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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 भूल करता होगा? ___ क्योंकि सुकरात ने कहा है, कोई जान-बूझकर भूल नहीं कर सकता। यूनान में इस पर लंबा विवाद रहा है और इस विवाद में सारे जगत की संस्कृतियों के अलग-अलग अनुवाद हैं कि कोई आदमी जब भूल करता है तो जान-बूझकर करता है, या कि अनजान करता है। सुकरात ने कहा है, कोई आदमी जान-बूझकर भूल कर ही नहीं सकता। उसकी बात में भी सच्चाई है। कभी आप जान-बूझकर आग में हाथ डाल सकते हैं? असंभव है। जान-बूझकर कोई कैसे भूल करेगा, क्योंकि भूल दुख देती है, पीड़ा देती है। भूल तो अनजाने ही हो सकती है। ___ लेकिन महावीर कहते हैं कि जान-बूझकर भी भूल हो सकती है। जान-बूझकर भूल तब हो सकती है जब आप जानते हैं कि आग में हाथ डालने से हाथ जलेगा ही। लेकिन फिर भी ऐसी परिस्थितियां पैदा की जा सकती हैं कि आप अहंकार वश आग में हाथ डाल दें। अगर यह प्रतियोगिता हो रही हो कि कौन कितनी देर तक आग में हाथ रख सकता है, तो आप जान-बूझकर भी आग में हाथ डाल सकते हैं। अहंकार के कारण आदमी जान-बूझकर भूलकर सकता है। सिर्फ एक ही कारण है जान-बूझकर भूल करने का, अहंकार के कारण। अगर आपके अहंकार को रस मिलता हो तो आप जान-बूझकर भूलकर सकते हैं। कोई गाड़ीवान क्यों साफ-सुथरे राजमार्ग को छोड़कर, ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर चलेगा ! ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर अहंकार को तृप्ति मिलती है। राजमार्ग पर तो सभी चलते हैं, वहां कोई अहंकार को रस नहीं है। जब कोई उल्टे-सीधे मार्ग पर चलता है तो अहंकार को रस मिलता है। __एवरेस्ट पर चढ़ने में कौन सा रस मिलता होगा? एवरेस्ट की चोटी पर खड़े होकर क्या उपलब्धि होती है? जब तेनसिंह और हिलेरी पहली दफे एवरेस्ट पर खड़े हो गए होंगे, तो उन्होंने क्या पाया होगा? एक बड़ी सूक्ष्म अहंकार की तृप्ति—जहां कोई भी नहीं पहुंच पाया वहां पहुंचनेवाले वे पहले मनुष्य हैं। और तो कुछ भी एवरेस्ट पर मिलने को नहीं है। यात्रा के अंत पर मिलता क्या है? यात्रा के अंत पर मिलता है, अहंकार की तृप्ति । ___ तो जो आदमी ऊबड़-खाबड़ मार्ग चुनता है जीवन में, वह जानकर चुनता है। सीधे रास्ते पर तो सभी चलते हैं। राजमार्ग पर चलना भी कोई चलना है ? जब आदमी ऐसे बीहड़ रास्ते पर चलता है, जहां चलना दुर्गम है, जहां एक-एक कदम उठाना मुश्किल है, जहां हर घड़ी कष्ट, हर घड़ी खतरा है; तो अहंकार को बड़ा रस आता है। नीत्शे ने कहा है, 'लिव डेंजरसली, खतरनाक ढंग से जियो।' क्योंकि नीत्शे कहता है, जीवन में एक ही तृप्ति है, और वह तृप्ति है पावर, शक्ति। लेकिन शक्ति का अनुभव तभी होता है, जब हम विपरीत से जूझते हैं। सरल के साथ शक्ति का अनुभव नहीं होता। जहां कोई भी चल सकता है, वहां शक्ति का कैसा अनुभव ? जहां बच्चे भी निरापद चल लेते हैं, जहां अंधे भी चल लेते हैं, वहां शक्ति का क्या अनुभव? शक्ति का अनुभव तो वहां है, जहां कदम-कदम पर कठिनाई है, जहां पहुंचना असंभव है। इसलिए अहंकारी ऐसे रास्ते चुनता है, जो पहंचाने के लिए नहीं होते हैं, सिर्फ अहंकार के संघर्ष के लिए होते हैं। मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर ऊबड़-खाबड़ विषम रास्ते चुन लेता है, क्योंकि वहां उसके अहंकार की प्रतिष्ठा हो सकती है। तो मूर्खता का गहनतम सूत्र है अहंकार। मूर्खता का संबंध ज्ञान से नहीं है, अज्ञान से नहीं है। मूर्खता का संबंध अहंकार से, इगो से है। जितना अहंकारी व्यक्ति होगा, उतना मूर्ख होगा। मजा यह है कि आप अपने ज्ञान का उपयोग भी अपनी मूर्खता के लिए कर सकते हैं, क्योंकि आप अपने ज्ञान से भी अपने अहंकार 370 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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