाकर पूछा- इसी दरवाजे में रहते हो? उसने कहा- हां। वह आदमी बहुत हैरान हुआ कि क्या नशेड़ियों के साथ थोड़ी-सी देर में मैं भी नशे में हूं? फिर धक्का दिया और नीचे उतरकर आया। देखा कि तीसरा आदमी और भी थोड़ी बुरी हालत में है। सड़क के किनारे पड़ा रास्ता खोज रहा है। लेकिन ठीक वैसा ही। उसे डर भी लगा कि भाग जाना चाहिए। यह झंझट की बात मालूम पड़ती है। यह कब तक चलेगा? यह आदमी वही मालूम पड़ता है। वही कपड़े हैं, ढंग वही है। थोड़ा और परेशान... पूछा कि भाई इसी मकान में रहते हो? उसने कहा- हां। 'किस मंजिल पर?' 'दूसरी मंजिल पर।' 'ऊपर जाना चाहते हो?' उसने कहा- हां। उसने कहा- बड़ी मुसीबत है। अब इसको और पहुंचा दें। ले जाकर दरवाजे पर धक्का दिया। भागकर नीचे आया कि चौथा न मिल जाए, लेकिन चौथा आदमी नीचे मौजूद था। अब उसमें हिलने-चलने की गति भी नहीं थी। लेकिन जैसे ही उसे पास आकर देखा, वह आदमी चिल्लाया कि 'मुझे बचाओ। यह आदमी मुझे मार डालेगा।' 'मैं तुझे मार डालने की कोशिश नहीं कर रहा हूं । तू है कौन?' उसने कहा- तू मुझे बार-बार जाकर लिफ्ट के दरवाजे से धक्का देकर नीचे पटक रहा है। उस आदमी ने पूछा- 'भले आदमी! तीन बार पटक चुका, तुमने कहा क्यों नहीं?' उसने सोचा कि शायद अब की बार न पटके यह सोचकर । नसरुद्दीन ने कहा- कौन जाने, अब की बार न पटके! लेकिन दूसरा पटकता हो तो हम इतना हंस रहे हैं। हम अपने को ही पटकते चले जाते हैं। वही का वही आदमी, दूसरी बार और थोड़ी बुरी हालत होती है। और कुछ नहीं होता है। जिंदगीभर ऐसा चलता है। आखिर में दुख के घाव के अतिरिक्त हमारी कोई उपलब्धि नहीं होती। ये घाव ही घाव रह जाते हैं, पीड़ा ही पीड़ा रह जाती है। ___ इतना हम जानते हैं, कि अधर्म अमंगल है। और अधर्म से मतलब समझ लेना - अधर्म से मतलब है, दूसरे में सुख को खोजने की आकांक्षा। वह दुख है, वह अमंगल है, और कोई अमंगल नहीं है। जब भी दुख आपको मिले तो जानना कि आपने दूसरे से कहीं सुख पाना चाहा। अगर मैं अपने शरीर से भी सुख पाना चाहता हूं तो भी मैं दूसरे से सुख पाना चाहता हूं। मुझे दुख मिलेगा। कल बीमारी आएगी, कल शरीर रुग्ण होगा, कल बूढ़ा होगा, परसों मरेगा। अगर मैंने इस शरीर से - जो इतना निकट मालूम होता है, फिर भी पराया है – महावीर से अगर हम पूछने जाएं तो वे कहेंगे कि जिससे भी दुख मिल सकता है, जानना कि वह और है। इसे क्राइटेरियन, उसे मापदंड समझ लेना कि जिससे भी दुख मिल सके, जानना कि वह और तुम नहीं हो। तो जहां-जहां Se Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy