SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर वाणी भाग : 1 टोटल इंटेंसिटी में जीयी जा सकेगी। और जिस वृत्ति को भी आप उसकी समग्रता में जीते हैं, वह व्यर्थ हो जाती है। और वृत्तियों का व्यर्थ हो जाना जरूरी है आत्मदर्शन के पूर्व । दूसरी बात - सारी वृत्तियां मन को घेर लेती हैं क्योंकि आप मन से ही सारा काम करते हैं। भोजन भी मन से करना पड़ता है; संभोग भी मन से करना पड़ता है; कपड़े भी मन से पहनने पड़ते हैं; कार भी मन से चलानी पड़ती है; दफ्तर भी मन से - सारा काम बुद्धि को घेर लेता है इसलिए बुद्धि निर्बल और निर्वीर्य हो जाती है, इतना काम उस पर हो जाता । इतना बाहरी काम हो जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने उससे कहा है कि अपने मालिक से कहो कि कुछ तनख्वाह बढ़ाए। बहुत दिन हो गए, कोई तनख्वाह नहीं बढ़ी। मुल्ला ने कहा- मैं कहता हूं, लेकिन वह सुनकर टाल देता है। उसकी पत्नी ने कहा – तुम जाकर बताओ, उसको तुम्हारी मां बीमार है, उसके इलाज की जरूरत है। तुम्हारे पिता को लकवा लग गया है, उनकी सेवा की जरूरत है। तुम्हारी सास भी तुम्हारे पास रहती है। तुम्हारे इतने बच्चे हैं, इनकी शिक्षा का सवाल है । तुम्हारे पास अपना मकान नहीं है, तुम्हें मकान बनाना है । ऐसी उसने बड़ी फेहरिस्त बतायी। मुल्ला दूसरे दिन बड़ा प्रसन्न लौटा दफ्तर से । उसकी पत्नी ने कहा- क्या तनख्वाह बढ़ गयी है? मुल्ला ने कहा- नहीं, मेरे मालिक ने कहा-यू हैव टू मच आउटसाइड एक्टिविटीज । नौकरी खत्म कर दी। तुम दफ्तर का काम कब करोगे? जब इतना तुम्हारा सब काम है—सास भी घर में है तो दफ्तर का काम कब करोगे? उसने छुट्टी दे दी । उसको सब तरफ से बोझिल किए हुए हैं, वह अपना काम बुद्धि से आप नींद का ही काम लेते हैं। कभी धन कमाने बुद्धि के ऊपर इतना ज्यादा काम है कि बुद्धि अपना काम कब करेगी। कब करेगी? तो आप बुद्धिमत्ता का कोई काम जीवन में नहीं कर पाते। का काम करते हैं, कभी शादी करने का काम करते हैं, कभी रेडियो सुनने का काम करते हैं। लेकिन बुद्धि की बुद्धिमत्ता, बुद्धि का अपना निजी काम क्या है? बुद्धि का निजी काम ध्यान है । जब बुद्धि अपने में ठहरती है, जब बुद्धि अपने में रुकती है, तो विडम बुद्धिमत्ता आती है और तब पहली दफे जीवन को आप और ढंग से देख पाते हैं, एक बुद्धिमान की आंखों से। लेकिन वह मौका नहीं आ पाता । बहुत ज्यादा काम है। वह उसी में दबी-दबी नष्ट हो जाती है। जो आपके पास श्रेष्ठतम बिन्दु है काम का, उससे आप बहुत निकृष्ट काम ले रहे हैं। जो आपके पास श्रेष्ठतम शक्ति है, उससे आप ऐसे काम ले रहे हैं, जिनको कि सुई से कर सकते थे, उनका काम आप तलवार से ले रहे हैं। तलवार से लेने की वजह से सुई से जो हो सकता था, वह भी नहीं हो पाता। और व जो कर सकती थी, उसका तो कोई सवाल ही नहीं है, वह सुई के काम में उलझी हुई होती है। वृत्ति-संक्षेप का अर्थ है – प्रत्येक वृत्ति को उसके अपने केन्द्र पर संक्षिप्त करो। उसे फैलने मत दो। भूख लगे तो पेट से लगने भूख, बुद्धि से मत लगने दो । बुद्धि को कह दो ---तु चुप रह । कितना बजा है, फिक्र छोड़। पेट खबर देगा न, कि भूख लगी है, तब हम सुन लेंगे। सोने का काम करना है तो बुद्धि को मत करने दो। नींद आएगी तो खुद ही खबर देगी, शरीर खबर देगा तब सो जाना। नींद तोड़नी हो तो भी बुद्धि को काम मत दो कि वह अलार्म भरकर रख दें। जब नींद टूटेगी तब टूट जाएगी । उसको टूटने दो स्वयं । नींद के यंत्र को अपना काम करने दो; भोजन के यंत्र को अपना काम करने दो; कामवासना के यंत्र को अपना काम करने दो। शरीर के सारे काम स्पेशलाइज्ड हैं, उनके अपने-अपने में चले जाने दो। उनको सबको इकट्ठा मत करो, अन्यथा वे सब विकृत हो जाएंगे और उनको सम्भालना कठिन हो जाएगा। और मजे की बात यह है कि जिस केन्द्र पर काम पहुंच जाता है, बुद्धि का इतना काम है कि वह केन्द्र अपना काम को समग्रता से करे ताकि उसका केन्द्र का काम किसी दूसरे केन्द्र पर न फैलने पाए। बुद्धि इतना देखे तो पर्याप्त है, तो बुद्धि नियंता हो जाती है। Jain Education International 202 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy