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________________ सामायिक : स्वभाव में ठहर जाना बड़े मजेदार लोग हैं। हम जब नरक में होते हैं, तब हम ध्यान वगैरह के बाबत सोचने लगते हैं। जब आदमी दुख में होता है तो वह पूछता है शांति कैसे मिले। अशांति में होता है तो पूछता है शांति कैसे मिले। मेरे पास लोग आते हैं और वे कहते हैं, और कहते हैं; सुनते हैं ध्यान से बड़ी शांति मिलती है तो हमें ध्यान का रास्ता बता दीजिए। और मजा यह है कि जो अशांति उन्होंने पैदा की है उसमें से कुछ भी वे छोड़ने को तैयार नहीं हैं। अशांति उन्होंने पैदा की है, पूरी मेहनत उठायी है, श्रम किया है। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने गांव के फकीर के दरवाजे को रात दो बजे खटखटा रहा है। वह फकीर उठा, उसने कहा-भई इतनी रात! और नीचे देखा तो नसरुद्दीन खड़ा है। तो उसने कहा-नसरुद्दीन कभी तुझे मस्जिद में नहीं देखा, कभी तू मुझे सुनने-समझने नहीं आता। आज दो बजे रात! फिर भी फकीर नीचे आया। कोई हर्ज नहीं, रात दो बजे आया। पास आया तो देखा कि शराब में डोल रहा है, नशे में खड़ा है। नसरुद्दीन ने पूछा कि जरा ईश्वर के संबंध में पूछने आया हूं। उस फकीर ने कहा कि सुबह आना। व्हेन यू आर सोबर, कम देन। जब होश में रहो तब आना। नसरुद्दीन ने कहा-बट द डिफिकल्टी इज व्हेन आइ एम सोबर, आइ डैम केअर अबाउट योर गाड। जब मैं होश में होता हूं तब तुम्हारे ईश्वर की मुझे चिंता ही नहीं होती है। यह तो मैं नशे में हूं इसीलिए आया हूं। ईश्वर है या नहीं? हम सब ऐसी ही हालत में पहुंचते हैं। जब हम सुख में होते हैं तब हमें ध्यान की जरा भी चिंता नहीं पैदा होती और जब हम दुख में होते हैं तब हमें ध्यान की चिंता पैदा होती है। और कठिनाई यह है कि दुखी चित्त को ध्यान में ले जाना बहुत कठिन है, क्योंकि दुखी चित्त गलत ध्यान में लगा हुआ होता है। दुख का मतलब ही गलत ध्यान है। जब आप पैर के बल खड़े होते हैं तब आपकी चलने की कोई इच्छा नहीं होती। जब आप सिर के बल खड़े होते हैं तब आप मुझसे पूछते हैं आकर कि चलने का कोई रास्ता है? और अगर मैं आपसे कहूं कि जब आप पैर के बल खड़े हों तब ही चलने का रास्ता काम कर सकता है, तो आप कहते हैं कि जब हम पैर के बल खड़े होते हैं तब तो हमें चलने की इच्छा ही नहीं होती। ___ इसलिए महावीर ने पहले तो गलत ध्यान की बात की है ताकि आपको साफ हो जाए कि आप गलत ध्यान में तो नहीं हैं। क्योंकि गलत ध्यान में जो है उसे ध्यान में ले जाना अति कठिन हो जाता है। अति कठिन इसलिए नहीं कि नहीं जाएगा। अति कठिन इसलिए है कि वह गलत ध्यान का प्रयास जारी रखता है। जब आप कहते हैं, मैं शांत होना चाहता हूं तब आप अशांत होने की सारी चेष्टा जारी रखते हैं, और शांत होना चाहते हैं। और अगर आपसे कहा जाए, अशांत होने की चेष्टा छोड़ दीजिए, तो आप कहते हैं वह तो हम समझते हैं, लेकिन शांत होने का उपाय बताएं। और आपको पता ही नहीं है कि शांत होने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता है। सिर्फ अशांत होने की चेष्टा जो छोड़ देता है वह शांत हो जाता है। शांति कोई उपलब्धि नहीं है, अशांति उपलब्धि है। शांति को पाना नहीं है, अशांति को पा लिया है। अशांति का अभाव शांति बन जाता है। गलत ध्यान का अभाव कि ध्यान की शुरुआत हो जाती है। तो गलत ध्यान का अर्थ है-अपने से बाहर किसी भी चीज पर एकाग्र हो जाना। दि अदर ओरिएंटेड कांशसनैस, दूसरे की तरफ बहती हई चेतना गलत ध्यान है। और इसलिए महावीर ने परमात्मा को कोई जगह नहीं दी है। क्योंकि परमात्मा की तरफ बहती हई चेतना को भी महावीर कहते हैं गलत ध्यान। क्योंकि परमात्मा आप दूसरे की तरह ही सोच सकते हैं और अगर स्वयं की तरह सोचेंगे तो बड़ी हिम्मत चाहिए। अगर आप यह सोचेंगे कि मैं परमात्मा हूं तो बड़ा साहस चाहिए। एक तो आप न सोच पाएंगे और आपके आसपास के लोग भी न सोचने देंगे कि आप परमात्मा हैं। और जब कोई सोचेगा कि मैं परमात्मा हूं तो फिर परमात्मा की तरह जीना भी पड़ेगा। क्योंकि सोचना खड़ा नहीं हो सकता जब तक आप जिएं न। सोचने में खून न आएगा जब तक आप जिएंगे नहीं। 315 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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