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तप : ऊर्जा-शरीर का अनुभव
जा सकते हैं। और अब तो किरलियान का कैमरा भी तैयार हो गया है, वह भी जल्दी उपलब्ध हो जाएगा। उसने फूल को डाली से तोड़ लिया फिर फोटो लिया। तब स्थिति बदल गई। वे जो किरणें प्रवेश कर रही थीं वे वापस लौट रही हैं। एक सैकेंड का फासला, डाली से टूटा फूल। घंटेभर में ऊर्जा बिखरती चली जाती है। जब आपकी पंखुड़ियां सुस्त होकर ढल जाती हैं, वह वही क्षण है जब ऊर्जा निकलने के करीब पहुंचकर पूरी शून्य होने लगती है। ___ इस फूल के साथ किरलियान ने और भी अनूठे प्रयोग किए जिससे बहुत कुछ दृष्टि मिलती है – तप के लिए। किरलियान ने
आधे फूल को काटकर अलग कर दिया। छह पंखुड़ियां हैं तीन तोड़कर फेंक दीं। चित्र लिया है तीन पंखुड़ियों का, लेकिन चकित हआ – पंखडियां तो तीन रही, लेकिन फल के आसपास जो वर्तल था वह अब भी परा रहा, जैसा कि छह पंखड़ियों के आसपास था। छह पंखुड़ियों के आसपास जो वर्तुल, आभामंडल था, ऑरा था; तीन पंखुड़ियां तोड़ दी, वह आभामंडल अब भी पूरा रहा। दो पंखुड़ियां उसने और तोड़ दीं, एक ही पंखुड़ी रह गई। लेकिन आभामंडल पूरा रहा। यद्यपि तीव्रता से विसर्जित होने लगा, लेकिन पूरा रहा। ___ इसीलिए, आप जब बेहोश कर दिए जाते हैं अनस्थीसिया से या हिप्नोसिस से - आपका हाथ काट डाला जाए, आपको पता नहीं चलता। उसका कुल कारण इतना है कि आपका वास्तविक अनुभव अपने शरीर का, ऊर्जा-शरीर से है। वह हाथ कट जाने पर भी पूरा ही रहता है। वह तो जब आप जगेंगे और हाथ कटा हुआ देखेंगे तब तकलीफ शुरू होगी। अगर आपको गहरी निद्रा में मार भी डाला जाए तो भी आपको तकलीफ नहीं होगी। क्योंकि गहरी निद्रा में, सम्मोहन में या अनस्थीसिया में आपका तादात्म्य इस शरीर से छूट जाता है और आपके ऊर्जा-शरीर से ही रह जाता है। आपका अनुभव पूरा ही बना रहता है। और इसीलिए अगर आप लंगड़े भी हो गए हैं पैर से, तब भी आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके भीतर वस्तुतः कोई चीज कम हो गयी है। बाहर तो तकलीफ हो जाती है। अड़चन हो जाती है लेकिन भीतर नहीं लगता है कि कोई चीज कम हो गयी है। आप बूढ़े भी हो जाते हैं तो भी भीतर नहीं लगता कि आपके भीतर कोई चीज बूढ़ी हो गई है। क्योंकि वह ऊर्जा-शरीर है, वह वैसा का वैसा ही काम करता रहता है। __ अमरीकन मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक डा. ग्रीन ने आदमी के मस्तिष्क के बहुत से हिस्से काटकर देखे और वह चकित हुआ। मस्तिष्क के हिस्से कट जाने पर भी मन के काम में कोई बाधा नहीं पड़ती। मन अपना काम वैसा ही जारी रखता है। इससे ग्रीन ने कहा कि यह परिपूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है कि मस्तिष्क केवल उपकरण है, वास्तविक मालिक कहीं कोई पीछे है। वह पूरा का पूरा ही काम करता रहता है। आपके शरीर के आसपास जो आभामंडल निर्मित होता है, वह इस शरीर का रेडिएशन नहीं है, इस शरीर से विकीर्णन नहीं है, वरन किरलियान ने वक्तव्य दिया है कि आन दि कांदेरी दिस बाडी ओनली मिरर्स दि इनर बाडी, वह जो भीतर का शरीर है, उसके लिए यह सिर्फ दर्पण की तरह बाहर प्रगट कर देती है। इस शरीर के द्वारा वे किरणें नहीं निकल रही हैं, वे किरणें किसी और शरीर के द्वारा निकल रही हैं। इस शरीर से केवल प्रगट होती हैं।
जैसे हमने एक दीया जलाया हो, चारों तरफ एक ट्रांसपैरेंट कांच का घेरा लगा दिया हो, उस कांच के घेरे के बाहर हमें किरणों का वर्तुल दिखाई पड़ेगा। हम शायद सोचें कि वह कांच से निकल रहा है तो गलती है। वह कांच से निकल रहा है, लेकिन कांच से आ नहीं रहा है। वह आ रहा है भीतर के दीये से। हमारे शरीर से जो ऊर्जा निकलती है वह इस भौतिक शरीर की ऊर्जा नहीं है, क्योंकि मरे हुए आदमी के शरीर में समस्त भौतिक तत्व यही का यही होता है, लेकिन ऊर्जा का वर्तुल खो जाता है। उस ऊर्जा के वर्तुल को योग सूक्ष्म शरीर कहता रहा है। और तप के लिए उस सूक्ष्म शरीर पर ही काम करने पड़ते हैं। सारा काम उस सूक्ष्म शरीर पर है।
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