SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर वाणी भाग : 1 पदार्थ-डैड कंसेप्ट है। अंग्रेजी का मैटर भी डैड वर्ड है, मरा हुआ शब्द है । अंग्रेजी के मैटर का कुल मतलब होता है जो नापा जा सके। वह मेजर से बना हुआ शब्द है। संस्कृत या हिन्दी के पदार्थ का अर्थ होता है— जो अर्थवान है, अस्तित्ववान है, 'है' । पुदगल का अर्थ होता है— जो हो रहा है, इन द प्रोसेस । प्रोसेस का नाम पुदगल है, क्रिया का नाम पुदगल है। जैसे आप चल रहे हैं। एक कदम उठाया, दूसरा रखा। दोनों कभी आप ऊपर नहीं उठाते। एक उठता है तो दूसरा रख जाता है। इधर एक बिखरता है तो उधर दूसरा तत्काल निर्मित हो जाता है। प्रोसेस चलती रहती है। पदार्थ का एक कदम हमेशा बन रहा है, और एक कदम हमेशा मिट रहा है। आप जिस कुर्सी पर बैठे हैं वह मिट रही है। नहीं तो पचास साल बाद राख कैसे हो जाएगी। जिस शरीर में आप बैठे हैं, वह मिट रहा है। लेकिन बन भी रहा है। चौबीस घंटे आप उसको खाना दे रहे हैं, वायु दे रहे हैं। वह निर्मित हो रहा है । निर्मित होता चला जा रहा है और बिखरता भी चला जा रहा है। लाइफ एंड डेथ बोथ साइमलटेनियस, जीवन और मरण एक साथ दो पैर की तरह चल रहे हैं। महावीर ने कहा- यह जगत पुदगल है। इसमें सब चीजें सदा से हैं- - बन रही हैं, मिट रही हैं। ट्रांसफार्मेशन चलता रहता । न कोई चीज कभी समाप्त होती है, न कभी निर्मित होती है। इसलिए निर्माता का कोई सवाल नहीं है । इसलिए परमात्मा में वासना की कोई जरूरत नहीं है। - - सारे धर्म परमात्मा को जगत के पहले रखते हैं। महावीर परमात्मा को जगत के अंत में रखते हैं। इसका फर्क समझ लें। सारे धर्म परमात्मा को कहते हैं— काज, कारण है। महावीर कहते हैं - इफेक्ट, परिणाम । महावीर का अरिहंत अंतिम मंजिल है । भगवान तब होता है व्यक्ति, जब वह सब पा लिया। पहुंच गया वहां जिसके आगे और कोई यात्रा नहीं। दूसरे धर्मों का भगवान बिगनिंग में है, दुनिया जब शुरू होती है, वहां। जहां दुनिया समाप्त होती है, महावीर की भगवत्ता की धारणा वहां है । तो वे - सब कहते हैं कि दुनिया को बनानेवाला भगवान है - महावीर कहते हैं- - दुनिया को पार कर जानेवाला भगवान है, वन हू गोज़ बियांड । महावीर प्रथम नहीं रखते, अंतिम रखते हैं। काज़ नहीं इफेक्ट, कारण नहीं कार्य । - - दुनिया का भगवान बीज की तरह है, महावीर का भगवान फूल की तरह है। दुनिया कहती है- - भगवान से सब पैदा होता है। महावीर कहते हैं- • जहां जाकर सब खुल जाता है और प्रगट हो जाता है, खिल जाता है, वहां । तो महावीर के जो अरिहंत की, सिद्ध की, भगवान की, भगवत्ता की धारणा है वह चेतना के पूरे खिल जाने की, फ्लावरिंग की है, जहां सब खिल जाता है। इस खिले हुए फूल से जो झरती है सुवास, इस खिले हुए फूल से 'केवलिपन्नत्तो धम्मो', इसको उन्होंने कहा। इस खिले हुए फूल से जो झरती है सुवास, इस खिले हुए फूल से जो आनंद प्रगट होता है, इस खिले हुए फूल का जो स्वभाव है वह केवली द्वारा प्ररूपित धर्म है । और उसे वे कहते हैं- - वह लोक में उत्तम है, वह जो फूल की तरह अंत में खिलता है - क्लाइमेक्स, शिखर । शास्त्र में लिखा हुआ धर्म लोक में उत्तम है, ऐसा महावीर नहीं कहते। नहीं तो वे कहते - शास्त्र प्ररूपित धर्म लोकोत्तम है । वेद को माननेवाला कहता है, वेद में जो प्ररूपित धर्म है वह लोक में उत्तम है। बाईबल को माननेवाला कहता है, बाईबल में जो धर्म प्ररूपित है वह उत्तम है। कुरान को माननेवाला कहता है, कुरान में जो धर्म प्ररूपित है वह उत्तम है। गीता को माननेवाला कहता है, गीता में जो धर्म की प्रारूपना हुई है, वह उत्तम है। महावीर कहते हैं— केवलिपन्नत्तो धम्मो — नहीं, शास्त्र में कहा हुआ नहीं — केवल ज्ञान के क्षण में जो झरता है वही, जीवंत । लिखे हुए का क्या मूल्य है? लिखा हुआ पहले तो बहुत सिकुड़ जाता है । शब्द में बांधना पड़ता है। जीवंत धर्म— अब इसके बहुत अर्थ होंगे। लेकिन केवली प्ररूपित जो धर्म है वह शास्त्र में लिख लिया गया है। तो जैन अब उ Jain Education International 32 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy