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धर्म : एक मात्र शरण
दिन जीर्ण होना शुरू हो गया, उसी दिन बूढ़ा होना शुरू हो गया। फूल खिला और कुम्हलाना शुरू हो गया। खिलना और कुम्हलाना हमारे लिए दो चीजें हैं, फूल के लिए एक ही प्रक्रिया है। ___ अगर हम जीवन को देखें, तो वहां चीजें टूटी हुई नहीं हैं, सब जुड़ा हुआ है, सब संयुक्त है। जब आप सुखी हुए, तभी दुख आना शुरू हो गया। जब आप दुखी हुए, तभी सुख आना शुरू हो गया। जब आप बीमार हुए, तभी स्वास्थ्य की शुरुआत; जब आप स्वस्थ हुए, तभी बीमारी की शुरुआत। लेकिन हम तोड़कर देखते हैं। तोड़कर देखने में आसानी होती है। क्यों आसानी होती है? क्योंकि तोड़ कर देखने में बड़ी जो आसानी होती है वह यह कि अगर हम स्वास्थ्य और बीमारी को एक ही प्रक्रिया समझें, तो वासना के लिए बड़ी कठिनाई हो जायेगी । अगर हम जन्म और मृत्यु को एक ही बात समझें, तो कामना किसकी करेंगे, चाहेंगे किसे? हम तोड़ लेते हैं दो में। जो सुखद है, उसे अलग कर लेते हैं; जो दुखद है, उसे अलग कर लेते हैं मन में। जगत में तो अलग नहीं हो सकता। अस्तित्व तो एक है। विचार में अलग कर लेते हैं। फिर हमें आसानी हो जाती है। ___ जीवन को हम चाहते हैं, मृत्यु को हम नहीं चाहते। सुख को हम चाहते हैं, दुख को हम नहीं चाहते। और यही मनुष्य की बड़ी से बड़ी भूल है। क्योंकि जिसे हम चाहते हैं और जिसे हम नहीं चाहते, वे एक ही चीज के दो हिस्से हैं। इसलिए हम जिसे चाहते हैं उसके कारण ही हम उसको निमंत्रण देते हैं। और जिसे हम नहीं चाहते हैं, उसे हटाते हैं मकान के बाहर। और हम उसके साथ उसे भी विदा कर देते हैं, जिसे हम चाहते हैं।
आदमी की वासना टिक पाती है चीजों को खण्ड-खण्ड बांट लेने से।
अगर हम जगत की समग्र प्रक्रिया को देखें, तो वासना को खड़े होने का कोई उपाय नहीं है। तब अंधेरा और प्रकाश, दुख और सुख, शांति और अशांति, जीवन और मृत्यु एक ही चीज के हिस्से हो जाते हैं।
महावीर कहते हैं-'जरा और मरण के तेज प्रवाह में।'
जरा का अर्थ है—प्रत्येक चीज जीर्ण हो रही है। एक क्षण भी कोई चीज बिना जीर्ण हुए नहीं रह सकती। होने का अर्थ ही जीर्ण होना है। अस्तित्व का अर्थ ही परिवर्तन है। तो बच्चा भी क्षीण हो रहा है, जीर्ण हो रहा है। महल भी जीर्ण हो रहा है। यह पृथ्वी भी जीर्ण हो रही है। यह सौर परिवार भी जीर्ण हो रहा है। यह हमारा जगत भी जीर्ण हो रहा है। और एक दिन प्रलय में लीन हो जायेगा, जो भी है। ___ महावीर ने बड़ी अदभुत बात कही है-महावीर कहते हैं जो भी है उसे हम अधूरा देखते हैं। इसलिए कहते हैं—'है'। अगर हम ठीक से देखें तो हम कहेंगे, जो भी है, वह साथ में हो रहा है, साथ में नहीं भी हो रहा है। दोनों चीजें एक साथ चल रही हैं। जैसे जन्म और मौत दो पैर हों और जीवन दोनों पैरों पर चल रहा हो। जो भी है वह हो भी रहा है और साथ ही नहीं भी हो रहा है। जीर्ण भी हो रहा है। __इसलिए महावीर की बात थोड़ी जटिल मालूम पड़ेगी, क्योंकि हमें फिर भाषा में हमें आसानी पड़ती है। यह कहना आसान होता है कि फलां आदमी बच्चा है, फलां आदमी जवान है, फलां आदमी बूढ़ा है। लेकिन यह हमारा विभाजन ऐसे ही है जैसे हम कहें, यह गंगा हिमालय की, यह गंगा मैदानों की, यह गंगा सागर की; लेकिन गंगा एक है। वह जो पहाड़ पर बहती है, वही मैदान में बहती है। वह जो मैदान में बहती है. वही सागर में गिरती है।
बच्चा, जवान, बूढ़ा, एक धारा है; एक गंगा है। बांट के हमें आसानी होती है। हमारी आसानी के कारण हम असत्य को पकड़ लेते हैं। ध्यान रखें हमारे अधिक असत्य आसानियों के कारण, कन्वीनिएंस के कारण पैदा होते हैं। सविधापूर्ण हैं, इसलिए असत्य
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