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महावीर-वाणी
भाग : 1
मगर आप क्या कर रहे हैं? आप न पंखा चला रहे हैं गले में, न आपने डाक्टर रख छोड़े हैं, लेकिन आप गलती में हैं। आप भी इतना ही कर रहे हैं कि डालो निकालो, डालो निकालो। आप सिर्फ एक यंत्र हैं, जिसमें भोजन डाला जाता है और निकाला जाता है। एक सर्कल है, जब निकल जाये तो फिर डाल लो, जब डल जाये तो निकलने की प्रतीक्षा करो। __ आप जिंदगी भर भोजन डालने और निकालने का एक क्रम हैं। यही है जीवन! अगर इस ऊर्जा में से कुछ ऊर्जा मुक्त नहीं होती
और ऊपर नहीं जाती, तो आपको शरीर के अतिरिक्त किसी चीज का कभी अनुभव नहीं होगा। इसलिए महावीर भोजन के शत्रु नहीं हैं, भोजन के दुश्मन नहीं हैं, जैसा उनके साधु हो गये हैं। महावीर-केवल भोजन ही जीवन नहीं है, भोजन के पार जीवन का विस्तार है-इसके उदघाटक हैं। रात्रि भोजन नहीं, महावीर
त आग्रह है। यह आग्रह इस बात की सूचना है कि यह मामला सिर्फ भोजन का नहीं है, यह कोई गहरी, भीतरी क्रांति का मामला है।
'सूर्योदय के पहले और सूर्योदय के बाद श्रेयार्थी को सभी प्रकार के भोजन-पान आदि की मन से भी इच्छा नहीं करनी चाहिए।' __ यह भी जोड़ा है साथ, 'मन से इच्छा नहीं करनी चाहिए।' आपने किया या नहीं किया यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना मन से इच्छा नहीं करनी चाहिए। तो मैं तो कहूंगा कि अगर कर लेने से मन की इच्छा मिटती हो तो कर लेना बेहतर । अगर न करने से मन की इच्छा बढ़ती हो, तो खतरनाक है। अगर थोड़ा-सा भोजन पेट में डालने से रात भर भोजन की, मन की वासना क्षीण होती हो तो बेहतर बजाय उपवासे रहने के और रात भर मन भोजन के आसपास घूमने के। वह ज्यादा खतरनाक है।
महावीर कहते हैं, रात्रि-भोजन तो करना नहीं है, और रात्रि मन में वासना भी न उठे भोजन की। यह कैसे होगा? यह हमें मुश्किल मालूम पड़ता है। भोजन न करें, यह कोई बड़ी कठिन बात नहीं है, कोई भी कर सकता है। थोड़ा जिद्दी स्वभाव हो तो और आसान मामला है। इसलिए अकसर जिद्दी बच्चे, अभी पर्युषण चलता है, तो जो बच्चे जिद्दी हैं वे भी उपवास कर लेंगे। उनके मां-बाप समझते हैं कि बच्चा बड़ा धार्मिक है। कुल कारण इतना है कि बच्चा उपद्रवी है और पीछे सतायेगा। उसका मतलब यह है कि बच्चा, बच्चा नहीं है, जिद्दी है, बहुत अहंकारी है। और देखता है कि बड़े कर रहे हैं उपवास, तो हम भी करके दिखा देते हैं। और जितना लोग समझाते हैं कि मत करो बेटे, तुम अभी छोटे हो, बड़े होकर करना, उतना उसका अहंकार मजबूत होता है कि अच्छा! छोटे हैं! करके दिखा देते हैं। वह करके दिखा देगा। - यह बच्चा आज नहीं कल उपद्रवी सिद्ध होने वाला है। जरूरी नहीं है कि साधु हो जाये तो उपद्रवी न हो। अधिक साधु तो उपद्रवी होते ही हैं। उपद्रव का मतलब ही इतना है कि यह अहंकार को रस मिलना शुरू हो गया। ___ आप भी थोड़े अहंकारी हों, तो बराबर भोजन छोड़ सकते हैं। भोजन में क्या अड़चन है? लेकिन मन की वासना कैसे छूटेगी ! वह जो रात मन दौड़ेगा भोजन की तरफ, उसका क्या करिएगा? उसको कैसे रोकिएगा? उसे रोका नहीं जा सकता। मन दौड़ेगा ही। उसे जब तक आप मन की ऊर्जा को नई दिशा में प्रवाहित न कर दें, तब तक वह उन्हीं दिशाओं में दौड़ेगा जिसकी उसे आदत है। पेट कहेगा, भूख लगी है, तो मन पेट की तरफ दौड़ेगा। गला कहेगा, प्यास लगी है तो मन गले की तरफ दौड़ेगा। मन का काम ही यही है कि वह शरीर में कहां क्या हो रहा है, इससे आपको सूचित रखे। __एक ही हालत है कि मन किसी इतनी बड़ी चीज में नियोजित हो जाये कि उसे पता ही न चले कि पेट को भूख लगी है कि गले को प्यास लगी है। उसका नाम ही ध्यान है। तो उस दिशा में नियोजित हो जाये। इतना लीन हो जाये किसी और आयाम में कि शरीर भूल ही जाये। जब शरीर भूल जाये तो फिर प्यास नहीं लगती, फिर भूख नहीं लगती है।
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