________________
ग्यारहवां तप या पांचवां अंतर-तप है ध्यान। जो दस तपों से गुजरते हैं उन्हें तो ध्यान को समझना कठिन नहीं होता। लेकिन जो केवल दस तपों को समझ से समझते हैं, उन्हें ध्यान को समझना बहुत कठिन होता है। फिर भी कुछ संकेत ध्यान के संबंध में समझे जा सकते हैं। ध्यान को तो करके ही समझा जा सकता है, इशारे कुछ बाहर से ध्यान के संबंध में समझे जा सकते हैं। ध्यान प्रेम जैसा है—जो करता है, वही जानता है; या तैरने जैसा है—जो तैरता है, वही जानता है। __ तैरने के संबंध में कुछ बातें कही जा सकती हैं, और प्रेम के संबंध में बहुत बातें कही जा सकती हैं। फिर भी प्रेम के संबंध में कितना भी समझ लिया जाए तो भी प्रेम समझ में नहीं आता। क्योंकि प्रेम एक स्वाद है, एक अनुभव है, एक अस्तित्वगत प्रतीति है। तैरना भी एक एक्जिस्टेंशियल, एक सत्तागत प्रतीति है। आप दूसरे व्यक्ति को तैरते हुए देखकर भी नहीं जान सकते कि वह कैसा अनुभव करता है। आप दूसरे व्यक्ति को प्रेम में डूबा हुआ देखकर भी नहीं जान सकते कि उसे प्रेम किन-किन यात्राओं पर ले जाता है। ध्यान में खड़े महावीर को देखकर भी नहीं जान सकते कि ध्यान क्या है।
ध्यान के संबंध में महावीर स्वयं भी कुछ कहें तो भी नहीं समझा पाते ठीक से कि ध्यान क्या है? कठिनाई और भी बढ़ जाती है, प्रेम से भी ज्यादा, कि चाहे कितना ही कम जानते हों लेकिन प्रेम का कोई न कोई स्वाद हम सबको है। गलत ही सही, गलत प्रेम का ही सही, तो भी प्रेम का स्वाद है। गलत ध्यान का भी हमें कोई स्वाद नहीं है, ठीक ध्यान की बात तो बहुत दूर है। गलत ध्यान का भी हमें कोई स्वाद नहीं है जिसके आधार पर समझाया जा सके कि ठीक क्या है। गलत ध्यान में भी हम अपने को रोक लेते हैं।
महावीर ने दो तरह के गलत ध्यान भी कहे हैं। महावीर ने कहा है कि जो व्यक्ति तीव्र क्रोध में आ जाता है वह एक तरह के गलत ध्यान में आ जाता है। अगर आप कभी तीव्र क्रोध में आए हैं तो एक प्रकार के गलत ध्यान में आपने प्रवेश किया है। लेकिन हम तीव्र क्रोध में भी कभी नहीं आते। हम कुनकुने जीते हैं, ल्यूकवार्म; कभी हम उबलती हालत में नहीं आते। अगर आप गहरे क्रोध में आ जाएं, इतने गहरे क्रोध में आ जाएं कि क्रोध ही शेष रह जाए, क्रोध ही एकाग्र हो जाए, जीवन की सारी ऊर्जा क्रोध के बिंदु पर ही दौड़ने लगे। सारी किरणें जीवन की शक्ति की क्रोध पर ही ठहर जाएं, तो आपको गलत ध्यान का अनुभव होगा। __महावीर ने कहा है कि अगर कोई गलत ध्यान में भी उतरे तो उसे ठीक ध्यान में लाना आसान है। इसलिए अकसर ऐसा हुआ है कि परम क्रोधी क्षण भर में परम क्षमा की मूर्ति बन गए। लेकिन धीमे-धीमे जलते हए जो क्रोधी हैं उन्हें गलत ध्यान का भी कोई पता नहीं है। अगर राग पूरी तरह हो, वासना पूरी तरह हो, पैशन पूरी तरह हो जैसा कि कोई मजनूं या फरियाद जब अपने पूरे राग से पागल
313
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org