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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 अब सूत्र'सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद श्रेयार्थी को सभी प्रकार के भोजन, पान आदि की मन से भी इच्छा नहीं करनी चाहिए।' इस संबंध में थोड़ा विचारणीय है। क्योंकि महावीर को मानने वालों ने इस सूत्र को बुरी तरह विकृत कर दिया। जैनों की धारणा केवल इतनी ही रह गयी कि रात्रि में भोजन करने से हिंसा होती है, इसलिए नहीं करना चाहिए। यह बड़ा गौण हिस्सा है। यह मूल हिस्सा नहीं है। और अगर यही सच है तो अब रात्रि में भोजन करने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए। क्योंकि महावीर के वक्त में न बिजली थी, न प्रकाश था, न कुछ था। आज भी गांव के देहात में लोग अंधेरे में रात भोजन करते हैं। अगर इसीलिए महावीर ने कहा था कि रात्रि भोजन करने में कभी कोई कीड़ा है, करकट है, छोटा पतिंगा है कीड़ा, कोई भोजन में गिर जाये, गिर जाता है। दिन में गिर जाता है तो रात में तो बहुत आसान है। और अंधेरे में भोजन, या छोटे-मोटे दीये के प्रकाश में भोजन-अगर महावीर ने इसीलिए कहा था, जैसा कि जैन साधु समझाते रहते हैं कि रात्रि में भोजन करने से हिंसा होती है, अगर महावीर ने इसीलिए कहा था. तो अब इस सत्र की कोई सार्थकता नहीं है। अब तो बिजली का प्रकाश है जो दिन से भी ज्यादा हो सकता है। अब तो कोई इसमें अड़चन नहीं है। अगर यही कारण है, तब तो यह परिस्थितिगत बात थी और अब इसका कोई मूल्य नहीं रह जाता है। लेकिन, यही कारण नहीं है और इसका मूल्य कायम रहेगा। इसके मूल्य को हम समझें। । सूर्योदय के साथ ही जीवन फैलता है। सुबह होती है, सोये हुए पक्षी जग जाते हैं, सोये हुए पौधे जग जाते हैं, फूल खिलने लगते हैं, पक्षी गीत गाने लगते हैं, आकाश में उड़ान शुरू हो जाती है। सारा जीवन फैलने लगता है। सूर्योदय का अर्थ है, सिर्फ सूरज का निकलना नहीं, जीवन का जागना जीवन का फैलना। सूर्यास्त का अर्थ है, जीवन का सिकुड़ना, विश्राम में लीन हो जाना। __ दिन जागरण है, रात्रि निद्रा है। दिन फैलाव है, रात्रि विश्राम है। दिन श्रम है, रात्रि श्रम से वापस लौट आना है। सूर्योदय की इस घटना को समझ लें तो खयाल में आयेगा कि रात्रि-भोजन के लिए महावीर का निषेध क्यों है? क्योंकि भोजन है जीवन का फैलाव । तो सर्योदय के साथ तो भोजन की सार्थकता है। शक्ति की जरूरत है। लेकिन सर्यास्त के बाद भोजन की जरा भी आवश्यकता नहीं है। सूर्यास्त के बाद किया गया भोजन बाधा बनेगा, सिकुड़ाव में, विश्राम में। क्योंकि भोजन भी एक श्रम है। आप भोजन ले लेते हैं तो आप सोचते हैं, काम समाप्त हो गया। गले के नीचे भोजन गया तो आप समझे कि काम समाप्त हो गया। गले तक तो काम शुरू ही नहीं होता, गले के नीचे ही काम शुरू होता है। शरीर श्रम में लीन होता है। भोजन देने का अर्थ है शरीर को भीतरी श्रम में लगा देना। भोजन देने का अर्थ है कि अब शरीर का रोया-रोयां इसको पचाने में लग जायेगा। तो अगर आपकी निद्रा क्षीण हो गयी है, अगर रात विश्राम नहीं मिलता, नींद नहीं मालूम पड़ती, स्वप्न ही स्वप्न मालूम पड़ते हैं, करवट ही करवट बदलनी पड़ती है, उसमें से अस्सी प्रतिशत कारण तो शरीर को दिया गया काम है जो रात में नहीं दिया जाना चाहिए। तो एक तो भोजन देने का अर्थ है, शरीर को श्रम देना। लेकिन जब सूरज उगता है तो आक्सीजन की, प्राणवायु की मात्रा बढ़ती है। प्राण वायु जरूरी है श्रम को करने के लिए। जब रात्रि आती है, सूर्य डूब जाता है तो प्राण वायु का औसत गिर जाता है हवा में। जीवन को अब कोई जरूरत नहीं है। कार्बन डाइ आक्साइड का, कार्बन द्वि औषद की मात्रा बढ़ जाती है जो कि विश्राम के लिए जरूरी है। जानकर आप हैरान होंगे कि आक्सिजन जरूरी है भोजन को पचाने के लिए। कार्बन द्वि औषद के साथ भोजन मुश्किल से पचेगा। मनोवैज्ञानिक अब कहते हैं कि हमारे अधिकतर दुख स्वप्नों का कारण हमारे पेट में पड़ा हुआ भोजन है। हमारी निद्रा की जो अस्त 470 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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