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________________ मनुष्यत्व : बढ़ते हुए होश की धारा जितने सूरजों की जांच की है, वह है तीन अरब; तीन अरब सूरज हैं। तीन अरब सूर्यों के परिवार हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि अंदाजन, कम से कम इतना तो होना ही चाहिए, पचास हजार पृथ्वियों पर जीवन होना चाहिए। तीन अरब सूर्यों के विस्तार में कम से कम पचास हजार उपग्रह होंगे जिनमें जीवन होना चाहिए। यह कम से कम है, इससे ज्यादा हो सकता है। यह कम से कम प्रोबेबिलिटी है। जैसे कि मैं एक सिक्के को सौ बार फेंकू तो प्रोबेबिलिटी है कि पचास बार वह सीधा गिरे, पचास बार उलटा गिरे, अंदाजन। न गिरे पचास बार, हम इतना तो कह सकते हैं कि कम से कम पांच बार तो सीधा गिरेगा, पिच्चानबे बार उलटा गिर जाये। अगर इतना भी हम मान लें, तो कम से कम पचास हजार पृथ्वियों पर जीवन होना चाहिए, अरबों-खरबों पृथ्वियां हैं। इन पचास हजार पृथ्वियों पर, सिर्फ एक पृथ्वी पर, हमारी पृथ्वी पर मनुष्य के होने की संभावना प्रगट हुई है। इतना बड़ा विस्तार है तीन अरब सूर्यों का। और तीन अरब सूर्य हमारी जानकारी के कारण। यह अंत नहीं है। हम जहां तक जान पाते हैं, जहां तक हमारे यंत्र पहुंच पाते हैं। अब तो कभी सीमा को न जान पायेंगे, क्योंकि सीमा आगे ही हटती चली जाती है। वे सपने छट गये कि किसी दिन हम पूरा जान लेंगे। अब विज्ञान कहता है, नहीं जान पायेंगे। जितना जानते हैं उतना पता चलता है कि आगे और आगे और है। इतने विराट विश्व में जिसकी हम कल्पना और धारणा भी नहीं कर सकते, सिर्फ इस पृथ्वी पर मनुष्य है। पचास हजार पृथ्वियों पर जीवन है, लेकिन मनुष्य की कहीं कोई संभावना नहीं मालूम पड़ती। इस पृथ्वी पर मनुष्य है, और यह मनुष्य भी केवल कुछ दस लाख वर्षों से है। इसके पहले पृथ्वी पर मनुष्य नहीं था। जानवर थे, पक्षी थे, पौधे थे; मनुष्य नहीं था। इन दस लाख वर्षों में मनुष्य हुआ है। और मनुष्य भी कितना है? अगर हम पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों की संख्या का अंदाज करें तो तीन साढ़े तीन अरब मनुष्य कुछ भी नहीं हैं। एक घर में इतने मच्छर मिल जायें। अगर शुद्ध भारतीय घर हो तो जरूर मिल जायें। संभव लगता है आदमी का होना। आदमी की घटना असंभव घटना है। अगर आदमी न हो तो हम सोच भी नहीं सकते कि आदमी हो सकता है। क्योंकि जहां तीन अरब सूर्य हैं और करोड़ों अरबों पृथ्वियां हैं और कहीं भी मनुष्य का कोई निशान नहीं है, कोई उसके चरण-चिह्न नहीं हैं। अगर इस पृथ्वी पर मनुष्य न हो तो क्या कोई कितना ही बड़ा कल्पनाशील मस्तिष्क सोच सकता है कि मनुष्य हो सकता है? कोई भी उपाय नहीं है। कोई उपाय नहीं है। मनुष्य दुर्लभ है, सिर्फ उसका होना दुर्लभ है। लेकिन महावीर का मनुष्य शब्द से उतना ही अर्थ नहीं है। मनुष्य होकर भी बहुत कम लोग मनुष्यत्व को उपलब्ध हो पाते हैं। वह और भी दुर्लभ है। मनुष्य हम पैदा होते हैं शक्ल सूरत से। मनुष्यता भीतरी घटना है, शक्ल सूरत से उसका बहुत लेना-देना नहीं है। आप शक्ल सूरत से मनुष्य हो सकते हैं और भीतर हैवान हो सकते हैं, भीतर शैतान हो सकते हैं। भीतर होने का कुछ भी उपाय है। शक्ल-सूरत कुछ निश्चित नहीं करती, केवल संभावना बताती है। जब एक आदमी मनुष्य की तरह पैदा होता है तो अध्यात्मिक अर्थों में इतना ही मतलब होता है कि वह अगर चाहे तो मनुष्यत्व को पा सकता है। लेकिन यह मिला हुआ नहीं है, सिर्फ संभावना है, बीज है। आदमी पैदा हुआ है, वह चाहे तो व्यर्थ खो सकता है, बिना मनुष्य बने। मनुष्य बन भी सकता है। किस बात से वह मनुष्य बनेगा? आखिर पशु और मनुष्य में फर्क क्या है? पौधे और मनुष्य में फर्क क्या है? पत्थर और मनुष्य में फर्क क्या है? चैतन्य का फर्क है, और तो कोई फर्क नहीं है। चैतन्य का फर्क है, कांशसनेस का फर्क है। आदमी के पास सर्वाधिक चैतन्य है, अगर हम पशुओं से तौलें तो। अगर हम पशुओं को छोड़ दें और आदमी का चैतन्य तौलें तो कभी चौबीस घंटे में क्षण भर को भी 517 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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