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अरात्रि भोजन : शरीर-ऊर्जा का संतुलन
वासना छूट जाये काम की तो लोभ मोक्ष की वासना बन सकता 1
तो लोभ की गहराई हम समझ लें। क्यों, लोभ के साथ अन्याय नहीं हुआ है। जिन्होंने भी समझा है लोभ को, उन्होंने उसे मूल में पाया है। ग्रीड मूल है। तो लोभ शब्द से हमें समझ में नहीं आता, क्योंकि सुन-सुनकर हम बहरे हो गये हैं । इस शब्द में हमें बहुत ज्यादा दिखायी नहीं पड़ता ।
लोभ का मतलब है कि भीतर मैं खाली हूं और मुझे अपने को भरना है । और यह खालीपन ऐसा है कि भरा नहीं जा सकता। यह खालीपन हमारा स्वभाव है, खाली होना हमारा स्वभाव है। भरने की वासना लोभ है इसलिए लोभ सदा असफल होगा। और कितना ही सफल हो जाये तो भी असफल रहेगा। हम अपने को भर न पायेंगे। हम चाहे धन से, चाहे पद से, यश से, ज्ञान से, त्याग से, व्रत से, नियम से, साधना से, इन सबसे भी भरते रहें तो भी अपने को भर न पायेंगे। वह भीतर विराट शून्य है।
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उस विराट शून्य का नाम ही आत्मा है। तो जब तक कोई व्यक्ति सूना होने को राजी नहीं हो जाता, शून्य होने को, तब तक उ आत्मा का कोई दर्शन नहीं होता। और लोभ हमें शून्य नहीं होने देता, इसलिए लोभ को इतना मूल्य दिया है और इतना उससे छुटकारे की बात की है। लोभ हमें शून्य नहीं होने देता। और लोभ हमें भटकाये रखता है, दौड़ाये रखता है। और जब तक हम भीतर शून्य न हो जायें, तब तक स्वयं का कोई साक्षात्कार नहीं है। क्योंकि शून्य होना ही स्वयं होना है। जब तक मैं भरा हूं, मैं किसी और चीज से भरा हूं। भरने का मतलब ही किसी और चीज से भरे होना है। हम कहते हैं, बर्तन भरा है, बर्तन भरा है इसका मतलब है कि कुछ और इसमें पड़ा है। अगर बर्तन स्वयं है तो खाली होगा, भरा नहीं हो सकता। हम कहते हैं, मकान भरा है, उसका मतलब है, किसी और चीज से भरा है। अगर मकान स्वयं है तो खाली होगा, भरा नहीं हो सकती। हम कहते हैं, आकाश बादलों से भरा है। इसका मतलब है, बादल कुछ और है। जब बादल न होंगे, तब आकाश स्वयं होगा ।
इसे ठीक से समझ लें ।
भराव सदा पराये से होता है, स्वयं का कोई भराव नहीं होता। जब भी आप स्वयं होंगे, शून्य होंगे और जब भी भरे होंगे किसी और से भरे होंगे। वह और धन हो, प्रेम हो, मित्र हो, शत्रु हो, संसार हो, मोक्ष हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बट दि अदर, हमेशा दूसरा होगा। जिससे आप भरते हैं ।
जिसको भरना है, वह दूसरे से भरेगा। जिसको खाली होना है, वही स्वयं हो सकता है। इसका मतलब हुआ कि लोभ स्वयं को भरने की आकांक्षा है। अलोभ, स्वयं के खालीपन में जीने का साहस है। इसलिए लोभ भयंकर है। लोभ ही हमारा संसार है। जब तक मैं सोचता हूं कि किसी चीज से अपने को भर लूं, जब तक मुझे ऐसा लगता है कि भरे बिना मैं चैन में नहीं हूं... ।
आप अकेले में कभी चैन में नहीं होते। हर आदमी तलाश कर रहा है साथी की, मित्र की, क्लब की, सभा की, समाज की । हर आदमी खोज कर रहा है दूसरे की, अकेला होने को कोई भी राजी नहीं । अपने साथ किसी को भी चैन नहीं मिलता। और बड़े मजेदार हैं हम लोग । हम खुद अपने साथ चैन नहीं पाते और सोचते हैं, दूसरे हमारे साथ चैन पायें। हम खुद अपने को अकेले में बर्दाश्त नहीं कर पाते और हम सोचते हैं, दूसरे न केवल हमें बर्दाश्त करें, बल्कि अहोभाव मानें। हम खुद अपने साथ रहने को राजी नहीं हैं, लेकिन हम चाहते हैं दूसरे समझें कि हमारा साथ उनके लिए स्वर्ग है।
अकेला आदमी भागता है जल्दी, किसी से मिलने को । मार्क ट्वैन ने मजाक में एक बड़ी बढ़िया बात कही है। मार्क ट्वैन बीमार था। किसी मित्र ने पूछा कि ट्वैन, तुम स्वर्ग जाना चाहोगे कि नरक? मार्क ट्वैन ने कहा कि इसी चिंतन में मैं भी पड़ा हूं। लेकिन बड़ी दुविधा है, फॉर क्लाइमेट हेवेन इज बेस्ट, ट
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