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महावीर-वाणी
भाग : 1
अब अमरीका के वैज्ञानिक कहते हैं कि बीस साल के भीतर आदमी के लिए कोई काम नहीं रह जाएगा क्योंकि मशीनें सभी काम ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकती हैं। और सबसे बड़ा सवाल जो उनके सामने है वह यही है कि बीस साल बाद हम आदमी का क्या करेंगे और इससे क्या काम लेंगे? अगर यह बेकाम हो जाएगा तो उपद्रव करेगा। इससे कुछ न कुछ तो काम लेना ही पड़ेगा। हो सकता है काम ऐसे लेना पड़े इस आदमी से जैसा घर-घर में बच्चे उपद्रव करते हैं तब खिलौने पकड़ाकर काम लिया जाता है। बस इतना ही काम लेना पड़ेगा कि कुछ खिलौने आपको पकड़ाने पड़ें। जिनमें आप धुंघरू वगैरह बजाते रहें। वह आपके लिए जरा बड़े ढंग के खिलौने होंगे। बिलकुल बच्चे जैसे नहीं होंगे, क्योंकि उसमें आप नाराज होंगे।
बाकी मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चों के खिलौनों में और बडे आदमियों के खिलौनों में सिर्फ कीमत का फर्क होता है. और कोई फर्क नहीं होता। वह गड़िया से खेलते रहते हैं, आप एक स्त्री से खेलते रहते हैं। जरा कीमत का फर्क होता है। यह जरा महंगा खिलौना है। बाकी खेल वही है। _वृत्ति-संक्षेप का अर्थ है-दो कारणों से वृत्ति-संक्षेप पर महावीर का जोर है-एक तो प्रत्येक काम को, प्रत्येक वृत्ति को उसके केन्द्र पर कंसंट्रेट कर देना है। सबसे पहली तो जरूरत इसलिए है कि जो वृत्ति अपने केन्द्र पर संग्रहीत हो जाती है, कंसंट्रेट हो जाती है, एकाग्र हो जाती है, आपको उसके वास्तविक अनुभव मिलने शुरू होते हैं। और वास्तविक अनुभव से मुक्त हो जाना बहुत आसान है। यह वास्तविक अनुभव बहुत दुखद है। स्त्री की कल्पना से मुक्त होना बहुत कठिन है, क्योंकि धन के ढेर से मुक्त हो जाना बहुत आसान है। कल्पना से मुक्त होना कठिन है क्योंकि कल्पना कहीं फ्रस्ट्रेट ही नहीं होती, कल्पना तो दौड़ती चली जाती है, कोई अंत ही नहीं आता। कहीं ऐसा नहीं होता जहां कल्पना थक जाए, टूट जाए, हार जाए। वास्तविकता का तो हर जगह अंत आ जाता है। हर चीज टूट जाती है। प्रत्येक वत्ति अपने केन्द्र पर आ जाए तो इतनी सघन हो जाती है कि आपको उसके वास्तविक, एनुअल अनुभव होने शुरू होते हैं। और जितना वास्तविक अनुभव हो उतनी ही जल्दी छुटकारा है, क्योंकि उसमें कोई रस नहीं रह जाता। आपको पता चलता है, वह सिर्फ पागल मन की दौड़ थी, कुछ रस था नहीं। आपने सोचा था, कल्पना की थी, कोई रस था नहीं। __एक अनूठी घटना अमेरिका में इधर पिछले दस वर्षों में घटना शुरू हुई है। हिप्पी और बीटल और बीटनिक, इनके कारण एक अनूठी घटना शुरू हुई है। वह यह है कि पहली दफे हिप्पियों ने कामवासना को मुक्त भाव से भोगने का प्रयोग किया—मुक्त भाव से। जिन्होंने यह प्रयोग दस साल पहले शुरू किया था, उन्होंने सोचा था, बड़ा आनंद उपलब्ध होगा। क्योंकि जितनी स्त्रियां चाहिए, या जितने पुरुष चाहिए, जितने संबंध बनाने हैं उतने संबंध बनाने की स्वतंत्रता है। कोई ऊपरी बाधा नहीं है, कोई कानून नहीं है, कोई अदालत नहीं है, कोई ऊपरी बाधा नहीं है, दो व्यक्तियों की निजी स्वतंत्रता है। लेकिन दस साल में जो सबसे हैरानी का अनुभव हिप्पियों को हुआ है वह यह कि सेक्स बिलकुल ही बेमानी मालूम पड़ने लगा, मीनिंगलैस। उसमें कोई मतलब ही नहीं रहा। __दस हजार साल पति-पत्नियों वाली दुनिया में सेक्स मीनिंगफुल बना रहा, और दस साल में पति-पत्नी का हिसाब छोड़ दें, और सेक्स मीनिंगलैस हो जाता है। बात क्या है? बहुत तरह के प्रयोग हिप्पियों ने किए और सब प्रयोग बेमानी हो जाते। ग्रुप मैरिजकि आठ लड़के और आठ लड़कियां शादी कर लेते हैं – ग्रुप मैरिज, एक दूसरे ग्रुप से मैरिज कर रहा है, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से नहीं। अब इनमें से जो जिससे राजी होगा, जिस तरह राजी होगा, जिस तरह भी होगा - यह पति का ग्रुप है दस का या आठ का, या पत्नी का आठ का, ये दोनों ग्रुप इकट्ठे हो गए, अब यह एक फैमिली है। अब इसमें सब पति हैं, सब पत्नियां हैं। ग्रुप सेक्स ने इस बुरी तरह अनुभव दिए कि अभी मैं एक अनुभवी व्यक्ति का, जो इन सारे अनुभवों से गुजरा, संस्मरण पढ़ रहा था। तो उसने लिखा कि अगर सेक्स में रस वापस लौटाना है तो वह पति-पत्नी वाली दुनिया बेहतर थी। सेक्स में रस वापस लौटाना - आप
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