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________________ पहले एक प्रश्न। ___ एक मित्र ने पूछा है, यदि कामवासना जैविक, बायोलाजिकल है, केवल जैविक है, तब तो तंत्र की पद्धति ही ठीक होगी। लेकिन यदि मात्र आदतन, हैबिचुअल है, तब महावीर की विधि से श्रेष्ठ और कुछ नहीं हो सकता। क्या है-जैविक या आदतन? दोनों हैं और इसीलिए जटिलता है। ऊर्जा तो जैविक है, बायोलाजिकल है, लेकिन उसकी अभिव्यक्ति बड़ी मात्रा में आदत पर निर्भर होती है। पशु और आदमी में जो बड़े से बड़ा अंतर है, वह यही है, कि पशु की आदत भी बायोलाजिकल है, उसकी आदत भी जैविक है। इसलिए पशुओं में सेक्सुअल पर्वर्सन, कोई काम विकृतियां दिखायी नहीं पड़तीं। आदमी के साथ सभी कुछ स्वतंत्र हो जाता है। आदमी के साथ कामवासना की जैविक-ऊर्जा भी स्वतंत्र अभिव्यक्तियां लेनी शुरू कर देती है। __ जैसे, पशुओं में समलिंगी-यौन, होमोसैक्सुअलिटी नहीं पायी जाती-उन पशुओं को छोड़कर, जो अजायबघरों में रहते हैं या आदमियों के पास रहते हैं। पशु यह सोच भी नहीं सकते अपनी निसर्ग अवस्था में कि पुरुष, पुरुष के प्रति कामातुर हो सकता है, स्त्री, स्त्री के प्रति कामातुर हो सकती है। आदमी इंस्टिंक्ट से, इसकी जो निसर्ग के द्वारा दी गई आदतें हैं, उनसे ऊपर उठ जाता है। वह बदलाहट कर सकता है। उसकी जो ऊर्जा है, वह नये मार्गों पर बह सकती है। तो एक पुरुष पुरुष के प्रेम में पड़ सकता है, एक स्त्री स्त्री के प्रेम में पड़ सकती है। और यह मात्रा बढ़ती ही जाती है। किन्से ने वर्षों के अध्ययन के बाद अमेरिका में जो रिपोर्ट दी है वह यह है कि कम से कम साठ प्रतिशत लोग एकाध बार तो जरूर ही समलिंगी यौन का व्यवहार करते हैं। और करीब-करीब पच्चीस प्रतिशत लोग जीवन भर समलिंगी यौन में उत्सक होते हैं। यह बहुत बड़ी घटना है। - स्त्री का पुरुष के प्रति आकर्षण, पुरुष का स्त्री के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है, लेकिन पुरुष का पुरुष के प्रति, स्त्री का स्त्री के प्रति अस्वाभाविक है। पर अस्वाभाविक, पशुओं को सोचें तो, आदमी के लिए कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। आदमी जड़ आदतों से मुक्त हो गया है, इसलिए ब्रह्मचर्य पशुओं के लिए अस्वाभाविक है, आदमी के लिए नहीं। आदमी चाहे तो ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो सकता है। कोई पशु ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं हो सकता। क्योंकि पशु की कोई स्वतंत्रता नहीं है अपनी ऊर्जा को रूपांतरित करने को, पर आदमी स्वतंत्र है। 423 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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