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अनशन : मध्य के क्षण का अनुभव गड़ जाता है, कभी सिर में दर्द हो जाता है; कभी यह पसली दुखती है, कभी वह इंद्रिय मांग करती है। इन्हीं के पीछे दौड़ते-दौड़ते सब समय जाया हो जाता है।
तो महावीर कहते हैं—पहले इन इंद्रियों को अपने से राजी करो। अनशन का वही अर्थ है, पेट को अपने से राजी करो, तुम पेट से राजी मत हो जाओ। जानो भलीभांति कि पेट तुम्हारे लिए है, तुम पेट के लिए नहीं हो। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो हिम्मत से यह कह सकें कि हम पेट के लिए नहीं हैं। भलीभांति वह जानते हैं कि हम पेट के लिए हैं, पेट हमारे लिए नहीं है। हम साधन हैं और पेट साध्य हो गया है। पेट का अर्थ, सभी इंद्रियां साध्य हो गयी हैं। खींचती रहती हैं, बुलाती रहती हैं, हम दौड़ते रहते हैं। ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने मकान पर बैठकर खप्पर ठीक कर रहा है। वर्षा आने के करीब है, वह अपने खपड़े ठीक कर रहा है। एक भिखारी ने नीचे से आवाज दी कि नसरुद्दीन नीचे आओ। नसरुद्दीन ने कहा कि तुझे क्या कहना है, वहीं से कह दे। उसने कहा-माफ करो, नीचे आओ। नसरुद्दीन बेचारा सीढियों से नीचे उतरा, भिखारी के पास गया। भिखारी ने कहा कि क खाने को मिल जाए। नसरुद्दीन ने कहा-नासमझ! यह तो तू नीचे से ही कह सकता था। इसके लिए मुझे नीचे बुलाने की जरूरत? उसने कहा-बड़ा संकोच लगता था, जोर से बोलूंगा, कोई सुन लेगा। नसरुद्दीन ने कहा-बिलकुल ठीक। चल, ऊपर चल। भिखारी बड़ा मोटा तगड़ा था। बामुश्किल चढ़ पाया। जाकर नसरुद्दीन ऊपर अपने खपड़े जमाने में लग गया। थोड़ी देर भिखारी खड़ा रहा। उसने कहा कि भूल गए क्या? नसरुद्दीन ने कहा-भीख नहीं देनी है, यही कहने के लिए ऊपर लाया हूं। उसने कहा-तू आदमी कैसा है, नीचे ही क्यों न कह दिया? नसरुद्दीन ने कहा-बड़ा संकोच लगा। कोई सुन लेगा। जब तू भिखारी होकर मुझे नीचे बुला सकता है तो मैं मालिक होकर तुझे ऊपर नहीं बुला सकता?
पर सब इंद्रियां हमें नीचे बुलाए चली जाती हैं, हम इंद्रियों को ऊपर नहीं बुला पाते। अनशन का अर्थ है-इंद्रियों को हम ऊपर बुलाएंगे, हम इंद्रियों के साथ नीचे नहीं जाएंगे।
आज इतना ही। कल हम दुसरे तथ्य पर विचार करेंगे। लेकिन पांच मिनट जाएंगे नहीं, बैठे रहेंगे।
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