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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 अगर मैं धन पा रहा हूं तो किसी का छीनूंगा। अगर मैं सौंदर्य की खोज कर रहा हूं तो किसी न किसी को कुरूप कर दूंगा। मैं कुछ भी कर रहा हूं, बाहर के जगत में कोई न कोई छिनेगा, कोई न कोई पीछे पड़ेगा। लेकिन अगर मैं ध्यान कर रहा हूं, अगर मैं भीतर शांत होने की कोशिश कर रहा हं अगर मैं भीतर एक अंतर्यात्रा पर जा रहा हूं, मौन, होश खोज रहा हूं तो मैं किसी से कुछ भी नहीं छीन रहा हूं। मुझसे किसी को कोई नुकसान नहीं होता, मुझसे किसी को लाभ हो सकता है। ___ महावीर के होने से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ, लाभ बहुत हुआ है। लेकिन संसार में, जितना बड़ा आदमी हो, उतना ज्यादा नुकसान पहुंचानेवाला होता है। वह बड़ा किसी भी दिशा में हो। उसका बड़प्पन ही निर्भर होता है दूसरे से छीनने पर। __ संसार में छीना-झपटी नियम है, क्योंकि शरीर छीना-झपटी का प्रारंभ है। वह मां के गर्भ से ही शुरू हो जाती है, छीना-झपटी। वह फिर जीवनभर चलती जाती है। ___ मोक्ष का अर्थ है, जहां शुद्ध है चेतना, शरीर से मुक्त। जहां कोई संघर्ष नहीं है। जहां होना, दूसरे की हत्या और हिंसा पर निर्भर नहीं है। तो महावीर कहते हैं, इस ऊर्जा का उपयोग उस जगत में प्रवेश के लिए है। यह प्रवेश दुसरे की तरफ दौड़ने से कभी भी न होगा। और कामवासना दूसरे की तरफ दौड़ती है। कामवासना दूसरे से बांधती है, और कामवासना दूसरे पर निर्भर करा देती है। इसलिए कामवासना से जुड़े हुए व्यक्तियों में सदा कलह बनी रहेगी। कलह का मतलब केवल इतना ही है, कि कोई भी आदमी गुलाम नहीं होना चाहता। और कामवासना गुलाम बना देती है। आप किसी को प्रेम करते हैं, तो आप उस पर निर्भर हो जाते हैं। उसके बिना आपको सुख, संतोष, क्षणभर के लिए जो झलक मिलती हो वह नहीं मिल सकती। वह उसके हाथ में है. चाबी उसके हाथ में है. और उसकी चाबी आपके हाथ में हो जाती है। चाबियां बदल जाती हैं। पत्नी की चाबी पति के हाथ में, पति की चाबी पत्नी के हाथ में। निश्चित ही गुलामी अनुभव होनी शुरू हो जाती है। जिसके कारण हमें सुख मिलता है, उसके हम गुलाम हो जाते हैं और जिसके कारण हमें दुख मिल सकता है, उसके कारण भी हम गुलाम हो जाते हैं। फिर गुलामी के प्रति विद्रोह चलता है। अभी एक बहुत विचारशील मनोवैज्ञानिक ने एक किताब लिखी है—दी इंटीमेट एनिमी। वह पति-पत्नी के संबंध में किताब है-आंतरिक शत्रु। आंतरिकता भी बनी रहती है, शत्रुता भी चलती रहती है। शत्रुता अनिवार्य है। पति-पत्नी के बीच मित्रता आकस्मिक है, शत्रुता अनिवार्य है। मित्रता सिर्फ इसलिए है ताकि शत्रुता टूट ही न जाये, जुड़ी रहे। बनी रहे, चलती रहे। जब टूटने के करीब आ जाती है, तो मित्रता है। फिर मित्रता जमा देती है उखड़ा रूप। फिर शत्रुता शुरू हो जाती हैं। शत्रुता अनिवार्य है। उसका कारण है, क्योंकि जिसके प्रति हम निर्भर हो जाते हैं, उसके प्रति दुर्भाव शुरू हो जाता है। उससे बदला लेने का मन हो जाता है, वह दुश्मन हो जाता है। महावीर कहते हैं कि जब तक हम दूसरे के प्रति बह रहे हैं, तब तक हम गुलाम रहेंगे। कामवासना सबसे बड़ी गुलामी है। इसलिए ब्रह्मचर्य को सबसे बड़ी स्वतंत्रता कहा है और इसलिए ब्रह्मचर्य को मोक्ष का अनिवार्य हिस्सा मान लिया महावीर ने । ___ 'जो मनुष्य अपना चित्त शुद्ध करने, स्वरूप की खोज करने के लिए तत्पर है, उसके लिए देह का शंगार, स्त्रियों का संसर्ग, और स्वादिष्ट तथा पौष्टिक भोजन का सेवन विष जैसा है।' ___ जिसे अपना चित्त शुद्ध करना हो, जिसे स्वरूप की उपलब्धि करनी हो, क्यों उसके लिए देह का शंगार, क्यों उसके लिए स्त्री का संसर्ग या पुरुष का संसर्ग, और स्वादिष्ट तथा पौष्टिक भोजन विष जैसा है? क्यों? 414 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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