________________
महावीर-वाणी भाग : 1
मांगेगा, वृद्ध होने पर सेवा मांगेगा। क्योंकि ये एक ही तर्क के दो हिस्से हैं। लेकिन महावीर की सेवा करने की जो धारणा है, उसमें सेवा मांगी नहीं जाएगी। क्योंकि सेवा कभी इस दृष्टि से की नहीं गयी, मांगी भी नहीं जाएगी। मांगने का कोई कारण नहीं है। और अगर कोई सेवा न करेगा तो उससे क्रोध भी पैदा नहीं होगा, उससे कष्ट भी मन में नहीं आएगा। उसे ऐसा भी नहीं लगेगा कि इस आदमी ने सेवा क्यों नहीं की। ___ इसलिए जो लोग भी सेवा करते हैं वे बड़े टार्च मास्टर्स होते हैं। अगर आप सेवकों के आश्रम में जाकर देखें, जो कि सेवा करते हैं, तो आप एक और मजेदार बात देखेंगे कि वह सेवा लेते भी हैं, उतनी ही मात्रा में। और उतनी ही सख्ती से। सख्ती उनकी भयंकर होती है। जरा-सी बात चूक नहीं सकते। और कभी-कभी अत्यंत हिंसात्मक हो जाते हैं। यह बहुत मजे की बात है कि आप जितने सख्त अपने पर होते हैं उससे कम सख्त आप किसी पर नहीं होते। आप ज्यादा ही सख्त होंगे। कभी-कभी बहत छोटी-छोटी बातों में बड़ी अजीब घटना घटती है। ___ गांधीजी नोआखाली में यात्रा पर थे। कठिन था वह हिस्सा, एक-एक गांव खून और लाशों से पटा था। एक युवती उनकी सेवा में है, वह उनके साथ चल रही है। एक गांव से अड्डा उखड़ा है, दोपहर वहां से चले हैं, सांझ दूसरे गांव पहुंचे हैं। लेकिन गांधीजी स्नान करने बैठे हैं। देखा तो उनका पत्थर, जिससे वे पैर घिसते थे, वह पीछे छूट गया पिछले गांव में। रात उतर रही है, अंधेरा उतर रहा है। उन्होंने उस लड़की को बुलाया और कहा कि यह भूल कैसे हुई? क्योंकि गांधी तो कभी भूल नहीं करते हैं इसलिए किसी की भूल बर्दाश्त नहीं कर सकते। वापस जाओ, वह पत्थर लेकर आओ। नोआखाली. चारों तरफ आगें जल रही हैं. लाशें बिछी हैं। वह अकेली लड़की, रोती, घबराती, छाती धडकती वापस लौटी।
उस पत्थर में कुछ भी न था। वैसे पचास पत्थर उसी गांव से उठाए जा सकते थे। लेकिन डिसीप्लेनेरियन, अनुशासन!... जो आदमी अपने घर पर पक्का अनुशासन रखता है वह दूसरों की गर्दन दबा लेता है। क्योंकि खुद नहीं भूलते कोई चीज । दूसरा कैसे भूल सकता है? तब दिखने वाला ऊपर से जो अनुशासन है, गहरे में हिंसा हो जाता है। यह भी कोई बात थी! आदमी भूल सकता है, भूलना स्वाभाविक है। और कोई बड़ा कोहिनूर हीरा नहीं भूल गया है। पैर घिसने का पत्थर भूल गया है। लेकिन सवाल पत्थर का नहीं है, सवाल सख्ती का है, सवाल नियम का है। नियम का पालन होना चाहिए।
अगर आप अनुशासन, सेवा, नियम, मर्यादा, इस तरह की बातें माननेवाले लोगों के पास जाकर देखें तो आपको दूसरा पहलू भी बहत शीघ्र दिखाई पड़ना शुरू हो जाएगा। जितने सख्त वे अपने पर हैं उससे कम सख्त वे दसरे पर नहीं है। जब आप किसी के पैर दाब रहे हैं, तब आप किसी दिन पैर दबाए जाने का इन्तजाम भी कर रहे हैं मन के किसी कोने में। और अगर आपके पैर न दाबे गए उस दिन, तब आपकी पीड़ा का अंत नहीं होगा। ___ लेकिन महावीर की सेवा का इससे कोई संबंध नहीं है। महावीर तो कहते हैं कि अगर मेरी कोई सेवा करेगा तो भी वह इसलिए कर रहा है कि उसके किसी पाप का प्रक्षालन है। अगर नहीं है कोई पाप का प्रक्षालन तो बात समाप्त हो गयी। कोई मेरी सेवा नहीं कर रहा है। इसमें दूसरे को गौरव दिया जाए तो फिर दूसरे को निंदा भी दी जा सकती है। लेकिन न कोई गौरव है. न कोई निंदा
का ऐसा अर्थ है। ___तो आप जब भी सेवा कर रहे हैं तब ध्यान रखें, वह भविष्य-उन्मुख न हो। तो आप अंतर-तप कर रहे हैं। जब आप सेवा कर रहे हों तो वह निष्प्रयोजन हो, अन्यथा आप अंतर-तप नहीं कर रहे हैं। जब आप सेवा कर रहे हैं तब उससे किसी तरह के गौरव की, गरिमा की, अस्मिता की कोई भावना भीतर गहन न हो, अन्यथा आप सेवा नहीं कर रहे हैं, वैयावृत्य नहीं कर रहे हैं। वह सिर्फ किए गए पाप
3000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org