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________________ शरणागति : धर्म का मूल आधार कोई कारण नहीं होता। जितना कारण होता है उतना तो बार्गेन हो जाता है, उतना तो सौदा हो जाता है। शरणागति नहीं रह जाती। बुद्ध मुर्दे को उठा रहे हैं तो नमस्कार तो करना ही पड़ेगा। इसमें आपकी खूबी नहीं है। इसमें तो कोई भी नमस्कार कर लेगा। इसमें अगर कोई खूबी है तो बुद्ध की है। आपका इसमें कुछ भी नहीं है। लेकिन अदभुत लोग थे, इस दुनिया में। एक वृक्ष को जाकर नमस्कार करते थे, एक पत्थर को। तब-तब खूबी आपकी होनी शुरू हो जाती है। अकारण, जितनी अकारण होगी- शरण की भावना-उतनी गहरी होगी। जितनी सकारण होगी, उतनी उथली हो जाएगी। जब कारण बिलकुल साफ होते हैं तब बिलकुल तर्कयुक्त हो जाते हैं, उसमें कोई छलांग नहीं रह जाती। और जब बिलकुल कारण नहीं होता, तभी छलांग घटित होती है। तर्तलियन ने, एक ईसाई फकीर ने कहा है कि मैं परमात्मा को मानता हूं क्योंकि उसके मानने का कोई भी कारण नहीं है, कोई प्रमाण नहीं है, कोई तर्क नहीं है। अगर तर्क होता, प्रमाण होता, कारण होता- तो जैसे आप कमरे में रखी कुर्सी को मानते हैं, उससे ज्यादा मूल्य परमात्मा का भी नहीं होता। मार्क्स मजाक में कहा करता था कि 'मैं तब तक परमात्मा को न मानूंगा, जब तक प्रयोगशाला में, टेस्ट-ट्यूब में उसे पकड़कर सिद्ध करने का कोई प्रमाण न मिल जाए। जब हम प्रयोगशाला में उसकी जांच-परख कर लेंगे, थर्मामीटर लगाकर सब तरफ से नाप-तौल कर लेंगे, मेजरमेंट ले लेंगे, तराजू पर रखकर नाप लेंगे, एक्सरे से आप बाहर-भीतर सब उसको देख लेंगे, तब मैं मानूंगा।' और वह कहता था, 'लेकिन ध्यान रखना, अगर हम परमात्मा के साथ यह सब कर सके, तो एक बात तय है कि वह परमात्मा नहीं रह जाएगा- एक साधारण वस्तु हो जाएगी। क्योंकि, जो हम वस्तु के साथ कर पाते हैं- वस्तुओं का तो पूरा प्रमाण है। यह दीवार पूरी तरह है। लेकिन इससे क्या होगा? महावीर के सामने खड़े होकर शरीर तो पूरी तरह होता है। दिखाई पड़ रहा है, पूरे प्रमाण होते हैं। लेकिन वह जो भीतर जलती ज्योति है, वह उतनी पूरी तरह नहीं होती है। उसमें तो आपको छलांग लगानी पड़ती है— तर्क के बाहर, कारण के बाहर। और जिस मात्रा में वह आपको नहीं दिखाई पड़ती है और छलांग लगाने की आप सामर्थ्य जुटाते हैं, उसी मात्रा में आप शरण जाते हैं। नहीं तो सौदे में जाते हैं। ___एक आदमी आपके बीच आकर खड़ा हो जाए मुर्दो को जिला दे, बीमारों को ठीक कर दे, इशारों से घटनाएं घटने लगें तो आप सब उसके पैर पर गिर ही जाएंगे। लेकिन वह शरणागति नहीं है। लेकिन महावीर जैसा आदमी खड़ा हो जाता है, कोई चमत्कार नहीं है। कुछ भी ऐसा नहीं है कि आप ध्यान दें। कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे आपको तत्काल लाभ दिखाई पड़े। कुछ भी ऐसा नहीं जो आपके सिर पर पत्थर की चोट पर, प्रमाण बन जाए। बहुत तरल अस्तित्व, बहुत अदृश्य अस्तित्व और आप शरण चले जाते हैं। तो आपके भीतर क्रांति घटित होती है। आप अहंकार से नीचे गिरते हैं। सब तर्क, सब प्रमाण, सब बुद्धिमत्ता की बातें अहंकार के इर्द-गिर्द हैं। अतळ, विचार के बाहर छलांग, अकारण समर्पण के इर्द-गिर्द है। बुद्ध के पास एक युवक आया था। चरणों में उनके गिर गया। बुद्ध ने उससे पूछा कि मेरे चरण में क्यों गिरते हो? उस युवक ने कहा- क्योंकि गिरने में बड़ा राज है। आपके चरण में नहीं गिरता, आपके चरण मात्र बहाना हैं। मैं गिरता हूं क्योंकि खड़े रहकर बहुत देख लिया, सिवाय पीड़ा के और दुख के, कुछ भी न पाया। __तो बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा कि 'भिक्षु, देखो! अगर तुम मुझे मानते हो कि मैं भगवान हूं, तब मेरे चरण में गिरते हो, तब तुम्हें इतना लाभ न होगा, जितना लाभ यह युवक मुझे बिना भगवान माने उठाये लिए जा रहा है। यह कह रहा है कि मैं गिरता हूं, क्योंकि गिरने का बड़ा आनंद है। और अभी मेरी इतनी सामर्थ्य नहीं है कि शून्य में गिर पाऊं, इसलिए आपको निमित्त बना लिया 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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