________________
बाह्य तप का अन्तिम सूत्र, अन्तिम अंग है— संलीनता। संलीनता सेतु है, बाह्य-तप और अंतर-तप के बीच। संलीनता के बिना कोई बाह्य तप से अंतर- तप की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिए संलीनता को बहुत ध्यानपूर्वक समझ लेना जरूरी है। संलीनता सीमांत है; वहीं से बाह्य-तप समाप्त होते और अंतर-तप शुरू होते हैं।
संलीनता का अर्थ और संलीनता का प्रयोग बहुत अदभुत है।
परम्परा जितना कहती है, वह तो इतना ही कहती है कि अपने शरीर के अंगों को व्यर्थ संचालित न करना संलीनता है। अकारण शरीर न हिले डुले, संयत हो, तो संलीनता है । इतनी ही बात नहीं, यह
तो
कुछ भी नहीं है । यह तो संलीनता का बाहर की रूपरेखा को भी स्पर्श करना नहीं है। संलीनता के गहरे अर्थ हैं। तीन हिस्सों में हम इसे समझें-- पहला तो आपके शरीर में, आपके मन में, आपके प्राण में कोई भी हलन चलन नहीं होती है, जब तक आपकी चेतना न कंपे। अंगुली भी हिलती है तो भीतर आत्मा में कंपन पैदा होता है। दिखाई तो अंगुली पड़ती है कि हिली, लेकिन कंपन भीतर से आता है; सूक्ष्म से आता है और स्थूल तक फैल जाता है। इतना ही सवाल नहीं है कि अंगुली न हिले क्योंकि यह हो सकता है अंगुली न हिले लेकिन भीतर कंपन हो। तो कोई अपने शरीर को संलीन करके बैठ जा सकता है, योगासन लगाकर बैठ जा सक है, अभ्यास कर ले सकता है और शरीर पर कोई भी कंपन दिखाई न पड़े और भीतर तूफान चले, और ज्वालामुखी का लावा उबलता रहे और आग जले ।
संलीनता वस्तुतः तो तब घटित होती है, जब भीतर सब इतना शांत हो जाता है कि भीतर से कोई तरंग नहीं आती जो शरीर पर कंपन बने, लहर बने । पर हमें शरीर से ही शुरू करना पड़ेगा क्योंकि हम शरीर पर ही खड़े हैं। तो संलीनता के अभ्यास में जिसे उतरना हो उसे पहले तो अपनी शरीर की गतिविधियों का निरीक्षण करना होता है। यह पहला हिस्सा है।
क्या कभी आपने खयाल किया है कि जब आप क्रोध में होते हैं तो और ढंग से चलते हैं? जब आप क्रोध में हैं तब आपके चेहरे की रेखाएं और हो जाती हैं; आपकी आंख पर अलग रंग फैल जाते हैं; आपके दांतों में कोई गति हो जाती है। आपकी अंगुलियां किसी भार से, शक्ति से भर जाती हैं। आपके समस्त स्नायु मंडल में परिवर्तन हो जाता है। जब आप उदास होते हैं तब आप और ढंग से चलते हैं, आपके पैर भारी हो गए होते हैं, उठाने का मन भी नहीं होता, कहीं जाने का भी मन नहीं होता। आपके प्राण पर जैसे पत्थर रख दिया हो, ऐसी आपकी सारी इंद्रियां पत्थर से दब जाती हैं। जब आप उदास होते हैं तब आपके चेहरे का रंग बदल जाता है, रेखा बदल जाती है। जब आप प्रेम में होते हैं तब, जब आप शांत होते हैं तब, तब सब फर्क पड़ते हैं। लेकिन आपने
Jain Education International
231
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org