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अरात्रि भोजन- सूत्र
अत्थंगयंमि आइज्चे, पुरत्था य अणुग्गए । आहारमाइयं सव्वं, भणसा वि न पत्थए । । पाणिवह मुसावायाऽदत्त मेहुण - परिग्गहा विरओ । राइभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो ||
सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद श्रेयार्थी को सभी प्रकार के भोजन-पान आदि की मन से भी इच्छा नहीं करनी चाहिए । हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, परिग्रह और रात्रि - भोजन से जो जीव विरत रहता है, वह निराश्रव अर्थात निर्दोष हो जाता
है
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