SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काम वासना है दूसरे की खोज कोई उपयोग नहीं है। अगर शरीर की ही खोज जारी रखनी है, तो विपरीत के बिना कोई उपयोग नहीं है। _वैज्ञानिक कहते हैं कि कभी न कभी स्त्री और पुरुष अलग-अलग नहीं थे। बाइबिल की कहानी बड़ी सच मालूम पड़ती है। बाइबिल में कहानी है कि ईश्वर अकेला रहते-रहते ऊब गया, अकेला-अकेला रहे तो कोई भी ऊब जाये। उसने आदम को पैदा किया। फिर आदम अकेला ऊबने लगा, तो उसकी पसली निकाल कर उसने हव्वा, ईव को पैदा किया, स्त्री को पैदा किया। कीर्कगार्ड ने बड़ा गहरा मजाक किया है। उसने कहा, पहले ईश्वर अकेला ऊब रहा था। फिर उसने आदम को पैदा किया। फिर आदम और ईश्वर ऊबने लगा। फिर उसने आदम की हड्डी से ईव को पैदा किया। फिर ईव और आदम ऊबने लगे, उन्होंने बच्चे पैदा किये-केन और अबेल को पैदा किया। फिर केन, अबेल, आदम, ईव, ईश्वर, सब ऊबने लगे। पूरा परिवार ऊबने लगा। तो फिर उन्होंने पूरा संसार पैदा किया, और अब पूरा संसार ऊब रहा है। लेकिन बाइबिल की कहानी कहती है कि आदम की हड्डी से ईश्वर ने ईव को पैदा किया। यह बात अब तक तो मिथ, पुराण कल्पना थी; लेकिन विज्ञान की खोजों ने सिद्ध किया कि इसमें एक सच्चाई है। ___ जैसे हम पीछे लौटते हैं जीवन में तो अमीबा, जो पहला जीवन का अंकुरण है पृथ्वी पर, उसमें स्त्री और पुरुष एक साथ हैं। उसका शरीर दोनों का है। उसको पत्नी खोजने कहीं जाना नहीं पड़ता। उसकी पत्नी उसके साथ ही जुड़ी है, वह पति पत्नी एक है। वह पहला रूप है अमीबा। फिर बाद में, बहत बाद में अमीबा टा और उसके दो हिस्से हए। __इसलिए स्त्री पुरुष में इतना आकर्षण है, क्योंकि बायोलाजी के हिसाब से वे एक बड़े शरीर के दो टूटे हुए हिस्से हैं, इसलिए वे पास आना चाहते हैं। निकट आना चाहते हैं, जुड़ना चाहते हैं फिर से। संभोग उनकी जुड़ने की कोशिश है। इस कोशिश में उन्हें जो क्षणभर का मेल मालूम पड़ता है, वही उनका सुख है। यह जो जुड़ने की कोशिश है, शरीर के तल पर अर्थपूर्ण है क्योंकि आधे-आधे हैं दोनों, और दोनों को अधूरापन लगता है। पर आत्मा के तल पर न कोई पुरुष है, न कोई स्त्री है। ___इसलिए महावीर कहते हैं, जो स्वरूप को खोज रहा हो, शरीर को नहीं, उसके लिए विपरीत के संसर्ग की सार्थकता तो है ही नहीं, खतरा भी है। क्योंकि जैसे ही विपरीत मौजूद होगा, उसका शरीर प्रभावित होना शुरू हो जायेगा। वह कितना ही अपने को रोके, उसके शरीर के अणु विपरीत के प्रति खिंचने लगेंगे। यह खिंचाव वैसा ही है जैसे हम चुंबक को रख दें और लोहे के कण उसकी तरफ खिंच आयें। ___ जैसे ही पुरुष मौजूद होगा, स्त्री मौजूद होगी, दोनों के शरीरों के कण का रुख आकर्षण का हो जाता है; वे एक दूसरे के करीब आने को उत्सुक हो जाते हैं। आपकी इच्छा और अनिच्छा का सवाल नहीं है। आपकी बायोलाजी, आपके शरीर का ढांचा, आपकी बनावट, आपका होना ऐसा है कि स्त्री और पुरुष के करीब होते ही तत्काल खिंचाव शुरू हो जाता है। उस खिंचाव को आप रोकते हैं, क्योंकि वह मेरी पत्नी नहीं है, वह मेरा पति नहीं है, आप उसको रोकते हैं। वह सभ्यता है, संस्कृति है, नियम है, लेकिन खिंचाव शुरू हो जाता है। वह खिंचाव आपको आत्मा के तल पर जाने से रोकेगा। आपकी ऊर्जा नीचे की तरफ बहने लगेगी। ___ इसलिए महावीर कहते हैं, यह संसर्ग खतरनाक है ब्रह्मचर्य के साधक को। स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन भी, वे कहते हैं, खतरनाक है। विष जैसा है, क्यों? क्योंकि आपकी जो भी वीर्य ऊर्जा है, वह आपके पौष्टिक भोजन से निर्मित होती है। आपकी जो भी कामवासना है वह पौष्टिक भोजन से निर्मित होती है। तो महावीर कहते हैं, इतना भोजन लो, जिससे शरीर चल जाता हो, बस। इससे ज्यादा भोजन, जो अतिरिक्त शक्ति देगा, वह कामवासना बनती है। तो महावीर कहते हैं, यह जो अतिरिक्त भोजन है, यह तुम्हें नहीं मिलता, तुम्हारी कामवासना को मिलता है। 417 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy