________________
महावीर-वाणी
भाग : 1
सकते। जो लोग कृष्ण को भगवान मानते हैं, वे लोग महावीर को, बुद्ध को भगवान नहीं मान सकते। क्यों नहीं मान सकते? नहीं मान सकते इसलिए कि संतुलन करना पड़ता है जिंदगी में। एक को पल्ले पर भगवान रख दिया तो दूसरे को रखना पड़ेगा जो भगवान नहीं है-दूसरे पल्ले पर। तभी संतुलन पूरा होगा
जैन अगर किताबें भी लिखते हैं बुद्ध के बाबत--क्योंकि बुद्ध और महावीर समकालीन थे और उनकी शिक्षाएं कई अर्थों में समान मालूम पड़ती हैं तो मैंने अब तक एक हिम्मतवर जैन नहीं देखा जिसने बुद्ध को भगवान लिखने की हिम्मत की हो। अगर साथ-साथ लिखते भी हैं तो वे लिखते हैं-भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध । बड़े मजे की बात है। बहुत हिम्मतवर हैं ये लोग जो महात्मा बुद्ध लिखते हैं। लेकिन उनकी भी हिम्मत नहीं जुट पाती कि वे भगवान बुद्ध कह सकें। भगवान कृष्ण कहना तो बहुत ही मुश्किल मामला है, क्योंकि शिक्षाएं बहुत विपरीत हैं। तो कृष्ण को तो जैनों ने नरक में डाल रखा है। उनके हिसाब से इस समय कृष्ण नरक में हैं। क्योंकि युद्ध इसी आदमी ने करवाया।
और हिंदुओं ने तो महावीर की कोई गणना ही नहीं की, एक किताब में उल्लेख नहीं किया महावीर का। यानी नरक में डालने योग्य भी नहीं माना। आप यह समझना। कोई हिसाब ही नहीं रखा। अगर बौद्धों के ग्रंथ नष्ट हो जाएं तो जैनों के पास अपने ही ग्रंथों के सिवाय महावीर का हिंदुस्तान में कोई उल्लेख नहीं होगा। हिंदुओं ने तो गणना भी नहीं की कि यह आदमी कभी हुआ भी है। इस भांति महावीर जैसा आदमी पैदा हो, हिंदस्तान में पैदा हो, चारों तरफ हिंदुओं से भरे समाज में पैदा हो और हिंदुओं का एक भी शास्त्र उल्लेख न कर पाए, यह जरा सोचने जैसा मामला है।
इसलिए जब पहली दफा पाश्चात्य विद्वानों ने महावीर पर काम शुरू किया तो उन्हें शक हआ कि यह आदमी कभी हआ नहीं होगा। क्योंकि हिंदुओं के ग्रंथों में कोई उल्लेख न हो, यह असम्भव है। तो उन्होंने सोचा कि शायद यह बुद्ध का ही खयाल है जैनों को। यह बुद्ध को ही माननेवाले दो तरह के लोग हैं, और बुद्ध और महावीर को वह जो विशेषण दिए गए वह कई जगह समान हैं। जैसे बुद्ध को भी जिन कहा गया है, महावीर को भी जिन-जिसने अपने को जीत लिया। महावीर को भी बुद्ध पुरुष कहा गया है, बुद्ध को भी बुद्ध कहा गया है। तो शायद, यह बुद्ध का ही भ्रम है। इसलिए पश्चिम के विद्वानों ने तो महावीर को मानने से इनकार कर दिया-कर देने का कारण था कि हिन्दू बड़ा समाज है। इसमें कहीं कोई खबर ही नहीं कि महावीर हुए!
ध्यान रहे, जैनों को कष्ण को स्वीकार करना पड़ा-भला नरक में डालना पडा हो। अस्वीकार करना मश्किल था। इतना बड़ा व्यक्ति था, इतने बड़े समाज का आदर और सम्मान था। लेकिन हिंदू चाहें तो निगलेक्ट कर सकते हैं, उपेक्षा कर सकते हैं, कोई जरूरत नहीं है उल्लेख करने की। पर आश्चर्यजनक है यह कि एक को भगवान कोई मान ले तो फिर दूसरे को मानना बड़ा कठिन हो जाता है। कठिनाई यही हो जाती है कि तौल खड़ी हो गयी, अब दूसरे को दूसरे पलड़े पर रखना पड़ेगा और संतुलन बराबर बिठाना होगा। ___ हम सब संतुलन बिठा रहे हैं। हम सब तुलनाएं कर रहे हैं। इसलिए यह आश्चर्यजनक घटना घटती है कि इस पृथ्वी पर इतने-इतने अदभुत लोग पैदा होते हैं, लेकिन उन अदभुत लोगों में से हम एक का ही फायदा उठा पाते हैं-एक का ही, सबका नहीं उठा पाते। सबके हम हकदार हैं। हम बुद्ध के उतने ही वसीयतदार हैं जितने कृष्ण के, जितने मुहम्मद के, जितने क्राइस्ट के, जितने नानक के या कबीर के। लेकिन नहीं, हम वसीयत छोड़ देंगे। हम तो एक के हकदार होंगे, शेष सबको इनकार कर देंगे। हमें इनकार करना पड़ेगा क्योंकि हम जब स्वीकार करते हैं श्रेष्ठ को, तो हमें किसी को निकृष्ट की जगह रखना पड़ेगा, नहीं तो श्रेष्ठ को तौलने का मापदण्ड कहां होगा। इससे विनय पैदा नहीं होती।
जो आदमी कहता है कि मैं महावीर के प्रति विनयपूर्ण हूं, लेकिन बुद्ध के प्रति नहीं, वह समझ ले कि वह विनीत नहीं है। और यह
276
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org