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तप : ऊर्जा-शरीर का अनुभव
पता तो उसका चलता है जो भीतर है। संवेदनशील जगह पर छुआ जाता है, उसका मतलब यह है कि वहां से ऊर्जा शरीर कांटैक्ट में है। वहां से वहां तक चोट पहुंच जाती है। जब आपको अनस्थीसिया दे दिया जाता है आपरेशन की टेबल पर तो आपके ऊर्जा शरीर का और इस शरीर का संबंध तोड़ दिया जाता है। जब लोकल अनस्थीसिया दिया जाता है कि मेरे हाथ को भर अनस्थीसिया दे दिया गया है कि मेरा हाथ सो जाए, तो सिर्फ मेरे हाथ के जो बिन्दु हैं, जिनसे मेरा तपस्-शरीर जुड़ा हुआ है, उनका संबंध टूट जाता है। फिर इस हाथ को काटो-पीटो, मुझे पता नहीं चलता। क्योंकि मुझे तभी पता चल सकता है जब मेरे ऊर्जा-शरीर से संबंध कुछ हो अन्यथा मुझे पता नहीं चलता।
इसलिए बहत हैरानी की घटना घटती है, और आप भूल ऐसीन करना। कभी-कभी कुछ लोग सोते हए मर जाते हैं। आप कभी भी सोते हुए मत मरना। सोते में जब कोई मर जाता है तो उसको कई दिन लग जाते हैं यह अनुभव करने में कि मैं मर गया। क्योंकि गहरी नींद में ऊर्जा-शरीर और इस शरीर के संबंध शिथिल हो जाते हैं। अगर कोई गहरी नींद में एकदम से मर जाता है तो उसकी समझ में नहीं आता कि मैं मर गया। क्योंकि समझ में तो तभी आ सकता है, जब इस शरीर से संबंध टूटते हुए अनुभव में आएं। वह अनुभव में नहीं आते तो उसमें पता नहीं चलता कि मैं मर गया।
यह जो सारी दुनिया में हम शरीर को गड़ाते हैं या जलाते हैं या कुछ करते हैं तत्काल, उसका कुल कारण इतना है, ताकि वह जो ऊर्जा-शरीर है उसे यह अनुभव में आ जाए कि वह मर गया। इस जगत से उसका संबंध इस शरीर के साथ इसको नष्ट करता हुआ वह देख ले कि वह शरीर नष्ट हो गया है, जिसको मैं समझता था कि यह मेरा है। यह शरीर को जलाने के लिए मरघट और कब्रिस्तान और गड़ाने के लिए सारा इन्तजाम है, यह सिर्फ सफाई का इंतजाम नहीं है कि एक आदमी मर गया - तो उसको समाप्त करना ही पड़ेगा, नहीं तो सड़ेगा, गलेगा। इसके गहरे में जो चिन्ता है वह उस आदमी की चेतना को अनुभव कराने की है कि यह शरीर तेरा नहीं है, तेरा नहीं था। तू अब तक इसको अपना समझता रहा है। अब हम इसे जलाए देते हैं, ताकि पक्का तझे भरोसा हो जाए। ___ अगर हम शरीर को सुरक्षित रख सकें, तो उस चेतना को हो सकता है, खयाल ही न आए कि वह मर गई है। वह इस शरीर के आसपास भटकती रह सकती है। उसके नए जन्म में बाधा पड़ जाएगी, कठिनाई हो जाएगी। और अगर उसे भटकाना ही हो इस शरीर के आसपास, तो ईजिप्त में जो ममीज बनाई गई हैं, वे इसीलिए बनायी गयी थीं। शरीर को इस तरह से ट्रीट किया जाता था, इस तरह के रासायनिक द्रव्यों से निकाला जाता था कि वह सड़े न - इस आशा में कि किसी दिन पुनरुज्जीवन, उस सम्राट को फिर से जीवन मिल सकेगा। तो सात. साढे सात हजारों वर्ष पराने शरीर भी सरक्षित पिरामिडों के नीचे पड़े हैं। उस सम्राट को जिसके शरीर को इस तरह रखा जाता था, उसकी पत्नियों को, चाहे वे जीवित ही क्यों न हों, उनको भी उसके साथ दफना दिया जाता था। एक दो नहीं, कभी-कभी सौ-सौ पत्नियां भी होती थीं। उस सम्राट के सारे, जिन-जिन चीजों से उसे प्रेम था, वे सब उसकी ममी के आसपास रख दिए जाते थे, ताकि जब उसका पुनरुज्जीवन हो तो वह तत्काल पुराने माहौल को पाए। उसकी पत्नियां, उसके कपड़े, उसकी गद्दियां, उसके प्याले, उसकी थालियां, वह सब वहां हों – ताकि तत्काल रीहैबिलिटेड, वह पुनर्स्थापित हो जाए अपने नए जीवन में। इस आशा में ममीज खड़ी की गयी थीं। और इसमें कुछ आश्चर्य न होगा कि जिनकी ममीज रखी हैं, उनका पुनर्जन्म होना बहुत कठिन हो गया है; या न हो पाया हो; या उनकी अनेक की आत्माएं अपने पिरामिडों के आसपास अब भी भटकती हों।
हिन्दुओं ने इस भूमि पर प्राण-ऊर्जा के संबंध में सर्वाधिक गहरे अनुभव किए थे। इसलिए हमने सर्वाधिक तीव्रता से शरीर को नष्ट करने के लिए आग का इन्तजाम किया, गड़ाने का भी नहीं। क्योंकि गड़ाने में भी छह महीने लग जाएंगे शरीर को गलने में, टूटने में, मिलने में मिट्टी में। उतने छह महीने तक आत्मा को भटकाव हो सकता है। तत्काल जला देने का प्रयोग हमने किया। वह
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