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महावीर-वाणी
भाग : 1
करके धोखा लेते हैं। फिर धोखे टूट जाते हैं, और तब दुख है।
श्रेयार्थी का अर्थ है-जो है वही मैं जानूंगा। कुछ भी जोडूंगा नहीं। यह जो है, दैट विच इज, उसको उघाड़ लूंगा, खोल लूंगा। उसको नग्न देख लूंगा जैसा है। उसमें जरा भी अपनी वासना, अपनी कामना, अपनी आकांक्षा नहीं जोडूंगा। कोई सपना नहीं डालूंगा, सत्य को वैसे देख लूंगा, जैसा है। फिर कोई दुख होने वाला नहीं है। क्योंकि सत्य सदा वैसा ही रहेगा। सपने बदल जाते हैं, सत्य सदा वैसा है। __ किसी में आप मित्र देखते हैं, किसी में शत्रु देखते हैं। वे सब आपके सपने हैं। किसी में सौंदर्य, किसी में कुरूपता, वे सब आपके सपने हैं। जो है, उसे जो देखने लगता है, उसके लिए इस जगत में फिर कोई दख नहीं है। क्योंकि जो है, वह कभी भी बदलता नहीं है।
अब हम सूत्र को लें। इस सूत्र में उतरने के पहले कुछ बुनियादी बातें समझ लेनी जरूरी हैं।
पहली बात-गुरु की धारणा मौलिक रूप से भारतीय है। दुनिया में शिक्षक हुए हैं, गुरु नहीं। शिक्षक साधारण-सी बात है, गुरु बड़ी असाधारण घटना है। शिक्षक और गुरु का शाब्दिक अर्थ एक है, लेकिन अनुभूतिगत अर्थ बिलकुल भिन्न है। शिक्षक से हम वह सीखते हैं, जो वह जानता है। गुरु से हम वह सीखते हैं जो वह है। शिक्षक से हम जानकारी लेते हैं, गुरु से जीवन । शिक्षक से हमारा संबंध बौद्धिक है, गुरु से आत्मगत । शिक्षक से हमारा संबंध आंशिक है, गुरु से पूर्ण । __ गुरु की धारणा मौलिक रूप से पूर्वीय है। पूर्वीय ही नहीं, भारतीय है। गुरु जैसा शब्द दुनिया की किसी भाषा में नहीं है। शिक्षक, टीचर, मास्टर ये शब्द हैं-अध्यापक। लेकिन गुरु जैसा कोई भी शब्द नहीं है। गुरु के साथ हमारे अभिप्राय ही भिन्न हैं। ___ पहली बात-शिक्षक से हमारा संबंध व्यावसायिक है, एक व्यवसाय का संबंध है। गुरु से हमारा संबंध व्यवसायिक नहीं है। आप किसी के पास कुछ सीखने जाते हैं। ठीक है, लेन-देन की बात है। आप उससे कुछ उसे भेंट कर देते हैं, बात समाप्त हो जाती है-यह व्यवसाय है। एक शिक्षक से आप कुछ सीखते हैं सीखने के बदले में उसे कुछ दे देते हैं, बात समाप्त हो सकती है। गुरु से जो हम सीखते हैं उसके बदले में कुछ भी नहीं दिया जा सकता। कोई उपाय देने का नहीं है। क्योंकि जो गुरु देता है उसका कोई मूल्य नहीं है। जो गुरु देता है, उसे चुकाने का कोई उपाय नहीं है। उसे वापस करने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि शिक्षक देता है सूचनाएं, जानकारियां, इन्फर्मेशन। गुरु देता है अनुभव। यह बड़े मजे की बात है कि शिक्षक जो जानकारी देता है, जरुरी नहीं कि वह जानकारी उसका अनुभव हो, आवश्यक नहीं। जो शिक्षक आपको नीति शास्त्र पढ़ाता है और बताता है कि शुभ क्या है, अशुभ क्या है? नीति क्या है, अनीति क्या है? जरूरी नहीं कि वह शुभ का आचरण करता हो। वह सिर्फ शिक्षक है, वह सूचना करता है। गुरु जो कहता है, वह सूचन नहीं है, वह उसके जीवन का आविर्भाव है। ___ तो हम बुद्ध को, महावीर को, कृष्ण को गुरु कहते हैं। गुरु का अर्थ यह है कि वे जो कह रहे हैं, उन्होंने जीया है, जाना ही नहीं। जानने वाले तो बहुत गुरु हैं। वे गांव-गांव में हैं। यूनिवर्सिटीज उनसे भरी हुई पड़ी हैं। वे शिक्षक हैं, गुरु नहीं। जो कुछ जाना गया है, वह उन्होंने संगृहीत किया है, वे आपको दे रहे हैं। वे केवल माध्यम हैं। उनके पास अपना कोई उत्स, अपना कोई स्त्रोत नहीं है। वे उधार हैं। वे जो भी दे रहे हैं उन्होंने कहीं से पाया है। उन्हें किसी और ने दिया है वे बीच के सेत हैं जिनसे जानकारियां यात्राएं करती हैं। एक पीढ़ी मरती है तो जो भी वह पीढ़ी जानती है, दूसरी पीढ़ी को दे जाती है। इस देने के क्रम में शिक्षक बीच का काम करता है, बीच की कड़ी का काम करता है। अगर बीच में शिक्षक न हो तो पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी को सिखा नहीं सकती
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