________________
महावीर-वाणी
भाग : 1
है- अपने ही खिलाफ। उससे कोई आनंद उत्पन्न होने वाला नहीं है। इसलिए महावीर ने इतना जोर दिया है। ___ क्या करें? कैसे मन ध्यान बन जाये? कहां मन को ले जायें? तो मन के धीरे-धीरे अभ्यास करने पड़ते हैं हटाने के। मन को धीरे-धीरे शरीर से हटाने का अभ्यास करना पड़ता है। कभी ऐसा थोड़ा सा प्रयोग करें तो खयाल में आना शुरू हो जायेगा। __ खड़े हैं, आंख बंद कर लें। बायें पैर में मन ले जायें, बायें पैर के अंगूठे तक मन को जाने दें। दायें पैर को बिलकुल भूल जायें। सारी चेतना बायें पैर में घूमने लगे। यह कठिन नहीं है। बायें पैर में चेतना घूमने लगेगी। फिर हटा लें बायें पैर से। फिर दायें पैर में ले जायें, बायें पैर को बिलकुल भूल जायें। दायें पैर में चेतना को घूमने दें। इसे हर अंग पर बदलें, तो आपको फौरन एक बात पता चल जायेगी की चेतना भी एक प्रवाह है आपके भीतर, और जहां आप ले जाना चाहते हैं वहां जा सकता है, और जहां से आप हटाना चाहते हैं वहां से हट सकता है। अभी आपने इसका कभी अभ्यास नहीं किया है, इसलिए खयाल में नहीं है। ___ इसलिए शरीर जहां चाहता है, आपकी चेतना वहां चली जाती है। आप जहां चाहते हैं, वहां नहीं जाती। क्योंकि आपने उसका कोई अभ्यास नहीं किया। अभी भूख लगती है तो चेतना तत्काल पेट में चली जाती है। वह आपसे आज्ञा नहीं लेती कि मैं पेट की तरफ जाऊं। वह चली जाती है। आप कुछ कर नहीं पाते। क्योंकि आपने कभी यह अब तक सोचा ही नहीं कि चेतना का प्रवाह मेरी इंटेंशन, मेरी अभीप्सा पर निर्भर है। इसका थोड़ा प्रयोग करें। ___ रात बिस्तर पर पड़े हैं, सारी चेतना को पैर के अंगूठे में ले जायें। सब तरफ से भूल जायें, सिर्फ अंगूठे रह जायें। ले जायें, भीतर...भीतर...भीतर... अंगूठे में ठहर जायें जाकर। जैसे आपकी आत्मा अंगूठे में ठहर गयी। बहुत लाभ होगा, नींद तत्काल आ जायेगी। क्योंकि मस्तिष्क से अंगूठा बहुत दूर है। जब चेतना सारी वहां पहुंच जाती है, मस्तिष्क खाली हो जाये, तो आप गहरी नींद में गिर जायेंगे।
चेतना को थोड़ा हटाना सीखें। आंख बंद कर लें। कहीं भी एक बिंदु पर चेतना को स्थिर करने की कोशिश करें, आप पायेंगे, जिस बिंदु पर चेतना को ले जायेंगे, वहीं प्रकाश पैदा हो जायेगा। आंख बंद कर लें, सोचें कि सारी चेतना हृदय पर आ गयी, इंटेशनल, अभिप्राय से सारी चेतना को हृदय पर ले आये, हृदय की धड़कन ही केंद्र बन गयी। आप अचानक पायेंगे, हृदय के पास धीमा-सा प्रकाश होना शुरू हो गया।
चेतना को बदलने के ये प्रयोग करते रहें। कभी भी कर सकते हैं, इसमें कोई अड़चन नहीं है। कुर्सी पर खाली बैठे हैं, ट्रेन में, बस में, कार में बिलकुल कर सकते हैं। कहीं कोई अलग समय निकालने की जरूरत नहीं है। धीरे-धीरे आपको लगेगा, आपकी मास्टरी हो गयी। यह मास्टरी वैसी है जैसे कि कोई कार की ड्राइविंग सीखता है। ऐसे ही चेतना की ड्राइविंग सीखनी पड़ती है।
एक आदमी साइकिल चलाना सीखता है। आप भी साइकिल चलाना जानते हैं, लेकिन अब तक कोई बता नहीं सका कि साइकिल कैसे चलायी जाती है। अभी तक तो नहीं बता सका कोई। चलाकर बता सकते हैं आप, लेकिन कैसे चलाई जाती है, क्या है ट्रिक, क्या है सीक्रेट? सीक्रेट सूक्ष्म है। अभ्यास से आ जाता है, लेकिन खयाल में नहीं है। __ साइकिल चलाना एक बड़ी दुर्लभ घटना है, क्योंकि पूरे समय ग्रेविटेशन आपको गिराने की कोशिश कर रहा है। जमीन आपको पटकने की कोशिश कर रही है। दो चक्के पर सीधे आप खड़े हैं, लेकिन प्रतिपल आप गति इतनी रख रहे हैं कि आपको इसके पहले कि इस जमीन पर ग्रेविटेशन गिराये, आप आगे हट गये। इसके पहले कि वहां का गुरुत्वाकर्षण आपको पटके, आप फिर आगे हट गये। गति और गुरुत्वाकर्षण के बीच में आप एक संतुलन बनाये हुए हैं। इसके पहले कि बायें तरफ का गुरुत्वाकर्षण आपको गिराये, आप दायें झुक गये। इसके पहले दायें गिरें, बायें झुक गये। एक गहन संतुलन साइकिल पर चल रहा है।
.
कर लें। कहा नाटकर लें, सोचाक
पायेंगे, हृद
476
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org