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महावीर-वाणी भाग : 1
जीयेंगे। ___ जीना कभी हो ही नहीं पाता। जीना कभी हो ही नहीं पाता, लेकिन तब सारी स्थिति बड़ी असंगत, बेतुकी मालूम पड़ती है। अगर मैं इन सज्जन से कहूं तो उनको दुख लगेगा। मैंने सुन लिया और उनसे कुछ कहा नहीं। अगर मैं इनसे कहूं कि बड़ी अजीब बात है, तुम्हारे बेटे भी यही करेंगे कि अपने बेटों के जीने के लिए। ___ मगर इस सारे उपद्रव का अर्थ क्या है? कोई आदमी जी नहीं पाता, और सब आदमी उनके लिए चेष्टा करते हैं जो जीयेंगे, और वे भी किन्हीं और के जीने के लिए चेष्टा करेंगे। इस सारे..इस सारी कथा का अर्थ क्या है?
कोई अर्थ नहीं मालूम पड़ता। अर्थ मालुम पड़ेगा भी नहीं, क्योंकि जिस प्रवाह में हम खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं, न हम खड़े हो सकते हैं, न हमारे बेटे खड़े हो सकते हैं, न उनके बेटे खड़े हो सकते हैं; न हमारे बाप खड़े हुए, न उनके बाप कभी खड़े हए। जिस प्रवाह में हम खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें कोई खड़ा हो ही नहीं सकता। इसलिए एक ही उपाय है कि हम सिर्फ आशा कर सकते हैं कि हमारे बेटे खड़े हो जायेंगे, जहां हम खड़े नहीं हुए। इतना तो साफ हो जाता है कि हम खड़े नहीं हो पा रहे, फिर भी आशा नहीं छूटती। चलो, हमारे खून का हिस्सा, हमारे शरीर का टुकड़ा कोई खड़ा हो जायेगा। लेकिन जब आप खड़े नहीं हो पाये, तो ध्यान रखें, कोई भी खड़ा नहीं हो पायेगा। असल में जहां आप खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं, वह जगह खड़े होने की है ही नहीं।
महावीर कहते हैं—'जरा और मरण के तेज प्रवाह में बहते हुए जीव के लिए धर्म ही एकमात्र शरण है'। इस प्रवाह में जो शरण खोजेगा, उसे शरण कभी भी नहीं मिलेगी। इस प्रवाह में कोई शरण है ही नहीं। यह सिर्फ प्रवाह है। तो महावीर के दो हिस्से ठीक से समझ लें।
एक-जिसे हम जीवन कहते हैं, उसे महावीर जरा और मरण का प्रवाह कहते हैं। उसमें अगर खड़े होने की कोशिश की तो आप खड़े होने की कोशिश में ही मिट जायेंगे। खड़े नहीं हो पायेंगे। उसमें खड़े होने का उपाय ही नहीं है। और ऐसा मत सोचना, जैसा कि कुछ नासमझ सोचते चले जाते हैं जैसा कि नेपोलियन कहता है कि मेरे शब्दकोश में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं है। यह बचकानी बात है। यह बहुत बुद्धिमान आदमी नहीं कह सकता। और नेपोलियन बहत बुद्धिमान हो भी नहीं सकता। क्योंकि वह कहता है कि मेरे शब्दकोश में असंभव जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन इस कहने के दो साल बाद ही वह जेलखाने में पड़ा हआ है—हेलना के। - सोचता था सारे जगत को हिला दूं। सोचता था, पहाड़ों को कह दूं हट जाओ, तो उन्हें हटना पड़े। लेकिन हेलना के द्वीप में एक दिन सुबह घूमने निकला है और एक घासवाली औरत पगडंडी से चली आ रही है। नेपोलियन के सहयोगी ने चिल्लाकर कहा कि ओ घसियारिन, रास्ता छोड़ दे। लेकिन घसियारिन ने रास्ता नहीं छोड़ा। क्योंकि हारे हुए नेपोलियन के लिए कौन घसियारिन रास्ता छोड़ने को तैयार हो सकती है? और मजा यह है कि अंत में नेपोलियन को ही रास्ता छोड़ कर नीचे उतर जाना पड़ा और घसियारिन रास्ते से गुजर गयी। __ यह वही नेपोलियन है जिसने कुछ ही दिन पहले कहा था कि मेरे शब्दकोश में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं है। अगर मैं आल्प्स पर्वत से कहूं कि हट, तो उसे हटना पड़े। वह एक घसियारिन को भी नहीं कह सकता कि हट। ___ महावीर कहते हैं कि कुछ असंभव है। बुद्धिमान आदमी वह नहीं है, जो कहता है कि कुछ भी असंभव नहीं है। न ही वह आदमी बुद्धिमान है जो कहता है, सभी कुछ असंभव है। बुद्धिमान आदमी वह है, जो ठीक से परख कर लेता है कि क्या असंभव है और
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