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धर्म का मार्ग : सत्य का सीधा साक्षात्
जब तक बूढ़ा आदमी सुंदर न हो, तब तक जानना कि जीवन व्यर्थ गया है। जब तक बुढ़ापा सौंदर्य न बन जाये, लेकिन बुढ़ापा कब सौंदर्य बनता है ? जब शरीर तो बूढ़ा हो जाता है, लेकिन भीतर जवानी की ऊर्जा अक्षुण्ण रह जाती है। तब इस बुढ़ापे की झुर्रियों के भीतर से वह जवानी की जो अक्षुण्ण ऊर्जा है, जो वीर्य है, जो शक्ति है, जो बच गयी, जो रूपांतरित हो गयी, उसकी किरणें इन बुढ़ापे की झुर्रियों से बाहर पड़ने लगती हैं, तब एक अनूठे सौंदर्य का जन्म होता है।
इसलिए हमने महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण किसी का भी बुढ़ापे का कोई चित्र नहीं रखा है। अच्छा किया हमने। हम ऐतिहासिक कौम नहीं हैं। हमें तथ्यों की बहुत चिंता नहीं है, हमें सत्यों की फिक्र है जो तथ्यों के भीतर छिपे होते हैं, गहरे में छिपे होते हैं। इसलिए हमने उनको जवान ही चित्रित किया है।
महावीर कहते हैं, जब है शक्ति, तब उसे बदल डालो। पीछे पछताने का कोई भी अर्थ नहीं है।
आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, फिर जायें।
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