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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 अभी भी बात सूक्ष्म है; इसलिए चौथे चरण में, उपाध्यायों को नमस्कार। उपाध्याय का अर्थ है – आचरण ही नहीं, उपदेश भी। उपाध्याय का अर्थ है - ज्ञान ही नहीं, आचरण ही नहीं, उपदेश भी। वे जो जानते हैं, जानकर वैसा जीते हैं; और जैसा वे जीते हैं और जानते हैं, वैसा बताते भी हैं। उपाध्याय का अर्थ है- वह जो बताता भी है। क्योंकि हम मौन से न समझ पाएं। आचार्य मौन हो सकता है। वह मान सकता है कि आचरण काफी है। और अगर तुम्हें आचरण दिखाई नहीं पड़ता तो तुम जानो । उपाध्याय आप पर और भी दया करता है। वह बोलता भी है, वह आपको कहकर भी बताता है। ये चार सुस्पष्ट रेखाएं हैं। लेकिन इन चार के बाहर भी जानने वाले छूट जाएंगे। क्योंकि जानने वालों को बांधा नहीं जा सकता 'कैटेगरीज़' में। इसलिए मंत्र बहुत हैरानी का है। इसलिए पांचवें चरण में एक सामान्य नमस्कार है - 'नमो लोए सव्वसाहूणं' । लोक में जो भी साधु हैं, उन सबको नमस्कार। जगत में जो भी साधु हैं, उन सबको नमस्कार। जो उन चार में कहीं भी छूट गये हों, उनके प्रति भी हमारा नमन न छूट जाए। क्योंकि उन चार में बहुत लोग छूट सकते हैं। जीवन बहुत रहस्यपूर्ण है, कैटेगराइज़ किया जा सकता, खांचों में नहीं बांटा जा सकता। इसलिए जो शेष रह जाएंगे, उनको सिर्फ साधु कहा – वे जो सरल हैं। और साधु का एक अर्थ और भी है। इतना सरल भी हो सकता है कोई कि उपदेश देने में भी संकोच करे। इतना सरल भी हो सकता है कोई कि आचरण को भी छिपाये। पर उसको भी हमारे नमस्कार पहंचने चाहिए। सवाल यह नहीं है कि हमारे नमस्कार से उसको कुछ फायदा होगा, सवाल यह है कि हमारा नमस्कार हमें रूपांतरित करता है। न अरिहंतों को कोई फायदा होगा, न सिद्धों को, न आचार्यों को, न उपाध्यायों को, न साधुओं को - पर आपको फायदा होगा। यह बहुत मजे की बात है कि हम सोचते हैं कि शायद इस नमस्कार में हम सिद्धों के लिए, अरिहंतों के लिए कुछ कर रहे हैं, तो इस भूल में मत पड़ना। आप उनके लिए कुछ भी न कर सकेंगे, या आप जो भी करेंगे उसमें उपद्रव ही करेंगे। आपकी इतनी ही कृपा काफी है कि आप उनके लिए कुछ न करें। आप गलत ही कर सकते हैं। नहीं, यह नमस्कार अरिहंतों के लिए नहीं है, अरिहंतों की तरफ है, लेकिन आपके लिए है। इसके जो परिणाम हैं, वह आप पर होने वाले हैं। जो फल है, वह आप पर बरसेगा। अगर कोई व्यक्ति इस भाति नमन से भरा हो, तो क्या आप सोचते हैं उस व्यक्ति में अहंकार टिक सकेगा? असंभव है। लेकिन नहीं, हम बहत अदभूत लोग हैं। अगर अरिहंत सामने खडा हो तो हम पहले इस बात का पता लगाएंगे कि अरिहंत है भी? महावीर के आसपास भी लोग यही पता लगाते-लगाते जीवन नष्ट किये – अरिहंत है भी? तीर्थंकर है भी? और आपको पता नहीं है, आप सोचते हैं कि बस तय हो गया, महावीर के वक्त में बात इतनी तय न थी। और भी भीड़ें थीं, और भी लोग थे जो कह रहे थे - ये अरिहंत नहीं हैं, अरिहंत और हैं। गोशालक है अरिहंत । ये तीर्थंकर नहीं हैं, यह दावा झूठा है। ___ महावीर का तो कोई दावा नहीं था। लेकिन जो महावीर को जानते थे, वेदावे से बच भी नहीं सकते थे। उनकी भी अपनी कठिनाई थी। पर महावीर के समय पर चारों ओर यही विवाद था। लोग जांच करने आते कि महावीर अरिहंत हैं या नहीं, वे तीर्थंकर हैं या नहीं, वे भगवान हैं या नहीं। बड़ी आश्चर्य की बात है, आप जांच भी कर लेंगे और सिद्ध भी हो जाएगा कि महावीर भगवान नहीं हैं, आपको क्या मिलेगा? और महावीर भगवान न भी हों और आप अगर उनके चरणों में सिर रखें और कह सकें, नमो अरिहंताणं, तो आपको मिलेगा। महावीर के भगवान होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। असली सवाल यह नहीं है कि महावीर भगवान हैं या नहीं, असली सवाल यह है कि कहीं भी आपको भगवान दिख सकते हैं या नहीं - कहीं भी - पत्थर में, पहाड़ में। कहीं भी आपको दिख सके तो आप नमन को उपलब्ध हो जाएं। असली राज तो नमन में है, असली राज तो झुक जाने में है-असली राज तो झक जाने में है। वह जो झुक जाता है, उसके भीतर सब कुछ बदल 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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