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संलीनता : अंतर-तप का प्रवेश-द्वार
हम जिसे जिंदगी कह रहे हैं वह एक लंबी नरक यात्रा है। और वह नरक यात्रा का कारण कुल इतना है कि हमारा चित्त आक्रामक है। पर-केंद्रित चित्त आक्रामक होता है, स्व-केंद्रित चित्त अनाक्रमक हो जाता है, प्रतिक्रमण को उपलब्ध हो जाता है। यह प्रतिक्रमण की यात्रा ही संलीनता में डुबा देती है।
आज बाह्य-तप पूरे हुए, कल से हम अंतर-तप को समझने की कोशिश करेंगे।
रुकें पांच मिनट...!
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